प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति ने अपनी अभूतपूर्व और क्रांतिकारी दिशा को प्राप्त किया है। बीते एक दशक में भारत ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई है। प्रधानमंत्री मोदी जी की विदेश नीति न केवल भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करती है, बल्कि “वसुधैव कुटुंबकम” के आदर्श को साकार करते हुए वैश्विक शांति, समृद्धि और स्थिरता की दिशा में एक नया मार्ग प्रशस्त करती है।
वैश्विक परिदृश्य में भारत की पुनर्स्थापना
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में भारत ने अपने पारंपरिक साझेदारों के साथ रिश्तों को मजबूती प्रदान करते हुए नए रणनीतिक सहयोगियों की ओर भी कदम बढ़ाए हैं। उनकी “पड़ोसी प्रथम” (नेबरहुड फर्स्ट) नीति के तहत दक्षिण एशियाई देशों के साथ आर्थिक, सांस्कृतिक और सामरिक संबंधों को गहराई मिली। 2014 में शपथ ग्रहण समारोह में SAARC देशों के नेताओं को आमंत्रित करना इस नीति का एक ऐतिहासिक उदाहरण है।
इसके साथ ही, “एक्ट ईस्ट” नीति के तहत भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया के आसियान देशों के साथ संबंधों को प्रगाढ़ बनाया। यह नीति भारत की पूर्वी सीमाओं को सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के एक मजबूत सूत्र में बांधती है। इसी क्रम में 2018 में गणतंत्र दिवस पर सभी 10 आसियान देशों के प्रमुखों की उपस्थिति इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक प्रभावशाली और मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। उनकी दूरदर्शी नीतियों और कुशल कूटनीति के कारण आज भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है। श्री मोदी ने भारतीय सभ्यता और मूल्यों को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि भारत की आवाज सुनी जाए और उसे गंभीरता से लिया जाए।
2014 में प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से श्री मोदी ने भारत की विदेश नीति में एक नई ऊर्जा का संचार किया। उनकी पहल ने भारत को केवल एक सहभागी देश के रूप में नहीं, बल्कि एक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित किया है। चाहे वह जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हो, विकासशील देशों की आवाज उठाने का कार्य हो, या फिर वैश्विक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से संबंधित चर्चाएं हों, भारत ने हर क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है।
2023 में भारत ने पहली बार G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। यह न केवल भारत की कूटनीतिक सफलता थी, बल्कि “वसुधैव कुटुंबकम” की भारतीय भावना को विश्व मंच पर प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का एक अवसर भी था। इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, वैश्विक आर्थिक चुनौतियों और विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहयोग जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत ने ठोस नेतृत्व प्रदान किया। श्री मोदी ने वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज को एक नई पहचान दी, जिसमें भारत को उन देशों का प्रतिनिधि माना गया जो आज तक वैश्विक निर्णयों में उपेक्षित रहे थे।
श्री मोदी की कूटनीति का एक बड़ा उदाहरण संयुक्त राष्ट्र में भारत की सक्रिय भूमिका है। भारत ने अपनी स्थायी सदस्यता के लिए अभियान तेज किया और विश्व को यह विश्वास दिलाया कि एक बहुध्रुवीय दुनिया में भारत का स्थायी सदस्य बनना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गैर-स्थायी सदस्य के रूप में शांति स्थापना, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और विकासशील देशों के अधिकारों की पैरवी की।
जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता भी श्री मोदी के नेतृत्व में विश्वभर में सराही गई। 2015 के पेरिस समझौते से लेकर 2021 के ग्लासगो सम्मेलन तक, भारत ने अपने जिम्मेदाराना दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा “पंचामृत” की घोषणा—2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य—दिखाता है कि भारत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने में सक्षम है।
इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक आर्थिक सहयोग को भी एक नई दिशा दी। भारत की डिजिटल क्रांति, जैसे आधार और यूपीआई, ने दुनिया के सामने एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया जिसे कई देशों ने अपनाया। भारत की मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलें वैश्विक निवेशकों को आकर्षित कर रही हैं, जिससे भारत का आर्थिक प्रभाव बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व इस बात का प्रमाण है कि सही दृष्टिकोण और मेहनत से भारत जैसे विकासशील देश भी विश्व मंच पर अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। उनका विजन केवल भारत के विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि एक ऐसे विश्व की कल्पना करता है जहां शांति, समृद्धि और समावेशिता हो। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका श्री मोदी के नेतृत्व की दूरदर्शिता और भारत की वैश्विक छवि को मजबूत करने के उनके अथक प्रयासों का परिणाम है।
