कोविड महामारी की वजह से घोषित चार चरणों के लॉक डाउन के बाद अब देश ‘अनलॉक 1.0’ के पहले चरण में प्रवेश कर चुका है. दूसरे चरण का लॉक डाउन समाप्त होने के बाद जब तीसरे चरण की घोषणा हुई थी तभी ‘अनलॉक’ की तरफ बढ़ने के संकेत मिलने लगे थे. देश अब लॉक डाउन से निकलकर कोविड की चुनौतियों से लड़ते हुए कामकाज और जनजीवन को पटरी पर लाने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है. कुछ पाबंदियों के साथ ज्यादातर बाजार, कारोबार और संस्थान खुल गये हैं. सरकार ने भी परिस्थितियों से उभरी बहुआयामी चुनौतियों के खिलाफ चौतरफा लड़ाई लड़ने की मंशा जाहिर कर दी है.
कुछ लोगों के मन में यह सवाल है कि ऐसे समय में लॉक डाउन क्यों खोला जा रहा जब कोविड के मामले बढ़ रहे हैं ? कुछ लोग यह सवाल करते भी दिख रहे हैं कि जब कोविड संक्रमित लोगों की संख्या सैकड़ों में थी तब लॉक डाउन लगाया गया और जब यह संख्या लाखों में पहुंच गयी तब हटाने का क्या औचित्य है ?
इन सवालों पर विचार करते हुए हमें इस सच्चाई को स्वीकारना होगा कि ‘लॉक डाउन’ कोरोना वायरस का ‘वैक्सीन’ नहीं है. लॉक डाउन इसलिए भी नहीं लगाया गया कि इससे कोरोना ठीक हो जाएगा. लॉक डाउन का पहला लाभ यह हुआ कि कोरोना के सामुदायिक प्रसार की तीव्रता को नियंत्रित करने में दुनिया की तुलना में भारत को अधिक कामयाबी मिली. वैक्सीन इजाद होने की अनिश्चितता की स्थिति में भारत जैसे देश के लिए यह जरूरी था कि वह अपने स्वास्थ्य ढांचे को कोरोना की वजह से आने वाली भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार कर सके. भारत ने स्वयं को इस लिहाज से तैयार किया है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि लॉक डाउन का नीतिगत निर्णय सरकार ने नहीं लिया होता तो कोविड अस्पतालों की उपलब्धता, पर्याप्त जांच की सुविधा, कम्युनिटी ट्रांसमिशन, जागरूकता की कमी जैसी चुनौतियाँ एकसाथ खड़ी हो जाती. 24 मार्च को भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों के बढ़ने की रफ़्तार 21.6 फीसद थी, जो अब 5 फीसद से नीचे आ चुकी है. इस आधार पर देखें तो यदि लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या अप्रैल में ही 2 लाख से अधिक चुकी होती.
लॉक डाउन की वजह से इसके प्रसार की गति को कारगर ढंग से रोकने में देश को सफलता मिली है. इसका एक बड़ा लाभ यह हुआ है कि सरकार ने भविष्य में खड़ी होने वाली चुनौतियों के लिए नेशनल हेल्थ सिस्टम के स्तर पर तैयारी की है.
कोविड के खिलाफ लड़ाई में जबतक कारगर इलाज नहीं खोज लिया जाता तबतक इस वायरस से होने वाले नुकसान को न्यूनतम करने की नीति पर चलना सभी देशों की मजबूरी है. इस मामले में भारत की नीतियां दुनिया के अनेक साधनसंपन्न देशों की तुलना में अधिक कारगर नजर आती हैं. लॉक डाउन के दौरान सरकार ने वर्तमान स्थिति को संभालते हुए भविष्य में उभरने वाली चुनौतियों के लिए कई स्तरों पर बेहतर तैयारियां की हैं. वर्तमान में भारत में 1000 के आसपास कोविड के लिए आरक्षित अस्पताल हैं. लगभग 60 हजार वेंटिलेटर की सुविधा उपलब्ध है. प्रतिदिन 3 लाख पीपीई किट का उत्पादन हो रहा है. देश में 600 से अधिक टेस्टिंग लैब हैं, जिनमें प्रतिदिन 1 लाख 40 हजार तक सेंपल की जाँच हो रही है. यदि लॉक डाउन नहीं हुआ होता तो समय रहते इतनी व्यापक संरचना नहीं तैयार हो पाती.
सही समय पर कारगर निर्णय लेने का लाभ यह भी हुआ कि इटली जैसी स्थिति भारत में नहीं पैदा हुई. वर्तमान की स्थिति में भी भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में नजर आता है. एकतरफ जहां दुनिया में कोरोना संक्रमित मरीजों की मृत्युदर बहुत अधिक है वहीं भारत में यह आंकड़ा 3 फीसद से कम है. भारत इस मामले में भी कोरोना के खिलाफ बेहतर स्थिति में कहा जा सकता है कि यहां एक्टिव संक्रमित मरीज और ठीक हो चुके लोगों की संख्या लगभग बराबर हो चुकी है. 4 जून के आंकड़ों में एक्टिव संक्रमित मरीजों की संख्या 1 लाख 7 हजार है तो वहीं ठीक हो चुके लोगों की संख्या 1 लाख 5 हजार दर्ज हुई है. देश में लोगों के ठीक होने की दर लगातार बढ़ते हुए 50 फीसद के करीब पहुंच चुकी है. शुरुआती लॉक डाउन नहीं हुआ होता तो शायद कोरोना का प्रसार गांवों तक हो चुका होता. किंतु इन दो महीनों में गाँव सजग और सतर्क हुए तथा बाहर से करोड़ों श्रमिकों के वापस जाने के बावजूद कोरोना का प्रसार गांवों में नहीं हुआ है.
अगर बात अनलॉक 1.0 की करें तो यह भी एक जरुरी नीतिगत कदम है. एक सौ तीस करोड़ की आबादी वाले देश को असीमित समय तक लॉक डाउन में नहीं रखा जा सकता. कामकाज को अधिक समय तक ठप रखने से देश को दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. सरकार और समाज के मदद की एक सीमा है. उस सीमा को लांघने की कोशिश करने से देश की आर्थिक बुनियाद में दरार पैदा होगी. ऐसे में यह जरुरी है कि सावधानी और सतर्कता के अनुशासन का पालन करते हुए अब कामकाज को शुरू किया जाए.
दो महीने के लॉक डाउन में लोगों ने कोविड काल में जीवन के नए तौर-तरीकों को सीख लिया है. सतर्कता के नए अभ्यास लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं. कामकाज की पद्धति में भी बदलाव आजमाया जा चुका है. कोरोना के खिलाफ स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से जूझने के लिए देश अधिक सक्षम हुआ है. अब समय आ गया है भविष्य की चुनौतियों की तरफ बढ़ा जाए. लॉक डाउन करके कोरोना के दौर में सटीक निर्णयों से बेहतर परिणाम लाने वाली मोदी सरकार ने अनलॉक की तरफ बढ़कर भविष्य के भारत की नई चुनौतियों के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए जरूरी कदम उठाये हैं. प्रधानमंत्री मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ की कल्पना में भविष्य के बदलावों की आहट सुनाई दे रही है.
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं. लेख में व्यक्त उनके विचार निजी हैं.)
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