डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें बाबा साहेब अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संविधान के शिल्पकार और समाज सुधारक थे। वे न केवल एक विधि विशेषज्ञ थे, बल्कि उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता और दलितों के अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया।
पिछले दिनों संसद में संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने पर चर्चा हो रही थी जहाँ कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल संविधान और बाबा साहेब की दुहाई दे रहे थे। यहाँ यह समझना आवश्यक हो जाता है कि इन दलों की राजनीति अचानक से बाबा साहेब के इर्द गिर्द क्यों घूमने लगी वह भी तब जब स्वयं बाबा साहेब ने कांग्रेस की समय समय पर आलोचना की.
दलितों के अधिकारों की उपेक्षा
बाबा साहेब का मानना था कि कांग्रेस ने दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों को लेकर कभी भी गंभीरता से काम नहीं किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता उच्च जातियों से आते थे, जिनकी प्राथमिकता दलितों की समस्याओं को समझना और हल करना नहीं था।
1930 और 1940 के दशक में जब भारत का स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था, अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि दलित समाज के लिए स्वतंत्रता से अधिक सामाजिक समानता महत्वपूर्ण है। वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारत ऐसा हो जो सभी वर्गों और जातियों के लिए समान अवसर प्रदान करे।
सामाजिक सुधारों पर ध्यान न देना
बाबा साहेब का तर्क था कि कांग्रेस ने भारत की स्वतंत्रता पर जोर दिया, लेकिन सामाजिक सुधारों की अनदेखी की। अंबेडकर का मानना था कि बिना सामाजिक समानता के स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है। कांग्रेस के नेतृत्व ने जातिवाद, अस्पृश्यता और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान द्वितीयक माना।
संविधान को कुचलने की प्रवृत्ति
बाबा साहेब ने स्वतंत्र भारत में कांग्रेस की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि कांग्रेस ने संविधान का सम्मान नहीं किया। उनका आरोप था कि कांग्रेस ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए संविधान की भावना को बार-बार दबाया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने संविधान के प्रावधानों को सही तरीके से लागू नहीं किया और इसे कुचलने का प्रयास किया जिसे देश ने 1975 में आपातकाल के दौरान स्पष्ट रूप से देखा.
बाबा साहेब अंबेडकर की कांग्रेस की आलोचना एक दृष्टिकोण प्रदान करती है जो स्वतंत्रता आंदोलन के भीतर मौजूद अंतर्विरोधों और संघर्षों को उजागर करती है। उनकी आलोचना आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के उन बुनियादी सवालों को उठाती है, जिनका हल कांग्रेस ने पूरा करने की कोशिश कभी नहीं की।
वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार ने बाबा साहेब के योगदान को सम्मानित करने और उनके विचारों को लागू करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। मोदी सरकार ने अंबेडकर के जीवन से जुड़े पांच स्थलों को “पंच तीर्थ” के रूप में विकसित किया है। इनमें महू (उनका जन्म स्थान), नागपुर (दीक्षा भूमि), दिल्ली (महापरिनिर्वाण स्थल), मुंबई (चैत्य भूमि), और लंदन (जहां उन्होंने शिक्षा प्राप्त की) शामिल हैं।
2015 में मोदी सरकार ने 26 नवंबर को “संविधान दिवस” के रूप में घोषित किया, ताकि भारतीय संविधान और बाबा साहेब के योगदान का सम्मान किया जा सके। 2016 अंबेडकर के विचारों के अनुरूप डिजिटल और समावेशी भारत की दिशा में काम करते हुए मोदी सरकार ने दलितों और वंचित वर्गों को डिजिटल शिक्षा और रोजगार के नए अवसर प्रदान करने पर जोर दिया।
मोदी सरकार ने “स्टैंड अप इंडिया” और “स्किल इंडिया” जैसी योजनाओं के माध्यम से दलित उद्यमियों और युवाओं को आर्थिक सशक्तिकरण के अवसर प्रदान किए। दिल्ली में बाबा साहेब अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर का निर्माण उनके विचारों और शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए किया गया। यह केंद्र अंबेडकर के सामाजिक और आर्थिक दर्शन पर शोध और संवाद के लिए समर्पित है।
इन कदमों ने न केवल अंबेडकर की विरासत को संरक्षित किया है, बल्कि उनके आदर्शों को आधुनिक भारत में आगे बढ़ाने का भी प्रयास किया है। बाबा साहेब का मानना था कि सामाजिक समानता और संविधान का सम्मान ही एक सशक्त और न्यायपूर्ण भारत की नींव हो सकते हैं।