बुद्ध विहार की 86वीं वर्षगांठ केवल एक परंपरा का उत्सव नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनर्स्थापित करने का संकल्प – डॉ अनिर्बान गांगुली
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन एवं महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया (नई केंद्र) के संयुक्त तत्वावधान में बुद्ध विहार की 86वीं वर्षगांठ का भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभिन्न गणमान्य अतिथियों ने सहभागिता की और बौद्ध धर्म, पालि भाषा तथा भारत की आध्यात्मिक विरासत पर विचार साझा किए।
इस दौरान उपस्थित सभी अतिथियों ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में पालि भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए धन्यवाद भी ज्ञापित किया। इस निर्णय से बौद्ध ग्रंथों और शिक्षाओं के संरक्षण को एक नई दिशा मिली है। यह निर्णय न केवल भारत के लिए बल्कि सम्पूर्ण बौद्ध समाज के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है।
कार्यक्रम की शुरुआत में सारनाथ केंद्र के प्रभारी भिक्खु सुमित्थानंद थेरो ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने कहा कि बुद्ध विहार की 86वीं वर्षगांठ पर हम सभी श्रद्धेय अतिथियों का हार्दिक स्वागत करते हैं। यह आयोजन हमारी सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है, जो बौद्ध धर्म की शिक्षाओं और उसकी प्रासंगिकता को पुनर्स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने पालि भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देकर हमारी प्राचीन परंपराओं को सम्मानित किया है। यह निर्णय बौद्ध धर्म और अध्ययन की समृद्ध परंपरा को और सशक्त करेगा। उनके प्रति हम हृदय से कृतज्ञ हैं।
इस अवसर पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के चेयरमैन डॉ अनिर्बान गांगुली ने कहा कि बुद्ध विहार की 86वीं वर्षगांठ केवल एक परंपरा का उत्सव नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनर्स्थापित करने का संकल्प भी है। भारत सदियों से बौद्ध संस्कृति और शिक्षा का केंद्र रहा है, और आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हम पुनः उस गौरवशाली युग की ओर बढ़ रहे हैं।
डॉ गांगुली ने बताया कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के 10 दिन के भीतर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनः उद्घाटन / पुनर्स्थापना किया. नालंदा विचार का प्रतिनिधित्व करता है, नालंदा परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में नालंदा की पुनर्स्थापना निःसंदेह बौद्ध विचारों की, बौद्ध दर्शन की पुनर्स्थापना है और साथ साथ बाबा साहेब अम्बेडकर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है. आज जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को नए सिरे से स्थापित कर रहा है, तब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में इस दिशा में अभूतपूर्व कार्य हो रहा है। उन्होंने भारत की प्राचीन परंपराओं को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया है।
डॉ गांगुली ने कहा कि जब हम बौद्ध दर्शन और पालि भाषा के संरक्षण की बात करते हैं, तो हमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के योगदान को स्मरण करना चाहिए। 11 वर्ष के उनके अध्यक्षीय कार्यकाल में ही बौद्ध धर्म, दर्शन और पालि भाषा पर सर्वाधिक कार्य हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी जी के नेतृत्व में कलकत्ता विश्वविद्यालय में पहला पालि स्टडी डिपार्टमेंट स्थापित हुआ।
डॉ गांगुली ने कहा कि बुद्ध का संदेश अहिंसा, करुणा और विश्व-कल्याण का संदेश है। हमें इसे अपनाने और प्रचारित करने का संकल्प लेना चाहिए। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस दिशा में जो महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, वे हमारे गौरवशाली अतीत को वर्तमान से जोड़ने का माध्यम हैं। हम उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और आशा करते हैं कि भारत इसी मार्ग पर आगे बढ़ता रहेगा।
