महात्मा गांधी के लिए सफाई व स्वच्छता महत्वपूर्ण मिशन था। उन्होंने स्वच्छ भारत का सपना देखा था जिसमें भारत के सभी नागरिक एक साथ मिलकर देश को स्वच्छ बनाने के लिए कार्य करें। दुर्भाग्यवश महात्मा गांधी के नाम पर राजनीति करने वाली कांग्रेसी सरकारों ने गांधी के स्वच्छता मिशन को चुनावी नारे में तब्दील कर दिया। हर साल गांधी जयंती के दिन स्वच्छ भारत के निर्माण का संकल्प दिलाने के बाद सरकारें अगली गांधी जयंती तक इस लक्ष्य को भुला देती थीं। दूसरे शब्दों में साफ-सफाई और सभी के लिए शौचालय सरकारों की प्राथमिकता सूची में कभी रहा ही नहीं।
सरकार के साथ-साथ विपक्ष भी ऐसे मुद्दे नहीं उठाता था क्योंकि कांगेसी सरकारों ने साफ-सफाई को जनांदोलन का रूप नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कुप्रवृत्ति को बदल दिया। “मोदी है तो मुमकिन है” का ही नतीजा है कि आज देश के हर घर में शौचालय हैं।
देखा जाए तो शौचालय सुविधा से न केवल गरिमा और सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक होता है। फिर इससे पेयजल को सुरक्षित बनाने में भी मदद मिलती है। उल्लेखनीय है कि साफ-सफाई की बुनियादी सुविधा उपलब्ध न होने के कारण लाखों लोग उन बीमारियों के शिकार हो जाते हैं जिन्हें रोका जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक खुले में शौच से होने वाली बीमारियों से भारत को हर साल बारह अरब रूपए और बीस करोड़ श्रम दिवसों से हाथ धोना पड़ता था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के जिन क्षेत्रों में खुले में शौच की प्रथा प्रचलित है उन्हीं क्षेत्रों में बाल मृत्यु दर अधिक है। हैजे का मूल कारण दूषित पानी और स्वच्छता की कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने निष्कर्ष में बताया है कि साफ-सफाई व्यवस्था के सुधार पर खर्च किए गए प्रत्येक डालर से औसतन सात डालर का आर्थिक लाभ होता है।
साफ-सफाई के बहुआयामी लाभों और महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया। प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेसी कार्य संस्कृति से परिचित थे इसीलिए उन्होंने इस अभियान को सरकारी तंत्र के भरोसे छोड़ने के बजाए जनांदोलन बनाने का निर्णय किया। इसके लिए देश की नामचीन हस्तियों को इस अभियान से जोड़ा गया। प्रधानमंत्री ने अपने मासिक मन की बात संबोधन में स्वच्छता को जनांदोलन बनाने का आह्वान किया।
कांग्रेसी संस्कृति में पली-बढ़ी नौकरशाही के बल पर स्वच्छ भारत के संकल्प को पूरा करना नामुमकिन था इसलिए उन्होंने हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित किया। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद झाड़ू उठाया। इसके अनुकरण में देश के खास से लेकर आम लोग तक इस अभियान से जुड़ते चले गए और देखते ही देखते देश में दस करोड़ शौचालयों का निर्माण हो गया। इसका नतीजा यह हुआ कि 38 प्रतिशत स्वच्छता कवरेज वाला देश महज साढ़े चार साल में लगभग सौ प्रतिशत कवरेज हासिल कर लिया और 2 अक्टूबर 2019 तक देश खुले में शौच से मुक्त हो गया।
खुले में शौच मुक्त भारत का जो लक्ष्य हासिल किया गया है उसे जारी रखने और नए घरों व बढ़ी हुई आबादी के लिए शौचालयों के निर्माण को ध्यान में रखते हुए स्वच्छ भारत अभियान का दूसरा चरण शुरू किया गया है। इसके तहत 51 लाख घरेलू शौचालयों के अलावा करीब एक लाख सामुदायिक स्वच्छता कॉम्प्लेक्स, करीब दो लाख गांव में ठोस कचरा प्रबंधन योजना, एक लाख 82 हजार गांव में ग्रे-वॉटर मैनेजमेंट प्रोजेक्ट, करीब 2500 ब्लॉक में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन यूनिट और 386 जिलों में गोबर धन प्रबंधन संयंत्र लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
स्वच्छ भारत अभियान के पहले चरण से स्वास्थ्य लाभ और समय की बचत को लेकर एक वैश्विक अध्ययन की रिपोर्ट में यह सामने आया कि हर ग्रामीण परिवार को करीब 53 हजार रुपये का सालाना लाभ इससे हुआ है। मिशन के दूसरे चरण को संपूर्ण स्वच्छता से जोड़ा गया है।
समग्रत: महात्मा गांधी ने जिस स्वच्छ भारत का स्वप्न देखा था उसे साकार करने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है। जो कार्य कांग्रेसी सरकारें 60 वर्षों में पूरा नहीं कर पाईं उसे मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के महज पांच वर्षों में पूरा कर दिया। इसी को कहते हैं “मोदी है तो मुमकिन है”।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)