Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाते बैंक

भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर है। आजादी के समय भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.7 लाख करोड़ रूपये की थी, जो वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में बढ़कर 41.74 लाख करोड़ रुपये की हो गई और यह सब मुमकिन हो सका है भारतीय बैंकों की सक्रिय और सकारात्मक भूमिका की वजह से।

बैंकों की विकास यात्रा

आजादी के समय देश में लगभग 1100 छोटे-बड़े निजी बैंक कार्य कर रहे थे, लेकिन उनका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना था। इसी वजह से सामाजिक सरोकारों को पूरा करते हुए मुनाफा कमाने के लिए भारतीय स्टेट बैंक का राष्ट्रीयकरण 1 जुलाई 1955 को किया गया, जबकि अन्य बैंकों का 1969 और 1980 में। 2017 में देश में 27 सरकारी बैंक थे, जिनकी संख्या समेकन के बाद अप्रैल 2020 में घटकर 12 रह गई।

बैंकों की मदद से सशक्त बनती अर्थव्यवस्था 

आज बैंक कॉरपोरेट्स, आधारभूत संरचना जैसे, सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी, कृषि प्रसंस्करण, रेल कारख़ाना, रेलवे लाइन, एयरपोर्ट, बंदरगाह आदि, सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योगों, कृषि व संबद्ध क्षेत्र, जैसे, पशुपालन, डेयरी, हस्तशिल्प, कृषि आधारित उद्योग, ग्रामीण क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं, मसलन, स्कूल, सड़क, बिजली, पानी आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये वित्त पोषण करने का काम कर रहे हैं। बैंक, ग्रामीणों को बैंक से जोड़ने, महिलाओं का सशक्तिकरण करने, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) या सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के खाते में सीधे राशि अंतरित करने, डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देकर ग्रामीणों की पहुँच दुनिया के बाजार तक करने, बिचौलिये की भूमिका को ख़त्म करने आदि का भी काम कर रहे हैं.

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, ग्रामीण क्षेत्र में कृषि, वाणिज्य, उद्योग और अन्य उत्पादन गतिविधियों में तेजी लाने और ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और सीमांत किसानों, कृषि श्रमिकों, छोटे उद्यमियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप वित्तीय सहयोग प्रदान करने का काम कर रहे हैं। नाबार्ड कृषि के अतिरिक्त छोटे उद्योगों, कुटीर उद्योगों एवं अवसंरचना से जुडी परियोजनाओं के विकास के लिये कार्य कर रहा है. नाबार्ड का उद्देश्य वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करना भी है. यह ज़िला स्तरीय ऋण योजनाएँ तैयार करता है, ताकि बैंक ग्रामीणों की वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सके.

सहकारी बैंक, सहकारी ऋण समितियों की मदद से किसानों, भूमिहीन किसानों और खेतिहर मजदूरों को बिचौलियों व साहूकारों के शोषण से बचाने का काम ग्रामीण क्षेत्र में कर रहा है. ग्रामीण भारत को मजबूत करने में भूमि विकास बैंक की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. यह बैंक दीर्घकालीन ऋण जरुरतमंदों को उपलब्ध करा रहा है. इसका मुख्य कार्य भूमि को बंधक रखकर ऋण देना है.

सिडबी बैंक का कार्य सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों की वृद्धि के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है. यह लघु उद्योगों के संवर्द्धन और विकासात्मक कार्यां के बीच समन्वयन बनाने का कार्य करता है. ग्रामीण क्षेत्रों की अवसंरचना को मजबूत करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. एक्जिम बैंक का मुख्य उद्देश्य आयातकों और निर्यातकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। देश के निर्यातकों और आयातकों को समय पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने में यह बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

