Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

चंद्रयान-3 : अमृतकाल में अंतरिक्ष की आकांक्षाओ का चंद्रोदय

हमारे भारत 23 अगस्त 2023 को इसरो के महत्वाकांक्षी तीसरे चंद्रमा मिशन के रूप में इतिहास रच दिया है चंद्रयान-3’एस लैंडर मॉड्यूल(एलएम) चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरा, जिससे वह ऐसा करने वाले हम चौथे देश बन गए है, और पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह के अज्ञात दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाले हम पहले ही है ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने दक्षिण अफ्रीका से राष्ट्र को संबोधित किया एवं मिशन के वैज्ञानिकों से बात की वे उस समय  ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे थे किन्तु राष्ट्र की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर उन्होंने अपने व्यस्ततम समय में समय निकलकर वही से देशवासियो को संबोधित किया।  प्रधानमंत्री जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि “हम सभी चंद्रमा और उससे आगे की आकांक्षा कर सकते हैं। ग्लोबल साउथ ऐसे कारनामे करने में सक्षम है। चांद अब कहानियों से आगे निकल सकता है। उन्होंने कहा की, ‘ऐसी घटना राष्ट्रीय जीवन की चिरंजीवी चेतना बन जाती है। ये क्षण विकसित भारत के शंखनाद का है। हम अब हमारे सौर मंडल की सीमाओं का सामर्थ्य परखेंगे, हम मानव के लिए ब्रह्मांड की अनेक संभावनाओं को साकार करने के लिए जरूर काम करेंगे। जल्द ही इसरो सूर्य के विस्तारित अध्ययन के लिए आदित्य एल-1 लॉन्च करेगा। इसके बाद शुक्र (ग्रह) भी हमारे लक्ष्यों में है।’ कुछ यही बात इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने भी कही। उन्होंने सफल अभियान के बाद अपने संबोधन में कहा, ‘चंद्रयान-3 की सफलता देखकर हम सभी बहुत खुश हैं। हम सभी यह देखकर उत्साहित हैं कि हम अब उस स्थिति में पहुंच गए हैं जिससे हम आगे और प्रयोग कर सकें।’

निश्चित रूप से यह हमारे वैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है जो चार वर्षों में दूसरा प्रयास कर रहे थे। अमेरिका, चीन और तत्कालीन सोवियत संघ के बाद हमारा भारत अब चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग की तकनीक में सफलता प्राप्त करने वाला करने वाला चौथा देश है।

चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है और इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट-लैंडिंग प्रदर्शित करना, चंद्रमा पर घूमना और इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने अतंरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत 60 के दशक में बेहद सीमित संसाधनों के साथ की थी। भारत ने अपना पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को लॉन्च किया था जिसके 45 साल बाद मिशन मून पर बड़ी कामयाबी हासिल की थी। अतंरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत के करीब 50 साल बाद भारत ने मंगल यान भेजा। भारत ने जब अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि देश का अंतरिक्ष यान एक दिन चांद और मंगल पर भी जा पाएगा।

भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को अपना पहला चंद्रयान भेजा था। यह करीब 10 महीने यानी  22 अक्टूबर 2008 से 30 अगस्त 2009 तक चंद्रमा के चारों तरफ घूमता रहा। वैज्ञानिकों ने चंद्रयान में मून इम्पैक्ट प्रोब ( MIP) नाम की डिवाइस लगाई थी। यह 14 नवंबर 2008 को चांद की सतह पर उतरा और भारत का अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने धाक जमा लिया। इस मामले में भारत चौथा देश बन गया। इससे पहले अमेरिका, रूस और जापान ने यह कामयाबी हासिल की थी। इस डिवाइस ने ही चांद की सतह पर पानी को खोजा था। इस बड़ी खोज के लिए नासा ने भी भारत की तारीफ की थी, क्योंकि इसरो को पहली बार में यह सफलता मिली थी।

इस उपलब्धि ने इसरो को सामान्य अंतरिक्ष अनुसंधान प्रौद्योगिकी के अलावा सुदूर अंतरिक्ष अनुसंधान प्रौद्योगिकी के मामले में अव्वल दर्जे में पहुंचा दिया है। इससे भारत के आगामी सुदूर अंतरिक्ष कार्यक्रम जैसे आदित्य, गगनयान आदि को बल मिलेगा। वैज्ञानिकों समेत सरकार को इसरो की दक्षता और क्षमता के प्रति जो भरोसा जगा है, उससे नये उत्साह का संचार होगा।  बीते अनुभव बताते हैं कि ऐसी सफलता अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के जरिए व्यवसाय के भी नए द्वार खोलती है। गौरतलब है कि इसरो को किफायती लागत पर उपग्रह लॉन्च करने के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। अब इसे तमाम देशों से संचार, मौसम आदि से संबंधित उपग्रह लॉन्च करने के ऑर्डर बहुतायत में प्राप्त होंगे। उल्लेखनीय है कि इसरो अब तक 34 विभिन्न देशों के करीब 434 सैटेलाइट को कक्षा में स्थापित कर चुका है। इतना ही नहीं, इस बात की प्रबल संभावना है कि आने वाले वर्षों में कई विकासशील देश अपने अंतरिक्ष अनुसंधान को आगे बढ़ाएंगे और इस क्रम में वे भारत से प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता की खरीदना चाहेंगे। नागरिक जीवन में भी इस अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की उन्नति का कम उपयोग नहीं है। मून और मार्स मिशन के अंतरिक्ष यानों में लगने वाले पेलोड की अनुकृति (रेप्लिका) का उपयोग बाद में मौसम, संचार, सामरिक उपकरणों, मिसाइल आदि में किया जाता है। इससे आम लोगों को आने वाले समय में बेहतर संचार और आईटी सेवाएं उपलब्ध होंगी। इन प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से स्थलाकृति की मैपिंग में मदद मिलती है जिसकी बहुमुखी उपयोगिता संभव है। मौसम पूर्वानुमान से लेकर खनिजों की खोज में भी ये तकनीक भविष्य में काफी लाभदायक सिद्ध होगी।

चंद्रयान 3 की सफलता से भारत के वैज्ञानिकों का विज्ञान व तकनीकी में वर्चस्व, हमारी मेधाशक्ति व मस्तिष्क की शक्ति आज समूचा विश्व मान रहा है, भारत के अमृतकाल में नई अंतरिक्ष यात्रा भारत की खगोलीय महत्वाकांक्षाओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाती है, जिससे यह अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिए दुनिया के लॉन्चपैड के रूप में स्थापित होने का कार्य करेगी ।

(लेखक कॉर्पोरेट लॉयर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)