दो मोर्चों पर है लड़ाई
संकट के समय सरकार से हमारी अपेक्षा और बढ़ जाती है क्योंकि तब व्यक्ति के स्तर पर इतना संसाधन नहीं होता कि वो इससे निपट सके। ‘कोरोना’ वायरस से उत्पन्न महामारी भी एक ऐसी ही स्थिति है, जहाँ चौतरफा आशंकाएं हैं और इससे लड़ने का कोई सीधा रास्ता नज़र नहीं आ रहा। लड़ाई भी ऐसी है कि इसकी भारी कीमत चुकानी होगी, पर अंततः मानव जीवन से बढ़कर तो कुछ भी नहीं, सरकार भी इसी मंत्र से आगे बढ़ रही है और हर संभव कोशिश कर रही है कि चाहे कितनी भी आर्थिक कीमत चुकानी पड़े पर नागरिकों के प्राण की रक्षा की जाएगी।
इस महामारी से लड़ने के तरीके पर विचार करें तो सरकारों को मोर्चों पर एक साथ लड़ना होगा। पहला मोर्चा ‘रोकथाम’ का है। इसके तहत प्राथमिक कोशिश यही है कि किसी भी तरह इस बीमारी को फैलने से रोका जाए क्योंकि एकबार अगर यह बड़ी जनसंख्या तक पहुंच गया तो इसके परिणाम काफी भयावह हो जाएंगे। इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा की। दूसरा मोर्चा है लॉकडाउन के कारण उत्पन्न होने वाले प्रभावों से निपटना। इस मोर्चे पर भी उतनी ही मुस्तैदी से डटना होगा क्योंकि तमाम आर्थिक गतिविधियों के बंद हो जाने से एक बड़ी जनसंख्या के लिए जीवनयापन करने की कठिनाई उत्पन्न हो गई है। इस कठिनाई को दूर करना सरकार का दायित्व है और फ़िलहाल मोदी सरकार इस दायित्व को ठीक ढंग से निभा रही है। बहरहाल, किसी भी सरकार के प्रयासों का मूल्यांकन इन दो आधारों पर करना होगा।
संघात्मक ढॉंचे के अन्तर्गत प्रयास
इस तरह की महामारी से निपटने में इस बात की भी बड़ी भूमिका होती है कि राज्य सरकारें किस तरह से भूमिका निभा रही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तो संघात्मक व्यवस्था में राज्यों के पास ठीक-ठाक संसाधन की हिस्सेदारी होती है, वहीं कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर होती है। अगर ये अपनी भूमिका में ईमानदार रहें तो निश्चित ही चुनौती से निपटने में आसानी हो जाती अन्यथा मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। लॉकडाउन की घोषणा के बाद हजारों मजदूरों का पैदल ही अपने घरों की और लौटने जैसा कारुणिक दृश्य नहीं देखना। पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र तथा दिल्ली से जो हजारों मजदूर बिहार या उत्तर प्रदेश जाने के लिए बदहवासी में पैदल ही कूच कर गए, संबंधित राज्य सरकारें उनके देखभाल की उचित व्यवस्था करती और उनको सुरक्षित रखने का आश्वासन देती तो ऐसी दुखद स्थिति आती ही नहीं। इसके विपरीत कुछ राज्यों को देखें तो वो इस संबंध में बेहतर रणनीति के साथ आए हैं।
देश की सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो वहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में देशभर में सर्वाधिक कुशलता और सक्रियता से इस महामारी का मुकाबला किया जा रहा है। योगी सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के पूर्व ही अपने राज्य में यह व्यवस्था लागू कर दी थी। सरकार ने बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए स्कूल, कॉलेज, शॉपिंग मॉल, सरकारी प्रतिष्ठान इत्यादि जैसे सार्वजनिक महत्व के स्थानों को काफी पहले ही बंद करा दिया था। इसके बाद सरकार ने रोगियों की पहचान में भी काफी मुस्तैदी दिखाई तथा इसके लिए नवाचारी उपाय भी अपनाए।
हम सब जानते हैं कि प्रारंभिक स्तर पर इस बीमारी का प्रसार संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से होता है इसलिए योगी सरकार ने ऐसे हर संभावित लोगों की पहचान हेतु सक्रिय कदम उठाए। इसके तहत ऐसे हर उस व्यक्ति जो विदेश से या फिर महाराष्ट्र व केरल जैसे राज्य, जहाँ संक्रमण तेजी से फैला था, से आए थे उनकी जांच सुनिश्चित कराई तथा उन्हें निश्चित अवधि के लिए घर में आइसोलेट में रहने का निर्देश दिया गया। यह कार्य एकदम सटीकता से पूर्ण हो इसलिए राज्य सरकार ने ग्राम प्रधानों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि वो बाहर से आने वाले लोगों की सूचना सरकार को दें।
सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका
