जब हम कहते हैं कि भारत एक संवैधानिक राष्ट्र है, तो इसका सीधा अर्थ है कि देश में संविधान सर्वोपरि है। भारत की संवैधानिक यात्रा में समय-समय पर अनेक सुधार किए गए हैं जिनका उद्देश्य राष्ट्रहित में समानता, न्याय और सामाजिक समरसता सुनिश्चित करना रहा है। दुर्भाग्यवश, अतीत में एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण हेतु संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को भी दरकिनार किया गया, शाहबानो मामला इसका प्रमुख उदाहरण है।
वक़्फ़ व्यवस्था में ऐतिहासिक विधायी पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 8 अगस्त, 2024 को संसद के मानसून सत्र में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 तथा मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 लोकसभा में प्रस्तुत किए। इनमें से पहला विधेयक 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन हेतु था, जबकि दूसरा 1923 के औपनिवेशिक वक्फ अधिनियम को समाप्त करने के लिए लाया गया था। इन विधेयकों का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, दक्षता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना है।
विधेयकों को लेकर व्यापक संसद-विवाद के पश्चात, इन्हें 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया। समिति ने विपक्ष सहित सभी सुझावों पर विचार कर विधेयकों को अंतिम रूप दिया। हाल ही में, संसद के दोनों सदनों ने इस संशोधित विधेयक को पारित कर भारत में वक्फ प्रणाली के पुनर्गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
वक़्फ़ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान चुनौतियाँ
‘वक़्फ़’ शब्द अरबी भाषा से आया है, जिसका अर्थ है— सुरक्षित या रोकी गई संपत्ति। मुग़लकाल में वक्फ संपत्तियाँ धार्मिक व धर्मार्थ कार्यों के लिए दी जाती रहीं। औपनिवेशिक शासन ने 1923 में वक्फ अधिनियम पारित किया, जिससे मुस्लिम समुदाय को एकजुट करने का राजनीतिक उद्देश्य जुड़ा था। आज़ादी के बाद भारत सरकार ने 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन किया, जिसे 1995 व 2013 में संशोधित कर और अधिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
परिणामस्वरूप, वक्फ बोर्ड भारतीय रेलवे और सेना के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा ज़मींदार बन गया। यह संपत्तियाँ लगभग 9.4 लाख एकड़ भूमि में फैली 8.7 लाख से अधिक संपत्तियाँ हैं, जिनकी अनुमानित मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपये है। हालांकि जनकल्याण हेतु बनाई गई यह व्यवस्था अब भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और दुरुपयोग की शिकार हो चुकी है।
पुराने कानून की समस्याएं:
- वक्फ संपत्तियों की अपरिवर्तनीयता और आमजन की ज़मीनों पर विवाद
- प्रशासनिक एवं वित्तीय कुप्रबंधन, मुक़दमेबाज़ी
- न्यायिक निगरानी का अभाव
- धारा 40 का दुरुपयोग, जिसके तहत किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करना
- सर्वेक्षण और रिकार्ड का अभाव
- एक धर्म विशेष के लिए पृथक कानून की संवैधानिक वैधता पर प्रश्न
प्रमुख विवादित मामलों की झलक:
वक़्फ़ बोर्ड की मौजूदा व्यवस्था में आम जनता को लगातार कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा आम नागरिकों के बहुत सारे मामले आज भी न्यायालय में लंबित हैं जिसमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार है -तमिलनाडु का थिरुचेंथुरई गांव जहाँ के किसान अपना कर्ज चुकाने के लिए अपनी ज़मीन बेच नहीं सकते क्योंकि इस गाँव की ज़मीन वक़्फ़ के पास है दूसरा बेंगलुरु ईदगाह मैदान, सूरत नगर निगम और बेट द्वारका में द्वीप जैसे हज़ारों मामले आज भी विचाराधीन हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक, 2025: क्रांतिकारी प्रावधान
सरकार द्वारा प्रस्तावित एकीकृत वक्फ प्रबंधन, अधिकारिता, दक्षता और विकास अधिनियम, 2025 में निम्नलिखित प्रमुख सुधार प्रस्तुत किए गए:
- वक्फ दानदाता वही हो सकता है, जो कम-से-कम पाँच वर्षों से इस्लाम धर्म का अनुयायी हो
- सरकारी संपत्ति को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकेगा, और स्वामित्व विवादों का निपटारा जिला कलेक्टर करेगा
- केंद्रीय वक्फ परिषद में 2 गैर-मुस्लिम और 2 मुस्लिम महिला सदस्यों को शामिल किया जाएगा, जिससे विविध प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा तथा नारी सशक्तीकरण को बल मिलेगा
- अब वक्फ ट्रिब्यूनल के निर्णयों के विरुद्ध सिविल कोर्ट/हाईकोर्ट में अपील संभव होगी
- वित्तीय ऑडिट में केंद्र सरकार की भूमिका सुनिश्चित की गई है
- शिया, सुन्नी, बोहरा और अगाखानी संप्रदायों के लिए पृथक वक्फ बोर्ड बनाए जाएंगे
- वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण एवं सेंट्रल डेटा बेस बनाया जाएगा
वर्तमान में जब भारत तेज़ी से आधुनिक और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में उभर रहा है, तब 21वीं सदी के भारत को 19वीं सदी के कानून नहीं चला सकते। वक्फ अधिनियम में यह संशोधन ना केवल अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि पारदर्शिता, जवाबदेही और न्याय सुनिश्चित करेगा। इससे वक्फ संपत्तियों के सही उपयोग के साथ-साथ सामाजिक समरसता और राष्ट्रहित की दिशा में एक महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ा है।
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