Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

चमकीली बनी रहेगी आर्थिकी

वित्त मंत्रालय ने वित्त-वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर का अनुमान 6.5 प्रतिशत जताया है. हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को 7.00 प्रतिशत पर बरकरार रखा है, जबकि वित्त वर्ष 2025-26 के दौरान जीडीपी वृद्धि का 6.5 प्रतिशत के स्तर पर रहने का अनुमान जताया है। वहीं, विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 6.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.00 प्रतिशत कर दिया है, जबकि रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है.

वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जीडीपी वृद्धि अनुमान को कम करने की वजह वित्त वर्ष 2024-25 में जीडीपी वृद्धि दर में कमी आना है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही, जो दूसरी तिमाही में घटकर 5.4 प्रतिशत के स्तर पर आ गई, जो विगत 7 तिमाहियों का सबसे निचला स्तर है। गिरावट का मूल कारण विनिर्माण और खनन क्षेत्र में विकास दर में उल्लेखनीय कमी आना है.

अगर हम पूर्व की कुछ तिमाहियों पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 12.8 प्रतिशत रही थी और उसी वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 5.5 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.3 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.2 प्रतिशत रही, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही थी, वहीं, दूसरी, तीसरी और चौथी तिमाही में यह क्रमशः 8.1 प्रतिशत, 8.6 प्रतिशत और 7.8 रही. इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत सरकार और रिजर्व बैंक की कारगर नीतियों की वजह से कोरोना महामारी के दौरान और उसके बाद भी भारत विकास के मोर्चे पर तेजी से आगे बढ़ रहा है.

अगर हम वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर से भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना करें तो हमारी  अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर से बहुत ऊपर है. आज यह दुनिया की प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्था की तुलना में बहुत ही तेजी से आगे बढ़ रही है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार 2024 में वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत रही और 2025 में 3.3 प्रतिशत रह सकती है, वहीं, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था 2024 में 3.1 प्रतिशत और 2025 में 3.2 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है.

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चीन की जीडीपी वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत रही, जबकि जापान में यह वृद्धि दर 0.9 प्रतिशत रही. आईएमएफ के अनुसार इंग्लैंड में विकास दर वित्त वर्ष 2024 में 1.1 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2025 में 1.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, वहीं, जर्मनी में वित्त वर्ष 2024 में विकास दर के माइनस 0.1 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2025 में 0.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है. दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका से भी भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है और आगामी सालों में भी इसके मजबूत बने रहने के आसार है. वित्त वर्ष 2024 के दौरान अमेरिका में विकास दर के 2.7 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2025 में 2.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है.

जीडीपी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ को मापने का सबसे विश्वसनीय पैमाना है। इसके तहत एक निश्चित अवधि, जो समान्यतः 1 वर्ष होता है के दौरान तैयार उत्पाद और सेवाओं की कीमत की गणना की जाती है, जिसमें देश की सीमा के अंदर रहकर जो विदेशी कंपनियां उत्पादन करती हैं, उन्हें भी शामिल किया जाता है। जीडीपी दो तरह की होती है। रियल जीडीपी और नॉमिनल जीडीपी। रियल जीडीपी में उत्पादों और सेवाओं की कीमत की गणना आधार वर्ष की कीमत या स्थिर कीमत पर की जाती है, जबकि नॉमिनल जीडीपी की गणना वर्तमान कीमत पर की जाती है।

जीडीपी दर में उतार-चढ़ाव आने के 4 कारक होते हैं। पहला, आमजन द्वारा किया गया खर्च। इस खर्च से अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। दूसरा, निजी क्षेत्र के कारोबार में वृद्धि। मौजूदा समय में निजी क्षेत्र का जीडीपी में 32 प्रतिशत योगदान है। तीसरा है, सरकार द्वारा किया गया खर्च। आज सरकार द्वारा विविध उत्पादों के उत्पादन और सेवा क्षेत्र पर जीडीपी का 11 प्रतिशत खर्च किया जा रहा है एवं चौथा है, निवल मांग। इसके लिए भारत के कुल निर्यात को कुल आयात से घटाया जाता है। फिलवक्त, भारत में निर्यात की जगह आयात ज्यादा होता है, जिसका जीडीपी के आंकड़ों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

ताजा आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में भारत का चालू खाता घाटा (सीएडी) जीडीपी के 1.2 से 1.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है। सेवा निर्यात में तेजी और प्रवासी भारतीयों द्वारा बड़ी मात्रा में देश में पैसे अंतरित करने के कारण उच्च व्यापार घाटे के बावजूद, देश का सीएडी वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में जीडीपी के 1.2 प्रतिशत पर सिमट गया। दरअसल, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) के प्रवाह के कारण पूंजी खाता अधिशेष में वृद्धि हुई, जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आवक अधिक दर्ज किया गया।