आज के सूचना प्रौद्योगिकी दौर में यह बात भी बहुत महत्व की है कि कोई राज्य कितनी सजगता से इसका उपयोग कर रही है। कोरोना से निपटने के संदर्भ में देखें तो कुछ राज्यों ने इसका बेहतर इस्तेमाल किया है। गुजरात सरकार एक ऐसे मोबाइल एप का इस्तेमाल कर रही है, जो ‘जीआईएस तथा जियो फेंसिंग’ तकनीक पर आधारित है। इससे होम-कोरंटाईन किये गए लोगों पर निगरानी रखी जाती है कि वो घर में ही हैं या नहीं। जियो फेंसिंग तकनीक के माध्यम से यूजर्स के किसी भी प्रकार के मूवमेंट को ट्रेस किया जा सकता है। ऐसे में अगर कोई भी संदिग्ध व्यक्ति सरकार के निर्देशों का उल्लंघन करता है तो उसपर तुरंत कार्रवाई की जा सकती है और प्रसार को रोका जा सकता है। इसी प्रकार कर्नाटक सरकार ने ‘टेलीग्राम’ एप के माध्यम से संवाद स्थापित कर रही है। सरकार जिस तीव्रता से लोगों के सवालों के जवाब दे रही है वो निश्चित ही जनता को इस कठिन दौर में संबल देगा और सरकार पर भरोसा करने का आश्वासन देगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी ‘1076’ हेल्पलाइन नंबर शुरू किया है, जिसपर कॉल करके स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं को साझा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में हरेक जिले में ‘कंट्रोल रूम’ बनाया गया है। ये तरीके निश्चित ही बेहतर परिणाम देने में सक्षम हो सकेंगे।
अब अगर ‘कोरोना’ के उपचार हेतु अस्पताल की बात करें तो उत्तर प्रदेश में इसकी त्रिस्तरीय व्यवस्था की गई है। प्रारंभिक स्तर पर सभी ‘सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी)’, द्वितीय स्तर पर जिला स्तरीय अस्पतालों को तथा तृतीय स्तरों पर विशेषीकृत अस्पतालों को विकसित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त 6000 आइसोलेशन बेड भी तैयार किया गया है। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद में 1200 बेड का एक अस्पताल तैयार किया है जो पूर्णतः कोरोना के उपचार से संबद्ध होगा। इसी प्रकार कर्नाटक सरकार ने भी सभी सरकारी अस्पतालों को इससे निपटने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं।
प्रभावित जनता की आर्थिक मदद
इस लड़ाई का दूसरा हिस्सा वहाँ से खुलता है जो लॉकडाउन के उपोत्पाद होते हैं। अर्थात् एकबार आर्थिक गतिविधियों को रोक देने से काफी हद तक रोग का प्रसार तो रूक जाएगा, लेकिन इससे वैसे लाखों लोगों के समक्ष जीवनयापन का संकट भी खड़ा हो गया जो रोजमर्रा की आय पर आश्रित थे। ऐसे में आवश्यक था कि सरकार इनकी चिंता करे। केंद्र सरकार ने गरीबों, मजदूरों की सहायता के लिए 1 लाख 70 हजार करोड़ रूपये के आर्थिक पैकेज देने की घोषणा की। विभिन्न राज्य सरकारों ने भी आर्थिक मदद देने की दिशा में कदम बढ़ाए।
उत्तर प्रदेश का उदाहरण लें तो वहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले ऐसे लोगों के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की। इसके तहत सरकार ने यह घोषणा की कि वैसे तमाम लोग, जिनकी इस दौरान आय प्रभावित हुई उनको 1000 रूपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी। यह राशि सीधे उनके खाते में प्रेषित की जा रही है। इसके तहत 16.5 लाख रोज मजदूरी करने वाले तथा 20 लाख के लगभग स्थानीय और विनिर्माण कार्य से जुड़े कामगारों को लाभ मिला। साथ ही सरकार ने यह भी निश्चित किया वैसे लोग जो इन दोनों में से किसी श्रेणी में नहीं आते, किंतु उनका कार्य प्रभावित हुआ है तो उन्हें भी यह राशि दी जाएगी।
इसके अलावा अंत्योदय कार्ड धारक, वृद्ध जन, परित्यक्त तथा दिव्यांगों के लिए मुफ्त राशन की व्यवस्था की गई। इसके अंतर्गत संबंधित पात्र 20 किलोग्राम गेहूँ तथा 15 किलोग्राम चावल प्राप्त कर सकेंगे। इसके साथ ही योगी सरकार ने मनरेगा मजदूरों की बढ़ी हुई मजदूरी भी उनतक पहुंचाने में देरी नहीं लगाई और 27.5 लाख मनरेगा श्रमिकों के खाते में 611 करोड़ रुपये भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी हैं।
इसी प्रकार कर्नाटक सरकार के प्रयासों को देखें तो सबसे पहले सरकार ने 200 करोड़ रूपये का एक आर्थिक पैकेज घोषित किया है। इसके अतिरिक्त प्रभावित लोगों के लिए अनेक अन्य उपाय किए गए। उदाहरण के लिए ‘सामाजिक सुरक्षा पेंशन’ के रूप में मिलने वाली राशि को एकमुश्त दो महीने के अग्रिम भुगतान के साथ उपलब्ध कराया गया। इसका सीधा लाभ समाज के सबसे कमजोर वर्ग को हुआ। साथ ही 20 लाख से अधिक विनिर्माण मजदूरों को 1000 रूपये की आर्थिक मदद की गई। एक अन्य पहल करते हुए कर्नाटक सरकार ने समाज के वंचित वर्गों को बिना ब्याज के प्रदान किए जाने वाले ऋण को माफ कर दिया। यह तकरीबन 13 करोड़ रूपये का था।
कुल मिलाकर कहने का भाव यह है कि जिस सक्रियता से केंद्र सरकार इस आपदा से निपट रही है, कुछ राज्य भी उतना ही परिश्रम कर रहे हैं। अंततः राजव्यवस्था से जुड़े सभी हितधारक अगर अपनी भूमिका ईमानदारी से निभा दें तो निश्चित ही यह लड़ाई जीती जा सकती है।
(लेखक इतिहास के अध्येता हैं तथा समसामयिक विषयों पर विभिन्न अखबारों तथा ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स के लिए लिखते हैं। यह उनके निजी विचार हैंl)