प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकप्रिय संवाद कार्यक्रम मन की बात के 100 एपिसोड पूरे होने जा रहे हैं। मई, 2014 में केंद्र की सत्ता में पहुँचने के कुछ ही महीने बाद 3 अक्टूबर, 2014 को इस कार्यक्रम का प्रथम एपिसोड प्रसारित हुआ था और तबसे प्रत्येक महीने के अंतिम रविवार को इस कार्यक्रम का प्रसारण होता आ रहा है। आज 22 भारतीय भाषाओं और 29 बोलियों के अलावा फ्रेंच, चीनी, इंडोनेशियाई, तिब्बती, बर्मी, बलूची, अरबी, पश्तू, फारसी आदि 11 विदेशी भाषाओं में भी इसे प्रसारित किया जाता है।
आज जब मोदी सरकार ने अपने शासन के लगभग नौ वर्ष पूरे कर लिए हैं, तब इस कार्यक्रम के भी सौ एपिसोड होने जा रहे हैं। इसी क्रम में उल्लेखनीय होगा कि ‘मन की बात’ को लेकर प्रसार भारती द्वारा आईआईएम रोहतक के माध्यम से एक अध्ययन करवाया गया है, जिसके नतीजों से जनता के बीच इस कार्यक्रम के प्रभाव और लोकप्रियता को अच्छे से समझा जा सकता है।
इस अध्ययन के अनुसार, अबतक 100 करोड़ लोग कम से कम एक बार ‘मन की बात’ सुन चुके हैं, वहीं 23 करोड़ लोग नियमित रूप से इसे सुनते हैं। करीब 96 प्रतिशत लोग इस कार्यक्रम के विषय में अच्छे-से जानते हैं। 19 से 34 साल ऐज ग्रुप वाले 62% लोग मोबाइल पर तो वहीं 60 साल से अधिक उम्र के 3.2% लोग टेलीविजिन पर मन की बात सुनते हैं। ‘मन की बात’ की लोकप्रियता के विषय में इस अध्ययन में कहा गया है कि लोग नरेंद्र मोदी को एक शक्तिशाली किन्तु जनता की भावनाओं से जुड़ने वाले संवेदनशील नेता के रूप में देखते हैं और इसी कारण उनके इस संवाद कार्यक्रम को बड़ी संख्या में सुना जाता है।
बहरहाल, आंकड़ों से इतर यदि ‘मन की बात’ कार्यक्रम के स्वरूप और उद्देश्य को आधार बनाते हुए इसका मूल्यांकन करें तो भी इसकी लोकप्रियता के कारणों को समझा जा सकता है। सर्वप्रथम तो इस कार्यक्रम का नाम ही ऐसा है कि इससे कोई भी सामान्य व्यक्ति एक सहज जुड़ाव अनुभव करने लगता है। आदमी अपने व्यावसायिक जीवन की बातें अनेक लोगों से कर लेता हैं, लेकिन ‘मन की बात’ परिवारजनों या किसी बहुत ख़ास व्यक्ति से ही करता है।
ऐसे में, यदि प्रधानमंत्री देशवासियों से अपने संवाद को ‘मन की बात’ के रूप में परिभाषित करते हैं, तो इससे यही संदेश निकलता है कि प्रधानमंत्री देशवासियों को अपना परिवार कहते भर नहीं हैं, अपितु ह्रदय की गहराइयों से इस बात को मानते हुए अपने जीवन में उतार भी चुके हैं। नेतृत्व में इस प्रकार की दृष्टि होने पर ही जनसंवाद के किसी कार्यक्रम को ‘मन की बात’ जैसा नाम मिलता है।
‘मन की बात’ कार्यक्रम को लेकर यदाकदा यह प्रश्न देखने को मिलता है कि यह एकतरफा संवाद का कार्यक्रम है यानी कि इसमें केवल प्रधानमंत्री अपने मन की कहते हैं, जनता के मन की नहीं सुनते। यह बात सरासर गलत है। ‘मन की बात’ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जनसंवाद के एक ऐसे मॉडल के रूप में विकसित किया गया है, जिसमें पहले वे पूरे देशवासियों के मन की सुनते हैं और फिर अपने मन की बात रखते हैं। ‘मन की बात’ के प्रत्येक एपिसोड से पूर्व MyGov से लेकर Namo App तक विभिन्न माध्यम से लोग प्रधानमंत्री तक अपनी समस्याओं, प्रश्नों, अनुभवों और सुझावों को पहुँचाते हैं, जिनकी चर्चा प्रधानमंत्री अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में करते रहे हैं।
यह भी उल्लेखनीय होगा कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान जब देश भय, आशंका और हताशा से घिरा हुआ था, तब प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देश के चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों तथा कोरोना को हराने वाले अनेक सामान्य लोगों से संवाद करते हुए न केवल उनके कार्यों को सराहा अपितु देशवासियों को भी कोविड के विरुद्ध मजबूती से लड़ने के लिए प्रेरित किया। इन सब तथ्यों के आलोक में ‘मन की बात’ को एकतरफा संवाद का कार्यक्रम कहना ठीक नहीं लगता।
‘मन की बात’ का जो सबसे बड़ा लाभ दिखाई देता है वो ये है कि इस कार्यक्रम ने लोक और तंत्र के बीच की दूरी को समाप्त करते हुए उन्हें संवाद के समान धरातल पर खड़ा करने का सराहनीय कार्य किया है। आज देश के किसी भी नागरिक के लिए प्रधानमंत्री कोई पहुँच से बाहर के व्यक्ति नहीं रह गए हैं। दूसरा, इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विभिन्न मुद्दों पर जनता को जागरूक करने का भी प्रयास करते रहे हैं।
इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता, जल संरक्षण, स्वास्थ्य आदि के मुद्दों पर चर्चा की जा चुकी है। इसके अलावा, वे अक्सर देश के नागरिकों के अनुभवों, सफलताओं और उनके जीवन से जुड़ी प्रेरणास्पद कहानियों को भी साझा करते हैं। विशेष बात यह भी है कि इस पूरे संवाद की भाषा-शैली अत्यंत सहज, सामान्य और आत्मीय होती है, जिसे सुनते हुए लोग ‘मन की बात’ से एक जुड़ाव अनुभव करने लगते हैं।
समग्रतः यह कहा जा सकता है कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नेतृत्व और नागरिकों के मध्य संवाद की एक नई इबारत लिखने का काम किया है। निश्चित रूप से यह कार्यक्रम देश के लोकतंत्र की मजबूती को और अधिक बल देने का काम करेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)