देश में कोरोना संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। इतना ही नहीं वह पुलिस, प्रशासन से लेकर मीडिया तक से संवाद कर कोरोना की चुनौती से निपटने में जुटे हैं। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मार्च को पुणे के नायडू अस्पताल की नर्स छाया से फोन पर बात की। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संक्रमण के इलाज में जुटे स्वास्थ्यकर्मियों की प्रशंसा की तो छाया ने बेबाकी से कहा “आप तो हमारे देवता हैं, पूरे देश को आपके जैसा प्रधानमंत्री चाहिए।”
देखा जाए तो प्रधानमंत्री के प्रति देवता वाला संबोधन अकारण नहीं है। नरेंद्र मोदी देश के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फैलते कोरोना संक्रमण के प्रति संवेदनशील हैं। तभी तो उन्होंने कोरोना से लड़ने के लिए सार्क देशों का साझा मंच बनाने की पहल की। कोरोना के खिलाफ संयुक्त रणनीति बनाने के लिए प्रधानमंत्री ने अपने साथ सार्क के सातों देशों को जोड़ने की अनूठी पहल की। वीडियो कांफ्रेसिंग के दौरान मोदी ने सार्क देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए कोरोना को हराने का मूल मंत्र समझाया। उन्होंने कहा कि सभी सार्क देशों को सावधानी बरतनी होगी और कोरोना वायरस से घबड़ाने की नहीं बल्कि उससे निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने कोविड-19 इमरजेंसी फंड बनाने की पहल की है जो सार्क देशों के स्वैच्छिक योगदान पर आधारित है। उन्होंने भारत की ओर से एक करोड़ डॉलर के अनुदान की भी घोषणा की।
सम्मेलन में श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष मौजूद थे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने खराब स्वास्थ्य के बावजूद इसमें हिस्सा लिया। हर बार की तरह इस बार भी पाकिस्तान का सार्क विरोधी रवैया उजागर हुआ। पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री इमरान खान की जगह एक दागी राज्य मंत्री डॉ. जफर मिर्जा को भेज दिया। मिर्जा के खिलाफ पाकिस्तान में दो करो़ड़ फेस मास्क (एन-95 मास्क) की तस्करी में लिप्त होने की जांच चल रही है। मिर्जा यहां भी कश्मीर राग अलापने से नहीं चूके। पाकिस्तान कश्मीर का द्विपक्षीय मुद्दा उठाते हुए कोरोना वायरस के खतरे से निपटने के लिए जम्मू-कश्मीर में सभी तरह की पाबंदी हटाने की मांग की। भारत ही नहीं सार्क के दूसरे सदस्य देशों ने भी पाकिस्तान की इस हरकत की कड़ी निंदा की।
गौरतलब है कि 1985 में सार्क का गठन दक्षिण एशियाई देशों के आपसी विवादों को परे रखकर आर्थिक विकास और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। सार्क सम्मेलन की बैठकों के लिए दो नियम तय किए गए हैं। पहला, सार्क के मंच से कोई द्विपक्षीय मुद्दा नहीं उठाया जाएगा। दूसरा, सार्क में सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाएंगे। एक भी देश की असहमति की दशा में उस मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ा जाएगा। यह नियम सार्क को आपसी विवादों से बचाने के लिए बनाए गए थे लेकिन पाकिस्तान ने इन दोनों नियमों का जमकर दुरूपयोग किया और सार्क को द्विपक्षीय मुद्दों को उठाने का मंच बना डाला। दूसरे, उसने सार्क सम्मेलनों से पारित होने वाले प्रगतिशील और जनोपयोगी प्रस्ताओं पर आम सहमति नहीं बनने दी। उदाहरण के लिए सार्क का आतंकवाद विरोधी कन्वेशन पाकिस्तान के विरोध के कारण अब तक लागू नहीं हो पाया है। जबकि सार्क के सभी देश आतंकवाद-अलगाववाद से पीड़ित हैं और सभी देशों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह कन्वेंशन उपयोगी है। पाकिस्तान के अड़ियल व्यवहार का नतीजा यह हुआ कि जहां दुनिया भर के आर्थिक संगठन राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर आर्थिक क्षेत्र में अग्रसर हुए वहीं दक्षिण एशिया में राजनीति अर्थनीति का गला दबाती रही।
सार्क की तरह जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के कई शीर्ष नेताओं से वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से निपटने के समन्वित उपायों पर चर्चा की। वीडियो कांफ्रेंस के जरिए सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा दुनिया में समृद्धि तभी आएगी जब हम आर्थिक लक्ष्यों की जगह मानवता को लक्ष्य बनाएं। प्रधानमंत्री ने इसके साथ ही दुनिया भर में कहीं अधिक अनुकूल, प्रतिक्रियात्मक और सस्ती मानव स्वास्थ्य सुविधा प्रणाली विकसित करने की वकालत की। प्रधानमंत्री ने मानव विकास के लिए चिकित्सा क्षेत्र में हो रहे शोध को साझा करने की अपील की। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने जी-20 नेताओं से समाज के कमजोर वर्गों की कठिनाइयों को कम करने का आग्रह किया। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन को मजबूत करने और आर्थिक कठिनाइयां कम करने की योजना पर काम करने का आह्वान किया।
जी-20 के नेताओं ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सिर्फ क्षेत्रीय स्तर पर नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारत की भूमिका की सराहना की। सऊदी अरब की अध्यक्षता में हुई जी-20 की वर्चुअल बैठक में कोरोना वायरस से निपटने और इसके कारण विश्व अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान में मदद के लिए पांच ट्रिलियन डॉलर लगाने का फैसला किया गया।
सम्मेलन के दौरान भारत ने दूरगामी कूटनीतिक पहले करते हुए चीन का समर्थन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 मंच से कहा कि कोरोना वायरस के जन्म स्थान पर चर्चा न करके इससे निपटने के उपायों पर चर्चा होनी चाहिए। इसके बाद से ही वैश्विक नेताओं में कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहने की प्रवृत्ति में कमी आई। इतना ही नहीं कोरोना को लेकर मोदी और शी जिनपिंग के भाषणों में समानता दिखी। गौरतलब है कि लंबे समय से चीन वैश्विक मंचों पर भारत विरोधी रवैया अपनाए हुए है। ऐसे में चीन के प्रति भारत का बदला हुआ व्यवहार चीन को अपनी भारत विरोधी नीति पर पुनर्विचार करने पर विवश करेगा।
समग्रत: कोरोना संक्रमण की चुनौती से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घरेलू मोर्चे से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक जिस तरह अग्रणी भूमिका निभाई उससे भारत का महत्व बढ़ा है। अब भारत दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं का पिछलग्गू न रहकर ठोस पहल करने वाला देश बन चुका है। कहीं न कहीं कोरोना आपदा से निपटने में भारत की छवि विश्व के एक नेतृत्वकर्ता देश के रूप में उभरी है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)
(The views expressed are the author's own and do not necessarily reflect the position of the organisation)