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ई-शासन से सुशासन के लक्ष्यों को प्राप्त करती मोदी सरकार

गत 16 सितंबर को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा एक अधिसूचना जारी करते हुए आरटीओ से जुड़ी  नागरिक केंद्रित सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराने की घोषणा की गई। इस अधिसूचना में प्रशिक्षु प्रपत्र (लाइसेंस) बनवाने, उसका नवीनीकरण करवाने, वाहन पंजीकरण, परमिट प्राधिकृति जैसी  58 सेवाओं को ऑनलाइन करने की बात कही गई है।

मंत्रालय का कहना है कि लोगों को ठीक प्रकार से सेवाएं देने तथा उन्हें परेशानियों से बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया है। निश्चित रूप से सरकार का यह निर्णय आरटीओ की कार्यप्रणाली की विसंगतियों का शमन करते हुए उन तमाम लोगों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होगा जिन्हें अपने वाहन संबंधी प्रपत्रों की प्राप्ति के लिए आरटीओ की लंबी-लंबी कतारों से दो-चार होना पड़ता था। वस्तुतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अक्सर अपने भाषणों में जिस ई-शासन की बात की जाती है, यह उसीका का एक सशक्त उदाहरण है।

ई-शासन का अर्थ होता है कि देश के नागरिकों तक इंटरनेट, कम्यूटर और मोबाइल जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सरकारी सेवाओं और सूचनाओं का लाभ पहुँचाया जा सके। शासन का यह तरीका सरकार और नागरिक के मध्य प्रत्यक्ष जुड़ाव की एक ऐसी प्रणाली स्थापित करता है, जिसमें स्पष्टता, पारदर्शिता और कार्यकुशलता का सम्पूर्ण निष्पादन होता है।

भारत में ई-शासन का विचार दशकों पूर्व ही आ गया था। संप्रग सरकार द्वारा 2006 में एक राष्ट्रीय ई-शासन योजना भी लाई गई थी। लेकिन वह सरकार केवल योजना बनाने तक ही सीमित रही, उसे धरातल पर उतारने की इच्छाशक्ति कभी उसमें नजर नहीं आई। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से इस दिशा में सरकार द्वारा लगातार ध्यान दिया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप अब देश ई-शासन के लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर दृढ़तापूर्वक कदम बढ़ाने लगा है।

यह सच है कि 2014 से पूर्व तक भारत में ऐसा कोई आधारभूत ढांचा तैयार नहीं हो पाया था, जिसके आधार पर ई-शासन की व्यवस्था को स्थापित करने के विषय में सोचा जा सके। लोगों के पास मोबाइल का अभाव, इंटरनेट डाटा की ऊंची कीमतें, डिजिटल साक्षरता की कमी, इलेक्ट्रॉनिक रूप से सरकारी सेवाओं-सूचनाओं की अनुपलब्धता आदि अनेक ऐसी समस्याएँ थीं, जो ई-शासन की राह में बाधा बनकर खड़ी थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इन सब समस्याओं को देखा-समझा तथा 2015 में डिजिटल इंडिया अभियान की शुरुआत करते हुए चरणबद्ध ढंग से ई-शासन को धरातल पर साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाने लगी।

डिजिटल इंडिया के तहत देश की पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ने, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने, नागरिक केंद्रित सेवाओं-सुविधाओं को डिजिटल रूप में उपलब्ध कराने आदि की दिशा में विविध कार्यक्रम संचालित किए जाने लगे। जनधन-आधार-मोबाइल के माध्यम सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को सीधे उनके खाते में लाभ पहुँचाया जाने लगा।

मोदी सरकार के शासन में इंटरनेट डाटा के दाम में भी बड़े पैमाने पर कमी आई है। निश्चित ही इसमें रिलायंस जिओ की क्रांतिकारी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। साथ ही, सरकार के नीतिगत प्रयासों से मोबाइल फोन की कीमतों में भी कमी आई है। इन सब पहलों के परिणामस्वरूप अब देश में ई-शासन को लेकर एक बेहतर माहौल बनता नजर आ रहा है।

कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो आज देश की 1 लाख 77 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों तक ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का जाल बिछाया जा चुका है। रेलवे स्टेशनों और देश के महत्वपूर्ण स्थानों को वाईफाई से युक्त करने के लिए काम जारी है। प्रधानमंत्री डिजिटल साक्षरता अभियान के अंतर्गत 4 लाख से अधिक प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की गई है, जिनमें अबतक 5 करोड़ से अधिक लोग प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। देश में आज मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 120 करोड़ से अधिक हो चुकी है, जिनमें 75 करोड़ से अधिक स्मार्टफोन उपभोक्ता हैं।

पिछले पांच वर्षों में देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की तादाद में दोगुनी वृद्धि हुई है। इंटरनेट डाटा की कीमत, जो 2014 में प्रति जीबी औसतन 308 रुपये हुआ करती थी, आज घटकर लगभग दस रुपये पर पहुँच चुकी है। सरकार की डीबीटी योजना के जरिये 53 मंत्रालयों की 319 योजनाओं का लाभ पूरी पारदर्शिता के साथ सीधे लोगों के खाते में पहुंच रहा है। गत वर्ष नवंबर तक के आंकड़े के मुताबिक़, डीबीटी के माध्यम से लाभ पहुंचाने के कारण सरकार 2.23 लाख करोड़ की बचत कर चुकी है, जो बिचौलियों के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती थी।

इसके अतिरिक्त आज उमंग एप के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों से संबंधित सैकड़ों विभागीय सेवाओं एवं सुविधाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा चुका है, जिसके जरिये आम लोग बिना सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटे घर बैठे अपने बहुत-से कार्य करवा सकते हैं। यूपीआई के जरिये बैंकिंग सेवाओं को  जैसा सरल डिजिटल रूप मिला है, वह ई-शासन की सुगमता का ही एक उदाहरण है। देश में डिजिटल लेन-देन की बढ़ती लोकप्रियता को इस आंकड़े से समझ सकते हैं कि गत वर्ष दुनिया भर में हुई कुल डिजिटल लेन-देन का 40 प्रतिशत अकेले भारत में हुआ था, वहीं इस साल सितंबर की शुरुआत तक यूपीआई के माध्यम से 51.74 ट्रिलियन रुपये के मूल्य की 30 बिलियन लेन-देन की गई हैं।

ई-शासन का सबसे प्रभावशाली उदाहरण कोरोना महामारी के संकटकाल में देखने को मिला। इस दौर में जब देश लॉकडाउन से गुजर रहा था तथा दैनिक आय पर निर्भर मजदूर वर्ग के लिए रोजी-रोटी का संकट उपस्थित हो गया था, तब ई-शासन के माध्यम से सरकार देश के नागरिकों तक पहुंची तथा उनके हितों की रक्षा सुनिश्चित करने का काम किया।

डीबीटी के माध्यम से गरीबों को आर्थिक मदद पहुँचाना हो या आरोग्य सेतु के जरिये कोविड से बचाव को लेकर जागरूकता का प्रसार करना हो अथवा कोविन के माध्यम से दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का सफल निष्पादन करना हो, ये सब कोविड काल के दौरान देश में संचालित ई-शासन के सफल मॉडल के ही उदाहरण हैं। सरकारी सेवाओं के अतिरिक्त सरकार की योजनाओं से सम्बंधित ‘डिजिटल परफॉरमेंस डैशबोर्ड’ भी तैयार किया गया है, जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति घर बैठे सरकारी योजनाओं की प्रगति के विषय सरलतापूर्वक पूरी जानकारी प्राप्त कर सकता है।

स्पष्ट है कि देश में ई-शासन को मजबूती से स्थापित करने के लिए मोदी सरकार कमर कसके जुटी हुई है, जिसके सकारात्मक परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। वस्तुतः आज के समय में ई-शासन ही वो मॉडल है, जिसके जरिये सुशासन के लक्ष्यों को संपूर्णता से प्राप्त किया जा सकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)

https://www.nationalistonline.com/modi-government-achieving-the-goals-of-good-governance-through-e-governance/

 

 

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