आज, जब भी वैश्विक चुनौतियों की बात होती है, भारत का नाम न केवल उन देशों में शामिल होता है जो समाधान का हिस्सा हैं, बल्कि उन नेताओं में भी शामिल होता है जो इन समाधान की दिशा तय करते हैं। यह न केवल भारत के लिए गौरव की बात है, बल्कि विश्व को भी “नए भारत” की शक्ति और क्षमता का एहसास कराता है।
वैक्सीन मैत्री अभियान: भारत की वैश्विक मानवता की अनूठी मिसाल
कोविड-19 महामारी ने जब पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था, तब एक ऐसे वैश्विक नेतृत्व की आवश्यकता महसूस हो रही थी जो केवल अपने देश की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की भलाई के लिए प्रयास करे। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने इस चुनौती को अवसर में बदलते हुए दुनिया के सामने एक नई मानवतावादी दृष्टि प्रस्तुत की। उनके मार्गदर्शन में शुरू किया गया “वैक्सीन मैत्री अभियान” न केवल भारत की वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षमताओं का प्रतीक बना, बल्कि यह पूरे विश्व को यह दिखाने में सफल रहा कि भारत एक सशक्त और दयालु राष्ट्र है।
प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का परिणाम यह रहा कि जब दुनिया के कई देश वैक्सीन उत्पादन के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब भारत ने अपने व्यापक फार्मास्युटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और वैज्ञानिक दक्षता का उपयोग करते हुए रिकॉर्ड समय में कोविड-19 वैक्सीन तैयार की। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक जैसे संस्थानों के सहयोग से निर्मित कोविशील्ड और कोवैक्सिन ने न केवल भारत के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान की, बल्कि वैश्विक समुदाय की जरूरतों को भी पूरा किया।
श्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने जनवरी 2021 में “वैक्सीन मैत्री अभियान” की शुरुआत की। इस अभियान का उद्देश्य था विश्व के विभिन्न देशों, विशेष रूप से विकासशील और गरीब देशों, को कोविड-19 वैक्सीन उपलब्ध कराना। इस अभियान के तहत भारत ने 100 से अधिक देशों को वैक्सीन की करोड़ों खुराकें उपलब्ध कराईं। इनमें नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे पड़ोसी देश शामिल थे, साथ ही अफ्रीकी, कैरेबियाई और दक्षिण अमेरिकी देशों को भी मदद दी गई। यह न केवल कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि वैश्विक महामारी के समय मानवता की सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण भी था।
वैक्सीन मैत्री अभियान के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का यह विश्वास था कि “विश्व एक परिवार है” और इस संकट की घड़ी में मानवता की रक्षा करना सभी का कर्तव्य है। इस दृष्टिकोण को भारत की प्राचीन सोच “वसुधैव कुटुंबकम” से प्रेरित माना गया। जहां कई शक्तिशाली राष्ट्र अपने वैक्सीन भंडारण में व्यस्त थे, वहीं भारत ने बिना किसी भेदभाव के हर उस देश की मदद की जिसे इसकी जरूरत थी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पहल को व्यापक सराहना मिली। संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत की इस पहल को “वैश्विक एकजुटता” का उदाहरण बताया। कई देशों के प्रधानमंत्रियों और राष्ट्राध्यक्षों ने भारत का धन्यवाद किया और इसे असाधारण कूटनीतिक प्रयास करार दिया।
कोविड-19 वैक्सीन मैत्री अभियान ने यह भी साबित किया कि भारत न केवल वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर है, बल्कि वह अपनी आत्मनिर्भरता का उपयोग पूरी दुनिया की भलाई के लिए कर सकता है। इस अभियान ने वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति को और मजबूत किया और यह स्पष्ट किया कि भारत केवल एक उभरती हुई शक्ति नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार और संवेदनशील वैश्विक नेता है।
श्री नरेन्द्र मोदी की इस पहल ने भारत को “दुनिया की फार्मेसी” के रूप में स्थापित किया और यह दिखाया कि जब संकट गहराता है, तब भारत मानवता के पक्ष में खड़ा होता है। वैक्सीन मैत्री अभियान केवल टीके के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं था; यह मानवता के प्रति भारत के सच्चे संस्कार और कर्तव्य का प्रतीक था। यह प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है, जिसने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को एक नई उम्मीद दी।
निःसंदेह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति ने भारत को एक आत्मनिर्भर, सशक्त और जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया है। उनकी नीतियां न केवल भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करती हैं, बल्कि विश्व को एकजुट और समृद्ध बनाने की दिशा में अग्रसर हैं। “वसुधैव कुटुंबकम” के सिद्धांत पर आधारित यह विदेश नीति, भारत को एक सच्चे विश्वगुरु की भूमिका में स्थापित करने की क्षमता रखती है।
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