ग्रामीण भारत में लगभग 83.3 करोड़ लोग निवास करते हैं, जिनमें से अधिकांश किसान एवं भूमिहीन किसान हैं. नाबार्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती-किसानी पर निर्भर हैं, जो देश के कुल परिवारों का 48 प्रतिशत है। कृषि कार्यों के निष्पादन में मूल समस्या वित्त पोषण की है. इसलिए, बैंक किसानों को भूमि सुधार, खाद-बीज, फसल की बुआई, कीटनाशक, पम्पिंग सेट, ट्रेक्टर, टेलर, हार्वेस्टर आदि के लिये ऋण मुहैया करा रहे हैं। बैंक बिजनेस कोरेस्पोंडेंट (बीसी) की मदद से भी ग्रामीणों को बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध करा रहे हैं। अधिक से अधिक लोग बैंक से जुड़ें के लिये केवाईसी के नियमों को भी सरल बनाया गया है। कृषि के साथ-साथ कृषि से जुड़े कार्यों जैसे, मछलीपालन, पशुपालन, मधुमख्खी पालन आदि से कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में लगातार इजाफा हो रहा है।

वित्तीय समावेशन और आत्मनिर्भर बनने में मददगार है प्रधानमंत्री जनधन योजना

प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत 9 अगस्त 2023 तक 50 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले जा चुके हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या 56 प्रतिशत थी और 67 प्रतिशत खाते ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में खोले गए थे। इस योजना की मदद से तेलंगना राज्य ने राज्य के सभी वर्गों तक बैंकिंग सेवा का विस्तार करते हुए 100 प्रतिशत घरों को कवर कर लिया है। इस योजना से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को बीमा की सुविधा उपलब्ध कराने, नियमित रूप से खाते का संचालन करने वालों को ओवरड्राफ्ट की सुविधा देने, पैसों की जमा व निकासी की सुविधा और डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा देने आदि में मदद मिली है।

ग्रामीणों की चिंता आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के अलावा नकदी प्रबंधन को लेकर ज्यादा  है. ग्रामीण इलाकों में घर से नकदी की चोरी, वित्तीय कुप्रबंधन, शराब एवं गैर-जरूरी मदों में पैसों की बर्बादी आदि आम समस्या है. पशुधन, खाद व बीज, पाइपलाइन, ट्रेक्टर, टेलर आदि खरीदने के लिए किसानों को समीपवर्ती नगरों में जाना पड़ता है।

यात्रा के दौरान पैसों की चोरी की आशंका बनी रहती है। प्रधानमंत्री जनधन योजना इन समस्याओं के निदान में आज महत्ती भूमिका निभा रहा है. इस योजना की मदद से ग्रामीणों को रुपे कार्ड, मोबाइल बैंकिंग, दुर्घटना व जीवन बीमा कवर, पेंशन, किसान क्रेडिट कार्ड, दूसरे प्रकार के कृषि ऋण, सब्सिडी आदि की सुविधाएँ मिल रही हैं.

रोजगार सृजन का वाहक बनती मुद्रा योजना

प्रधानमंत्री माइक्रो यूनिट्स डिवेलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) योजना के तहत 47 लाख छोटे और नए उधमियों को अब तक 27.75 लाख करोड़ रुपए का ऋण वितरित किया जा चुका है और वित्त वर्ष 2023-24 में 4.85 लाख करोड़ रुपए के ऋण वितरित किए जा चुके हैं। इस योजना के तहत छोटे एवं मझौले उधमियों (एसएमई) और सूक्ष्म, छोटे और मझौले उधमियों (एमएसएमई) को 10 लाख रुपए तक का ऋण बिना प्रतिभूति एवं गारंटी के दिया जाता है।

कर्ज वितरण में तेज वृद्धि

चालू वित्त वर्ष यानी वित्त वर्ष 2023-24 की दिसंबर तिमाही में भारतीय बैंकों की ऋण वृद्धि दर 16.8 प्रतिशत हो गई है, जो 2021 के दिसंबर में 8.4 प्रतिशत थी और 2022 के दिसंबर में 17.2 प्रतिशत थी। कोरोना महामारी के उपरांत अर्थव्यवस्था में रिकवरी दर्ज होने के बाद ऋण वृद्धि दर में तेजी आई है।

