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महंगाई और विकास के बीच संतुलन साधने की पहल

हंगाई और विकास के बीच संतुलन साधने के लिए ताजा मौद्रिक समीक्षा में मौद्रिक नीति समिति ने लगातार 9वीं बार रेपो दर में बदलाव नहीं करके इसे 6.5 प्रतिशत के स्तर पर यथावत रखा है। इसके पहले फरवरी 2023 में रेपो दर में बढ़ोतरी की गई थी। रिजर्व बैंक मुख्य तौर पर रेपो दर में बढ़ोतरी करके महंगाई से लड़ने की कोशिश करता है। जब रेपो दर अधिक होता है तो बैंकों को रिजर्व बैंक से महंगी दर पर कर्ज मिलता है, जिसके कारण बैंक भी ग्राहकों को महंगी दर पर कर्ज देते हैं। ऐसा करने से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता कम हो जाती है और लोगों की जेब में पैसे नहीं होने की वजह से वस्तुओं की मांग में कमी आती है और वस्तुओं व उत्पादों की कीमत अधिक होने के कारण इनकी बिक्री में कमी आती है, जिससे महंगाई में गिरावट दर्ज की जाती है। इसी तरह अर्थव्यवस्था में नरमी रहने पर विकासात्मक कार्यों में तेजी लाने के लिए बाजार में मुद्रा की तरलता बढ़ाने की कोशिश की जाती है और इसके लिए भी रेपो दर में कटौती की जाती है, ताकि बैंकों को रिजर्व बैंक से सस्ती दर पर कर्ज मिले और सस्ती दर पर कर्ज मिलने के बाद बैंक भी ग्राहकों को सस्ती दर पर कर्ज दे।

मौजूदा समय में महंगाई दर सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। केयर एज रेटिंग के अनुसार कर्ज दर के नरम नहीं होने के बावजूद वित्त वर्ष 2023-24 में ऋण वृद्धि दर 16 प्रतिशत के आसपास रही है और वित्त वर्ष 2024-25 में इसके 14 से 14.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है। ऐसी स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद ही सकारात्मक है। हालांकि, इसे अपवाद वाली स्थिति कहा जा सकता है। बहरहाल, कर्ज देने की रफ्तार में तेजी बनी रहने के कारण आर्थिक गतिविधियों और विकास दर दोनों में तेजी आ रही है। इसी वजह से भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2025 के लिए अपने विकास अनुमान को 7.00 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है।

वित्त वर्ष 2023-2024 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.8 रही, जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह 6.1 प्रतिशत रही थी। वहीं, वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही, जो भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान से 1.2 प्रतिशत अधिक है यानी रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 7 प्रतिशत लगाया था। पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 7 प्रतिशत रही थी। सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार विनिर्माण और खनन के क्षेत्र में मजबूत प्रदर्शन से आलोच्य अवधि में विकास दर तेज रही। विनिर्माण क्षेत्र में 9.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है, जो वित्त वर्ष 2022-23 में माइनस 2.2 प्रतिशत रही थी। इसी प्रकार खनन क्षेत्र में वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 7.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 1.9 प्रतिशत रही थी. उल्लेखनीय है कि विनिर्माण क्षेत्र रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

खुदरा महंगाई अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है, क्योंकि बाढ़ और बारिश की वजह से जुलाई, अगस्त और सितंबर महीने में खाद्य वस्तुओं की कीमत उफान पर रहने का अनुमान है। वैसे, सर्दी में इसमें कुछ नरमी आ सकती है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2025 में मुद्रास्फीति के 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, लेकिन यह स्तर विकास के लिए निर्णायक निर्णय लेने के लिए पर्याप्त नहीं है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार जून महीने में खुदरा महंगाई मई महीने के मुकाबले 0.33 प्रतिशत बढ़कर 5.08 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई, जबकि मई महीने में यह 4.75 प्रतिशत रही थी, जो 12 महीने का निचला स्तर था। अप्रैल महीने में खुदरा महंगाई में कुछ कमी आई थी, लेकिन वह मई महीने से थोड़ी अधिक 4.83 प्रतिशत के स्तर पर थी। जून 2023 में खुदरा महंगाई 4.81 प्रतिशत थी, जबकि जुलाई 2023 में यह 4.44 प्रतिशत रही थी।

महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर या खरीदने की क्षमता से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 6 प्रतिशत है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 94 रुपए होगा। इसलिए महंगाई के स्तर के अनुरूप निवेशकों को निवेश करना चाहिए, अन्यथा उन्हें प्रतिफल कम मिलेगा। महंगाई का बढ़ना और घटना उत्पाद की माँग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा उत्पाद खरीदेंगे और ज्यादा उत्पाद खरीदने से माँग बढ़ेगी और माँग के मुताबिक आपूर्ति नहीं होने पर उत्पादों की कीमत बढ़ेगी। इस तरह, बाजार महंगाई के दुष्चक्र में फंस जायेगा। बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या उत्पाद की कमी महंगाई का कारण बनता है। वहीं, अगर माँग कम होगी और आपूर्ति ज्यादा होगी तो महंगाई कम होगी।

ग्राहक खुदरा बाजार से सामान खरीदते हैं और बाजार में मौजूद उत्पादों की कीमत में हुए बदलाव को मापने का काम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) करता है। उत्पाद और सेवाओं के लिए जो औसत मूल्य चुकाया जाता है, सीपीआई उसी को मापता है। कच्चे तेल, उत्पादों की कीमतों, निर्माण की लागत के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जो खुदरा महंगाई दर को तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में लगभग 300 उत्पाद ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर खुदरा महंगाई दर तय होती है।

इसतरह, किसी की क्रय शक्ति को निर्धारित करने में मुद्रास्फीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मुद्रास्फीति बढ़ने पर वस्तु एवं सेवा दोनों की कीमतों में इजाफा होता है, जिससे व्यक्ति की खरीददारी क्षमता कम हो जाती है और वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम होती है। फिर, उनकी बिक्री कम हो जाती है, उनके उत्पादन में कमी आती है, कंपनी को घाटा होता है, कामगारों की छंटनी होती है, रोजगार सृजन में कमी आती है आदि। इसकी वजह से आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ जाती हैं और विकास की गति बाधित होती है।

विगत कुछ महीनों से उधारी ब्याज दर के उच्च स्तर पर बने रहने के बावजूद भी ऋण  वितरण में तेजी आ रही है और विकास दर की रफ्तार भी तेज बनी हुई है। वैसे, ऐसी स्थिति अपवाद वाली है।

एचएसबीसी इंडिया का पीएमआई आंकड़ा जुलाई 2024 में 58.1 रहा, जो जून महीने में 58.3 पॉइंट रहा था और मई महीने में 57.5 पॉइंट रहा, वहीं अप्रैल महीने में यह 58.8 पॉइंट रहा था। यह आंकड़ा आर्थिक गतिविधियों में तेजी को दर्शाता है और 50 पॉइंट से अधिक इस आंकड़े के रहने का अर्थ है कि देश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी बनी हुई है।

भारत में मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक द्वारा तय की गई सहनशीलता सीमा के अंदर रहने के बावजूद चिंताजनक स्तर पर है। इसलिए, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखा गया है। मंहगाई को लेकर केंद्रीय बैंक बहुत ज्यादा संवेदनशील है और यह महंगाई और विकास दर के बीच संतुलन बनाकर अर्थव्यवस्था को मजबूत रखना चाहता है, ताकि आम आदमी को परेशानी भी नहीं हो और विकास की रफ्तार भी तेज बनी रहे।

Author

  • सतीश सिंह

    (लेखक भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महाप्रबंधक (ज्ञानार्जन एवं विकास) हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)

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