फिलवक्त, मुद्रास्फीति दर उच्च स्तर पर बनी हुई है, लेकिन कैलेंडर वर्ष 2025 में इसमें कमी आने के आसार हैं. मूडीज ने 2025 और 2026 में भारत में मुद्रास्फीति का अनुमान 4.5 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत जताया है। अमेरिका में ट्रंप के सत्तासीन होने के बाद वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता की स्थिति कुछ कम हुई है, भू-राजनैतिक संकट में भी कमी आने की संभावना है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तनाव कम होने से कच्चे तेल की कीमत में भी कमी आने के आसार हैं। मामले में स्थिति सुधरने भी लगी है और जापान एवं चीन सहित अमेरिका और यूरोपीय देशों में मुद्रास्फीति नरम हो गई है. भारत में भी नवंबर 2024 में मुद्रास्फीति कम होकर 5.48 प्रतिशत के स्तर पर आ गई, जो अक्टूबर 2024 के 6.21 प्रतिशत के मुकाबले काफी कम है.

अक्टूबर 2024 में मुद्रास्फीति 14 महीनों के उच्च स्तर पर थी, जबकि सितंबर 2024 में यह 5.5 प्रतिशत के स्तर पर थी। मौजूदा समय में भारत में उच्च मुद्रास्फीति के घरेलू कारक जैसे ख़राब मानसून, भंडारण की कमी, परिवहन की ऊँची लागत आदि ज्यादा जिम्मेदार हैं.

किसी की क्रय शक्ति को निर्धारित करने में मुद्रास्फीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मुद्रास्फीति बढ़ने पर वस्तु एवं सेवा दोनों की कीमतों में इजाफा होता है, जिससे व्यक्ति की खरीददारी क्षमता कम हो जाती है और वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो जाती है। फिर, उनकी बिक्री कम होती है, उनके उत्पादन में कमी आती है, कंपनी को घाटा होता है, कामगारों की छंटनी होती है, रोजगार सृजन में कमी आती है आदि। फलत: आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ जाती हैं एवं विकास की गति बाधित होती है। ऐसे में यह कहना समीचीन होगा कि  मुद्रास्फीति को कम करने से ही विकास की गाड़ी तेज गति से आगे बढ़ सकती है।

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 13 दिसंबर को समाप्त हुए पखवाड़े में ऋण वृद्धि दर 11.5 प्रतिशत रही, जबकि जमा वृद्धि दर भी 11.5 प्रतिशत रही। अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से यह एक अच्छा संकेत है. हालाँकि, विगत महीनों की तुलना में ऋण वृद्धि दर में कमी आई है, लेकिन जमा दर में, ऋण वृद्धि दर के समान वृद्धि होना बैंकों के लिए बेहद ही मुफीद है. इससे उन्हें ऊँची लागत पर पूँजी इकठ्ठा करने के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी और सस्ती दर पर पूँजी उपलब्ध रहने पर बैंक अपनी ऋण पोर्टफोलियो को आसानी से बढ़ा सकेंगे और इससे अर्थव्यवस्था में मजबूती आयेगी.

वैश्विक रेटिंग एजेंसी एस एंड पी द्वारा तैयार एचएसबीसी विनिर्माण पीएमआई नवंबर, 2024 में 58.4 थी, जो अक्टूबर महीने में 58.5 थी। वहीं, सितंबर महीने में यह 56.7 के स्तर पर थी और अगस्त महीने में 57.5 रही थी। भले ही, पीएमआई नवंबर महीने में अक्टूबर महीने से 0.01 कम है, लेकिन यह सितंबर और अगस्त महीने से अधिक है। पीएमआई का 50 से ऊपर रहना यह दर्शाता है कि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में तेजी का रुख बना हुआ है।

साथ ही, तुलनात्मक रूप से अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि अगस्त और सितंबर महीने में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई थी. विनिर्माण क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन की वजह से ही चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर कम रही है. हालाँकि, विनिर्माण पीएमआई का सितंबर, अक्तूबर और नवंबर महीने में बेहतर प्रदर्शन रहने से चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में तेजी आने का अनुमान है.

देश के आर्थिक स्वास्थ को मापने के लिए जीडीपी एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है, जिसे  आर्थिक प्रदर्शन का आईना भी कह सकते है और इसमें तेजी लाने के लिए मुद्रास्फीति का नियंत्रण में होना, विनिर्माण व सेवा गतिविधियों एवं ऋण वितरण में तेजी आना जरुरी है. ताजा आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि कैलेंडर वर्ष 2025 में मुद्रास्फीति नरम रहेगी, बैंक जमा दर में तेजी आने से ऋण वृद्धि दर में तेजी आने का अनुमान है. इससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयेगी अर्थात विनिर्माण, खनन, सेवा आदि क्षेत्रों में विकास का प्रवाह तेज होगा.

Author

  • सतीश सिंह

    (लेखक भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महाप्रबंधक (ज्ञानार्जन एवं विकास) हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)

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