सीडी अनुपात में तेजी

रेटिंग एजेंसी केयर एज के अनुसार हाल ही में बैंकों के सीडी अनुपात में 26 आधार अंकों की वृद्धि हुई है और यह 26 फरवरी 2024 तक 80.20 प्रतिशत के स्तर पर था। इस एजेंसी के अनुसार सितंबर 2023 से भारतीय बैंकों का सीडी अनुपात 80 प्रतिशत से ऊपर के स्तर पर बना हुआ है। सीडी अनुपात से जमा और ऋण के अनुपात का पता चलता है अर्थात कितनी राशि ग्राहकों से जमा के रूप में ली गई है और कितनी राशि जरूरतमंदों को ऋण के रूप में वितरित की गई है। ज्यादा सीडी अनुपात रहने का अर्थ, बाजार में तरलता का होना है और साथ में क्रेडिट जोखिम की गुंजाइश का बना होना है। हालांकि, यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि बैंकिंग कारोबार में जोखिम हमेशा बना रहता है, जिसे कम करने की कोशिश बैंकों द्वारा की जाती रहती है.

दिसंबर तिमाही में बैंकों का प्रदर्शन

चालू वित्त की दिसंबर तिमाही में भारतीय स्टेट बैंक के मुनाफे में 35.49 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जिसका मूल कारण पेंशन देनदारी है, क्योंकि इस मद में 7,100 करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान किया गया है। पिछले साल की दिसंबर तिमाही में बैंक का मुनाफा 14,205 करोड़ रुपए था, जो अभी घटकर 9163.96 करोड़ रह गया है। दिसंबर तिमाही में बैंक की शुद्ध ब्याज आय सालाना आधार पर 4.59 प्रतिशत बढ़कर 39,816 करोड़ रुपए रही। यह एक साल पहले 38,069 करोड़ रुपए थी। भारतीय स्टेट बैंक के अलावा दूसरे सरकारी बैंकों के मुनाफे में भी दिसंबर तिमाही में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। मामले में निजी बैंकों का प्रदर्शन भी बेहतर रहा है।

एनपीए में कमी

अनुसूचित वाणिजियक बैंकों की सकल गैर निष्पादित संपत्ति (जीएनपीए), जो मार्च 2023 में घटकर 10 सालों के निचले स्तर 3.9 प्रतिशत पर आ गया, जिसके मार्च 2024 में घटकर 3.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि मार्च 2025 में यह 3.5 प्रतिशत रह सकता है। एनपीए में कमी आने का मूल कारण क्रेडिट पोर्टफोलियो का स्वस्थ रहना, एनपीए खातों का राइट ऑफ किया जाना और वसूली में उल्लेखनीय तेजी आना है।

मजबूत बने रहेंगे भारतीय बैंक

आज सभी देशों की एक दूसरे पर निर्भरता होने, यूक्रेन एवं रूस और फिलिस्तीन और हमास के बीच चल रहे युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है, जिससे ईंधन और कई उत्पादों की देश में किल्लत हो गई है. विकसित देशों में भी महंगाई चरम पर पहुँच गई है. बावजूद इसके भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है, क्योंकि समय-समय पर बैंकों द्वारा यथोचित व सारगर्भित कदम उठाने की वजह से बैंकिंग तंत्र लगातार मजबूत हो रहे हैं. भारत ने विगत वर्षों में न सिर्फ कोरोना जैसी खतरनाक महामारी पर जल्द काबू पाने में सफलता पाई, बल्कि केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक समयानुसार समीचीन कदम उठाकर अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने में सफल रहे.

