विगत कुछ दिनों से बांग्लादेश में जो घटित हो रहा है उससे साफ है कि आने वाले दिनों में भारत समेत दक्षिण एशिया का संतुलन बिगड़ने वाला है क्योंकि जिस तरह से छात्र आन्दोलन के आवरण में प्रतिबंधित समूह जमात-ए-इस्लामी के आतंकवादी वहां तांडव मचा रहे हैं उसको देखते हुए स्पष्ट है कि वहां आने वाले दिनों में आतंकवाद का खतरा बढेगा.
इस बात की संभावना भी है कि वहां पाकिस्तान पोषित आतंकवाद अपना पैर पसारेगा. बांग्लादेश में जिस तरह से सेना के रहते हुए प्रधानमंत्री आवास में उत्पात मचाया गया, कुछ अतिवादी जिसे कथित तौर पर छात्र कहा जा रहा है उनकी अश्लील और विकृत मानशिकता सार्वजानिक तौर पर पूरी दुनिया देख चुकी है. ऐसे लोग छात्र तो किसी भी कीमत पर नहीं हो सकते हैं.
यह मानसिकता विशुद्ध रूप से कामांध आतंकवादियों की ही हो सकती है, जो पहले भी लीबिया और सीरिया में देखी जा चुकी है. दुनिया जानती है कि इन सबके पीछे पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का हाथ है, जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी केवल इसके मोहरे भर हैं.
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी दोनों ही बांग्लादेश में आतंकवाद और कट्टरपंथ को हमेशा से प्रश्रय देते आये हैं. इतिहास को देखें तो आज़ादी के समय से बांग्लादेश में जितने भी उत्पात और दंगे हुए हैं उस सब में इन्ही दोनों संगठनों का हाथ रहा है. ये दोनों संगठन जितने बड़े कट्टरवादी हैं उतने ही बड़े अवसरवादी भी हैं. बांग्लादेश में शेख हसीना के पलायन के बाद और अंतरिम सरकार के गठन के मध्य जो घटना घटित हुयी वो बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के चरित्र को उजागर करती है.
अंतरिम सरकार बनने से पहले ही दोनों संगठनों के करीब 9000 आरोपियों के को जेलों से रिहा कर दिया गया जिनपर बांग्लादेश में आतंकवाद और कट्टरता को बढ़ावा देने का आरोप था. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया और उनके पुत्र तारिक रहमान के संरक्षण में इन दलों ने आम जनसभा को संबोधित भी किया है। ध्यान देने योग्य बात यह है की तारिक एक घोषित अपराधी है जिसपर हत्या के तीन मामले दर्ज है और उसको बंगलदेश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा भी मिली है. इस सजा से बांचने के लिए तारिक लन्दन भाग गया था. वर्तमान में बांग्लादेश में अदालतें खामोश और निष्क्रिय हैं.
बांग्लादेश के अस्थिरता की यह कहानी नई नहीं है. इसकी पटकथा 1971 के बाद से ही लिखी जा चुकी थी, पाकिस्तान को बस प्रतीक्षा थी सही समय और माहौल का. वह हर उस कुकर्म को बांग्लादेश में करने को आतुर था जिससे बंगाली संस्कृति और बांग्लादेश की बर्बादी सुनिश्चित हो. इसके लिए पाकिस्तान ने बांग्लादेश में जमात ए इस्लामी को और बीएनपी को अपना मोहरा बना के रखा था. इस कहानी की गहराई में जाने पर यह सपष्ट हो जायेगा कि बीएनपी और जमात के साथ पाकिस्तान का एक गुप्त समझौता है कि बांग्लादेश में शेख मुजीब की राजनितिक विरासत और बांग्लादेश और बंगाली संस्कृति की संरक्षक पार्टी ‘अवामी लीग’ को ही समाप्त कर दिया जाए, जिससे 1971 के कालिख को मिटाया जा सके जो मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना पाकिस्तान के मुंह पर पोती थी. हसीना के बांग्लादेश छोड़ कर चले जाने के साथ ही शेख मुजीब की सियासी विरासत तो समाप्त हो गई। पाकिस्तानी फौज गदगद है और लड्डू बाँट रही है। ऐसी सूचनाएं भी हैं कि आईएसआई लंदन में तारिक रहमान और जमात के नेतृत्व के साथ 2018 से ही ‘तख्तापलट’ की साजिश रच रही थी, लेकिन अभी तक नाकाम रही। मौजूदा आंदोलन का आवरण छात्रों का था, लेकिन उनकी आड़ में जमात और बीएनपी के कार्यकर्ताओं ने ही आंदोलन को ‘तख्तापलट’ का रूप दिया था।
जमात का छात्र संगठन ही आंदोलन और बगावत के पीछे सक्रिय था। बेशक शेख हसीना को मुल्क छोड़े कई दिन गुजर चुके हैं, लेकिन बांग्लादेश के हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं। सैकड़ो लोग मारे गए हैं। कुल मौतों की संख्या 450 से अधिक हो गई है। चूंकि प्रधानमंत्री के तौर पर हसीना भारत-समर्थक थीं। दोनों देशों ने कई साझा परियोजनाएं शुरू कीं और पुराने विवादों को भी खत्म किया। अब अंतरिम सरकार के दौर में कट्टरपंथी और भारत-विरोधी ताकतें ऐलानिया कह रही हैं कि उन परियोजनाओं की जांच और समीक्षा की जाएगी।
बांग्लादेश के एक तबके का भारत-विरोध इससे स्पष्ट होता है कि बीते तीन दिनों में ही 30 हिंदू मंदिर तोड़ दिए गए। उनमें आस्था की देव-मूर्तियों को भी खंडित कर ध्वस्त किया गया। मंदिरों में आग लगा दी गई। हिंदुओं के 300 से अधिक घर और उनकी दुकानें भी तोड़ी गईं और आगजनी भी की गई। बीते कुछ सालों के दौरान करीब 3600 हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा चुका है और उन्हें आग के हवाले किया जाता रहा है। क्या बांग्लादेश हिंदू-विरोधी भी हो रहा है? बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी अब मात्र 7.9 फीसदी है, जबकि 1971 में देश-निर्माण के वक्त यह आबादी करीब 23 फीसदी थी।
बेशक हिंदू घोर अल्पसंख्यक हैं। जमात भी भारत का विरोध करती रही है। जमात तो 1971 में भी पाकिस्तानपरस्त था और बांग्लादेश बनाने के अभियान के खिलाफ था। यह भी हकीकत है कि बांग्लादेश कई मामलों में भारत के भरोसे रहा है। हकीकत यह भी है कि अब बांग्लादेश में करीब 80 फीसदी सैन्य हथियार चीन से आते हैं। क्या नई सरकार चीन के साथ अपने संबंध मजबूत करेगी और भारत का खुलेआम विरोध करेगी. इस प्रश्न का जवाब भविष्य के गर्भ में है.