प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने बौद्ध धर्मस्थलों के पुनरुद्धार, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सर्किट के विकास और वैश्विक स्तर पर बौद्ध संस्कृति के प्रचार-प्रसार की दिशा में जो कदम उठाए हैं, वे ऐतिहासिक हैं।
सरदार इकबाल सिंह लालपुरा (चेयरमैन – राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग) ने कहा कि गौतम बुद्ध के विचार न केवल धार्मिक आस्था का विषय हैं, बल्कि वे संपूर्ण मानवता के मार्गदर्शक भी हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें प्रेम, समानता और परोपकार का संदेश देती हैं। आज, जब पूरी दुनिया अनेक सामाजिक एवं सांस्कृतिक चुनौतियों से जूझ रही है, ऐसे में बुद्ध के विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
मैं महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया को इस उल्लेखनीय आयोजन के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ, जिन्होंने इस विरासत को सहेजने और आगे बढ़ाने का कार्य किया है। साथ ही, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ, जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने में निरंतर कार्यरत है।
डॉ थीच हांह चाह (सलाहकार – अंतर्राष्ट्रीय मामले, शारदा यूनिवर्सिटी) ने कहा कि बुद्ध का संदेश पूरी मानवता के लिए कल्याणकारी है। भारत ने बौद्ध संस्कृति को सहेजने और विश्वभर में इसका प्रचार-प्रसार करने में सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है।
सुश्री प्रियंगा विक्रमसिंघे (हाईकमिशनर – श्रीलंका टू इंडिया) ने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच आध्यात्मिक संबंधों की जड़ें गहरी हैं। बौद्ध धर्म इन दोनों देशों को जोड़ने वाली एक मजबूत कड़ी है। निःसंदेह प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के प्रयासों से हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में मदद मिलेगी और भारत-श्रीलंका के बौद्ध अनुयायियों को एक नया संबल मिलेगा।
प्रो. बिमलेंद्र कुमार (उपाध्यक्ष – महाबोधि सोसाइटी) ने कहा कि बुद्ध की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सदियों पहले थीं।
प्रो. धम्मदीप वानखेड़े (असिस्टेंट प्रोफेसर) ने बताया कि बुद्ध का मार्ग करुणा और ज्ञान का मार्ग है। बुद्ध के संदेश ने पूरी मानवता को शांति और सौहार्द का मार्ग दिखाया है।
डॉ रजिंदर कुमार ने कहा कि गौतम बुद्ध का दर्शन समता, करुणा और बंधुत्व का प्रतीक है। उन्होंने समाज को संघर्ष नहीं, बल्कि संवाद और सहअस्तित्व का मार्ग दिखाया। आज, जब विश्व अनेक सामाजिक एवं आध्यात्मिक चुनौतियों से गुजर रहा है, ऐसे समय में बुद्ध के विचारों को अपनाना और प्रचारित करना और भी आवश्यक हो जाता है।
प्रो. मनीष कुमार (उपाध्यक्ष – महाबोधि सोसाइटी) ने कहा कि भगवान बुद्ध का जीवन और उपदेश हमें न केवल आध्यात्मिक जागरूकता की ओर ले जाते हैं, बल्कि समाज में सद्भाव और समरसता की स्थापना का मार्ग भी दिखाते हैं। वर्तमान समय में, जब दुनिया विभाजन और अशांति की ओर बढ़ रही है, बुद्ध के विचार हमें एकजुट करने का कार्य कर सकते हैं।
मैं इस आयोजन के सफल आयोजन के लिए महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन को हार्दिक बधाई देता हूँ। इन संस्थाओं का योगदान न केवल बौद्ध संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह संपूर्ण मानवता को सही दिशा देने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है।
कार्यक्रम के समापन अवसर पर सभी अतिथियों ने गौतम बुद्ध के शांति, करुणा और अहिंसा के संदेश को आत्मसात करने का संकल्प लिया। इस आयोजन ने न केवल बौद्ध संस्कृति की महत्ता को रेखांकित किया, बल्कि सामाजिक समरसता और सौहार्द को भी प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के संयुक्त प्रयासों की सराहना की गई, जिन्होंने इस ऐतिहासिक कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कार्यक्रम के अंत में धम्म प्रवचन और शांति प्रार्थना का आयोजन किया गया, जिसमें उपस्थित श्रद्धालुओं ने विश्व शांति और सद्भाव की प्रार्थना की। समस्त आगंतुकों एवं विद्वानों ने बुद्ध विहार की इस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हुए कार्यक्रम का समापन किया।
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