भारतीय बैंकों की परिस्थितियां अमेरिका और यूरोप के बैंकों से अलग हैं. इसलिए, जब अमेरिका और यूरोप में बैंक डूब रहे थे, तब भी भारतीय बैंक मजबूती से खड़े थे। भारत में बैंक नियामक और खुद की नीतियों के अनुरूप काम कर रहे हैं। ये हर साल नई ऋण नीति बनाते हैं. इसलिए, किसी भी कीमत पर ये किसी एक क्षेत्र या उद्योग को ऋण नहीं दे सकते हैं. नियामक भी बैंकों की कार्यप्रणाली की लगातार समीक्षा करता रहता है. भारतीय बैंक ग्राहकों की पूरी जमा राशि का इस्तेमाल ऋण देने में नहीं कर सकते हैं. मामले में एक निश्चित राशि बैंकों को रिजर्व बैंक के पास रिजर्व या कुशन के रूप में रखना होता है. बैंक परिसंपत्ति-देयता के संतुलन को बनाकर काम करते हैं. अस्तु, प्रतिकूल स्थिति में या संकट के समय में भी भारतीय बैंक पूंजी पर्याप्तता अनुपात के न्यूनतम जरूरत को पूरा करने में सफल रहते हैं। बैंकों ने बीते कुछ सालों से परिसंपत्ति पर दबाव को कम करने, राजस्व बढ़ाने और एनपीए को कम करके मुनाफा बढ़ाने के मोर्चे पर सुधार दर्ज किया है।

वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारतीय बैंकों और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की संपत्ति की गुणवत्ता स्थिर बनी रहेगी और भारतीय बैंकों को सुचारू परिचालन से लाभ होता रहेगा। मूडीज के मुताबिक, उच्च मुद्रास्फीति के बीच बढ़ती ब्याज दरों से मार्जिन में धीरे-धीरे वृद्धि होगी, जिससे बैंकों के मुनाफा में वृद्धि होगी।

अभी भारतीय बैंक एनपीए में होने वाली संभावित वृद्धि से भी निपटने में समर्थ हैं, क्योंकि उनके पास अतिरिक्त पूँजी है और वे एनपीए हेतु प्रावधान करने में समर्थ हैं. मूडीज ने विगत महीनों में 9 भारतीय निजी और सरकारी बैंकों की रेटिंग का उन्नयन करते हुए उसे आउटलुक निगेटिव से स्टेबल कर दिया गया है। मूडीज ने जिन बैंकों की रेटिंग का उन्नयन किया है, उनमें निजी क्षेत्र के एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और सरकारी क्षेत्र के बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, एक्जिम बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं।

निष्कर्ष

भारतीय बैंकिंग प्रणाली कर्ज वितरण में तेजी आने, सीडी अनुपात के सकारात्मक रहने और बैंकों के वित्तीय प्रदर्शन में बेहतरी आने से लचीली और सशक्त बनी हुई है। यह वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में हुई हाल की नकारात्मक घटनाओं से प्रभावित नहीं हुई है। मौजूदा समय में भारतीय बैंकों का “कारोबारी मॉडल” बेहद ही मजबूत है और इसी वजह से विदेशी बैंकों के डूबने का असर भारतीय बैंकों पर नहीं पड़ा और आगे भी भारतीय बैंकों के मजबूत बनी रहने की प्रबल संभावना है. इधर, आजादी के उपरांत भारतीय अर्थव्यवस्था भारतीय बैंकों की मदद से मजबूत बनने में सफल हुई है। बैंकों की मदद से ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में वंचित तबकों की स्थिति पहले से काफी बेहतर हुई है। बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता के मामले में भी बेहतरी आई है। देश में समावेशी विकास के सपने को साकार किया जा रहा है। आज बैंक, जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, फसल बीमा आदि भी आमजन और कारोबारियों को उपलब्ध करा रहे हैं। बैंक, प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को लक्ष्य के अनुरुप ऋण प्रदान कर वंचित तबके को भी आत्मनिर्भर बना रहे हैं।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महाप्रबंधक (ज्ञानार्जन एवं विकास) हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)