देश के कई शहरों में चाइनीज वायरस की वजह से फिर से लॉकडाउन करना पड़ा है। औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों की वापसी की समस्या अभी भी बनी हुई है और उद्योगों में सुधार की रफ्तार भी अभी अपेक्षाकृत नहीं है, लेकिन भारत के बड़े क्षेत्र और उस पर निर्भर भारतीयों ने इस वायरस के दौर में भी बेहतरी की कहानी लिखनी शुरू कर दी है और वह क्षेत्र है कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र। भारत के सन्दर्भ में खेती की बात होते ही हम सबके ध्यान में, भारत एक कृषि प्रधान देश है, वाक्य जरूर आ जाता है और यह सच भी है क्योंकि अभी भी देश की 60 प्रतिशत के आसपास जनसंख्या कृषि और उससे क्षेत्रों पर ही निर्भर है और सबसे बड़ी बात यह भी है कि इस क्षेत्र में किसी दूसरे देश तो छोड़िए ज्यादातर जगह किसी दूसरे क्षेत्र पर बहुत ज्यादा निर्भरता नहीं है। यह बात मैं इसलिए लिख रहा हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब चाइनीज वायरस के प्रकोप से पीड़ित भारतीयों के लिए करीब 21 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का एलान किया तो उसका नाम आत्मनिर्भर भारत विशेष आर्थिक पैकेज अभियान दिया। इसके साथ ही लगातार प्रधानमंत्री वोकल फॉर लोकल, यानी स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की बात करते रहे हैं और चीन के साथ सीमा विवाद के बाद भारतीयों के मन में आत्मनिर्भर होने और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना अच्छे से स्थापित हो गया है। और, जब हम आत्मनिर्भर भारत या फिर स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की बात करते हैं तो खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों को मजबूत करने पर ध्यान सबसे पहले जाता है। खेती में भी अगर जैविक और हर्बल खेती की तरफ बढ़ते हैं तो बिना किसी विशेष प्रयास के आत्मनिर्भरता और स्थानीय उत्पादों का महत्व स्पष्टता से समझ आ जाता है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान विशेष पैकेज में केंद्र सरकार ने कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के लिए कई बड़ी घोषणाएं की हैं, लेकिन एक बेहद महत्वपूर्ण प्रयास इस पैकेज में दिखता है, जिसे सरकार और किसान ठीक से जमीन पर उतार पाए तो आत्मनिर्भर भारत की पक्की बुनियाद में हर्बल खेती विशेष स्थान बना सकती है। जैविक और हर्बल खेती दोनों पूरी तरह से अलग हैं, लेकिन इन दोनों में बहुत समानता है। समझने के लिए यह जान लें कि हर्बल खेती रसायनिक खादों से भी हो सकती है और जैविक खेती का मतलब पूरी तरह रसायनिक इस्तेमाल से मुक्त। हर्बल खेती में ऐसे पोधे की खेती जिससे किसी तरह से दवा बनाई जा सकती है या फिर उसका इस्तेमाल शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। अभी चाइनीज वायरस के दौर में हर्बल खेती का महत्व ज्यादा बढ़ गया है। इस समय भारतीय हर्बल उत्पादों की मांग दुनिया भर में है और इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि अभी तक चाइनीज वायरस की कोई दवा न होने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली जड़ी, मसालों का लोग सेवन कर रहे हैं। भारतीय हल्दी की मांग दुनिया भर में बढ़ गई है।
जर्मनी और ब्रिटेन से भारतीय कच्ची हल्दी की मांग कई गुना बढ़ गई है। यह तो भारतीय मसालों की बात है, लेकिन भारतीय हर्बल उत्पादों के बारे में हम भारतीयों की जानकारी भी बहुत कम थी। अश्वगंधा, गिलोय, ब्राह्मी जैसे हर्बल उत्पादों को हम सिर्फ रोगी होने पर ही उपयोग करने की सोचते थे, लेकिन चाइनीज वायरस ने स्वस्थ व्यक्ति में भी रोग प्रतिरोधक क्षमता निरंतर बढ़ाने की जरूरत की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है। भारत में करीब 8000 हर्बल जड़ी-बूटी, मसाले हैं, जिनका इस्तेमाल स्थानीय स्तर पर ही होता है, लेकिन बमुश्किल 1000 तरह की हर्बल जड़ी-बूटी और मसालों का ही इस्तेमाल दवा और सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियां करती हैं। अब हर्बल खेती पर सरकार का जोर इस हर्बल जड़ी-बूटी, मसालों की खेती की ओर लोगों को आकर्षित कर रहा है।
ऐसे में आत्मनिर्भर भारत पैकेज में हर्बल खेती को बढ़ावा देने की सरकार की मंशा भरोसा जगाती है। सरकार ने हर्बल खेती को बढ़ावा देने के लिए 4 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है और अगले 2 वर्षों में 10 लाख हेक्टेयर जमीन पर हर्बल खेती का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य पूरा कर लिया गया तो किसानों की आमदनी तेजी से बढ़ाने के लिए लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी होगी। सामान्य कृषि उपज की तुलना में हर्बल कृषि उत्पादों की कीमत कई गुना ज्यादा होती है और भारतीय किसानों की एक सबसे बड़ी समस्या जोतों का घटता हुआ आकार है और छोटी जोत में हर्बल खेती करके भारतीय किसान ज्यादा कमाई करके आत्मनिर्भर हो सकते हैं। हर्बल खेती से हर तरह की दवाएं बनती हैं, लेकिन हर्बल उत्पादों का बाजार तैयार होने से भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को भी बढ़ावा मिल सकता है। अभी भी आयुर्वेदिक दवाओं के लिए जरूरी हर्बल उत्पाद भी आसानी से नहीं मिल पाते हैं। अब आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत अगले 2 वर्षों में 10 लाख हेक्टेयर पर हर्बल खेती से आयुर्वेदिक दवाओं के लिए जरूर हर्बल उत्पाद आसानी से मिल सकेंगे। योग और आयुर्वेद की तरफ लोगों का आकर्षण बढ़ने की वजह से भी हर्बल उत्पादों की ओर लोगों का ध्यान गया है। 2016 में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में आयुष मंत्री श्रीपाद नाइक ने बताया था कि दुनिया के हर्बल उत्पादों में भारत का हिस्सा बमुश्किल आधा प्रतिशत ही है। दुनिया भर में 70 बिलियन डॉलर का हर्बल दवाओं का बाजार है और भारत की हिस्सेदारी इसमें सिर्फ 358 मिलियन डॉलर की है। भारतीय हर्बल खेती की ओर ज्यादा किसानों के आकर्षित न होने के पीछे सबसे बड़ी वजह यही रही कि हर्बल उत्पादों का बाजार तैयार करने पर संगठित तरीके से कोई काम ही नहीं हुआ। अब आयुष मंत्रालय के जोर देने और योग के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ने से भारतीय हर्बल उत्पादों के प्रति किसानों और बाजार का भी ध्यान गया है। ऐसे में भारत सरकार की तरफ से अगले 2 वर्षों में 10 लाख हेक्टेयर पर हर्बल खेती का महत्वाकांक्षी लक्ष्य किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता के लिए बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हो सकता है।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फे लो है. लेख में व्यक्त उनके विचार निजी हैं.)
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