भारत और रूस के बीच कच्चे तेल की आपूर्ति को लेकर हाल ही में एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है, जिसके अनुसार सस्ती दर पर रूस भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति डॉलर की जगह रूपये में करेगा। यह समझौता भारत की शर्तों पर हुआ है, जिसके तहत रूस भारतीय सीमा के तट तक कच्चे तेल की आपूर्ति करना सुनिश्चित करेगा। यह शर्त मौजूदा प्रतिबंधों की जटिलता से बचने के लिए रखी गई है।
इस समझौते का सीधा फायदा भारतीय उपभोक्ताओं को मिलने की संभावना है। मौजूदा परिदृश्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों को लेकर दुनिया के देशों पर आर्थिक दबाव की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में इस समझौता से भारत को अनेक मोर्चों पर लाभ मिल सकता है।
यूक्रेन पर रूस द्वारा हमला करने के कारण कच्चा तेल वर्ष 2014 के बाद पहली बार 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर चुका है। इतना ही नहीं, यह 140 डॉलर प्रति बैरल का आंकड़ा भी छू चुका है। वैसे, अब यह थोडा नरम होकर 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर के स्तर पर कारोबार कर रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था को थोड़ी राहत मिली है।
ऊंची मुद्रास्फीति और वित्तीय अस्थिरता के जोखिम से वैश्विक वृद्धि का परिदृश्य भी चिंताजनक बना हुआ है। संकट का जल्द समाधान नहीं हुआ तो वैश्विक सुधार पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। वर्तमान हालात में वैश्विक रेटिंग एजेंसियाँ आगामी सालों के लिए वैश्विक वृद्धि के अनुमान में कमी कर सकती है।
वैसे, मौजूदा मुश्किलों के बावजूद भारत घरेलू मोर्चे पर निरंतर प्रगति कर रहा है। भारत की वृहद परिप्रेक्ष्य में आर्थिक बुनियाद मजबूत बनी हुई है। उपभोक्ताओं और कारोबारियों दोनों का कारोबारी माहौल के प्रति विश्वास बढ़ रहा है तथा मांग में भी सुधार हो रहा है।
कृषि क्षेत्र के शानदार प्रदर्शन और औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन की निरंतरता से सुधार को बल मिल रहा है। इतना ही नहीं, कृषि मंत्रालय के अनुसार इस साल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.61 करोड़ टन रह सकता है।
उधारी चक्र में भी सुधार हो रहा है। नवंबर 2021 से जनवरी 2022 में उधारी मांग 65,298 करोड़ रुपये रहा, जो अप्रैल-अक्टूबर 2021 में 61,983 करोड़ रहा था। उधारी मांग बढऩे से कुछ बैंकों ने साविध जमा दरों में इजाफा भी किया है। उधारी मांग बढ़ने का यह अर्थ है कि मांग और आपूर्ति दोनों में इजाफा हो रहा है।
वित्त वर्ष 2021-22 के बजट के संशोधित अनुमान से प्रत्यक्ष कर संग्रह 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हुआ है, जिससे सरकार को ज्यादा व्यय के लिए तीसरी अनुपूरक मांग वहन करने में मदद मिलेगी। कर संग्रह में वृद्धि आर्थिक सुधार और बेहतर कर प्रशासन का परिचायक है। विनिवेश की कम प्राप्ति और रूस और यूक्रेन संकट को देखते हुए अधिक राजस्व संग्रह से सरकार को राहत मिल सकती है।
चालू वित्त वर्ष में 16 मार्च तक रिफंड भुगतान के बाद सरकार को करीब 13.60 लाख करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष कर प्राप्त हुआ है, जबकि संशोधित अनुमान 12.50 लाख करोड़ रुपये का था। इस दौरान करदाताओं को 1.87 लाख करोड़ रुपये रिफंड किए गए हैं।
प्रत्यक्ष कर संग्रह पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 48.41 प्रतिशत बढ़कर 9.18 लाख करोड़ रुपये रहा। कोरोना महामारी से पहले वित्त वर्ष 2019-20 में 9.56 लाख करोड़ रुपये प्रत्यक्ष कर संग्रह हुआ था, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में 10.09 लाख करोड़ रुपये प्रत्यक्ष कर मद में प्राप्त हुए थे।
कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह में से 6.63 लाख करोड़ रुपये अग्रिम कर के रूप में प्राप्त हुए, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में 40.75 प्रतिशत अधिक है। कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह में निगमित कर मद में 7.19 लाख करोड़ रुपये और व्यक्तिगत आयकर के रूप में 6.04 लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए।
इसका यह अर्थ हुआ कि सरकार को वित्त वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमान 6.35 लाख करोड़ रुपये से निगमित कर में करीब 84,000 करोड़ रुपये का ज्यादा राजस्व प्राप्त हुआ। इसी तरह व्यक्तिगत आयकर मद में सरकार को संशोधित अनुमान की तुलना में 25,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई।
व्यक्तिगत आयकर का ज्यादातर हिस्सा मार्च के अंतिम दिनों में प्राप्त होता है। ऐसे में प्रत्यक्ष कर संग्रह में अभी और इजाफा हो सकता है। इससे सरकार को विनिवेश मद में कम प्राप्तियों और खर्च में बढ़ोतरी के बावजूद राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 6.9 प्रतिशत पर रखने में मदद मिलेगी।
चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान के मुताबिक विनिवेश से 78,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद थी, लेकिन वास्तविक प्राप्तियां 12,424 करोड़ रुपये रही। इसके अलावा सरकार को उर्वरक सब्सिडी बिल और अन्य मदों में संशोधित अनुमान से करीब 1 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़े हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने रूस और यूक्रेन के बीच में चल रहे युद्ध की वजह से रूपये की कीमत में आ रही गिरावट को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर डॉलर की बिक्री की है। रुपया की कीमत गिरकर 7 मार्च को 77.02 रुपए पहुँच गई थी, जिसमें केंद्रीय बैंक और केंद्रीय सरकार द्वारा उठाये गए क़दमों से नरमी आई।
वहीं, रुपया जब डॉलर की तुलना में मजबूत था, तब केंद्रीय बैंक ने डॉलर की ज्यादा खरीददारी की थी। इसी वजह से पिछले साल विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। किसी भी देश की मुद्रा की मजबूती को बरक़रार रखने के लिए देशी मुद्रा को बेचा जाता है, ताकि विविध उत्पादों की आपूर्ति हेतु समुचित आयात किया जा सके।
विदेशी मुद्रा भंडार 20 मार्च को समाप्त होने वाले सप्ताह में 11.10 अरब डॉलर कम होकर 554.35 अरब डॉलर रह गया। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने का मुख्य कारण कच्चे तेल और रूस व यूक्रेन से आयात किये जाने वाले उत्पादों में बढ़ोतरी होना है।
विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट पिछले दो सालों की सबसे बड़ी रही। इसने 3 सितंबर 2021 को 642,45 अरब डॉलर के स्तर को छुआ था, जो अब तक का उच्चतम स्तर था। हालांकि, मौजूदा परिदृश्य में सोने की कीमत 1.5 अरब डॉलर बढ़कर 43.83 अरब डॉलर हो गई है।
अब जब भारत ने कच्चा तेल सस्ती दर पर खरीदने के लिए रूस से समझौता किया है, तो इससे महंगाई दर में कमी आने की संभावना है। कच्चे तेल और अन्य उत्पादों की ऊँची कीमत की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी आई है।
हालाँकि, राजस्व संग्रह और उधारी मांग में तेजी आना अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छी खबर है। कृषि क्षेत्र, औद्योगिक और सेवा क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन की निरंतरता से भी सुधार को बल मिल रहा है और अर्थव्यवस्था में मजबूती बने रहने की संभावना लगातार बरक़रार है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)