Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

कृषि – परिवर्तन के दस वर्ष

देश के किसान जिन्हें अक्सर ‘अन्नदाता’ के रूप में जाना जाता है, उनकी ताकत और जीवटता का संबंध राष्ट्र के समग्र सशक्तिकरण और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। समाज के इस महत्वपूर्ण वर्ग के उत्थान के लिए भारत सरकार के ईमानदार प्रयासों की सराहना और मान्यता जरूरी है। भारत जैसी तेजी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था में उद्योगों और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के परिवर्तन के साथ-साथ कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

आज पूरे देश में किसान आर्थिक सुरक्षा और आत्मविश्वास की नई भावना का अनुभव कर रहे हैं।

  • सरकार का किसान-केंद्रित दृष्टिकोण दिखाता है कि 2007-14 के दौरान कृषि के लिए निर्धारित बजट 1.37 लाख करोड़ से 5 गुना बढ़कर 2014-25 के दौरान ₹7.27 लाख करोड़ हो गया।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) किसान नामांकन के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना बन गई है। साथ ही बीमा प्रीमियम के मामले में यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी योजना है।
  • खेतों के निकट बुनियादी ढांचा का विकसित होना किसानों के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। कृषि अवसंरचना कोष की स्थापना के बाद से 48,352 परियोजनाओं के लिए 35,262 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं।
  • एआईएफ के तहत स्वीकृत प्रमुख परियोजनाओं में 11,165 वेयरहाउस, 10,307 प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयां, 10,948 कस्टम हायरिंग सेंटर, 2,420 सार्टिंग और ग्रेडिंग इकाइयां, 1,486 कोल्ड स्टोर परियोजनाएं, 169 परख इकाइयां और लगभग 11,857 अन्य प्रकार की फसल कटाई के बाद की प्रबंधन परियोजनाएं और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियां शामिल हैं।
  • ऐतिहासिक एमएसपी वृद्धि की घोषणा की गई, जहां पहली बार सभी 22 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से न्यूनतम 50 प्रतिशत अधिक निर्धारित किया गया।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को उनकी मिट्टी की पोषक स्थिति और उसकी संरचना की जानकारी प्रदान करते हैं। 19 दिसंबर 2023 तक किसानों को 23.58 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जा चुके हैं।
  • शत-प्रतिशत नीम लेपित यूरिया की शुरुआत की गई। पिछले 10 वर्षों में यूरिया उत्पादन जो 2014 में 225 लाख मीट्रिक टन था, यह बढ़कर 310 लाख मीट्रिक टन हो गया है।
  • परंपरागत कृषि विकास योजना के शुभारंभ के बाद 2015-16 से 31. जनवरी 2024 तक कुल 1980.88 करोड़ रुपये का फंड जारी किया गया। इस योजना के तहत 37,364 क्लस्टर (प्रत्येक 20 हेक्टेयर) बनाए गए, 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र (एलएसी सहित) कवर किया गया है और 16.19 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं।
  • एफपीओ को बढ़ावा- 31 जनवरी 2024 तक 7,950 एफपीओ पंजीकृत हो चुके हैं। 3,183 एफपीओ को 142.6 करोड़ रुपये का इक्विटी अनुदान जारी किया गया है। 1,101 एफपीओ को 246.0 करोड़ रुपये का क्रेडिट गारंटी कवर जारी किया गया।
  • कृषि यंत्रीकरण- 2014-15 से दिसंबर, 2023 की अवधि के दौरान कृषि यंत्रीकरण के लिए 6405.55 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है। कृषि मशीनीकरण संबंधी उप-मिशन (एसएमएएम) के फंड से अब तक 141.41 करोड़ रुपये की धनराशि किसान ड्रोन प्रोत्साहन के लिए जारी की जा चुकी है। इसमें 79070 हेक्टेयर भूमि में डिमॉस्ट्रेशन के लिए 317 ड्रोन की खरीद की गई। साथ ही किसानों को सब्सिडी पर 527 ड्रोन की आपूर्ति की गई।
  • 31 जनवरी 2024 तक 1.77 करोड़ किसान और 2.53 लाख व्यापारी ई-नाम पोर्टल पर पंजीकृत हो चुके हैं।
  • किसान रेल की शुरुआत- 28 फरवरी 2023 तक 167 मार्गों पर 2359 सेवाएं संचालित की जा चुकी हैं।

अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में किसानों के अमूल्य योगदान को पहचानते हुए भारत सरकार ने कई नीतियों और योजनाओं के माध्यम से सहायता को बढ़ाया है। ये नीतियां किसानों को महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, उनकी कठिनाइयों को कम करती हैं। इसके साथ ही उन्हें देश के कल्याण में योगदान करने और अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम बनाती हैं।

कृषि का आर्थिक प्रभाव: राष्ट्र के भविष्य आकार देना

कृषि क्षेत्र जिसका वित्त वर्ष 2024 में भारत के जीवीए का 18 प्रतिशत हिस्सा होने का अनुमान है, देश की अर्थव्यवस्था का आधार है। वैश्विक स्वास्थ्य संकट और जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तनशीलता से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद इस क्षेत्र ने उल्लेखनीय दृढ़ता और मजबूती का प्रदर्शन किया है। इससे भारत के आर्थिक सुधार और विकास में महत्वपूर्ण योगदान मिला है।

वित्त वर्ष 23 के लिए कुल खाद्यान्न उत्पादन 329.7 मिलियन टन था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14.1 मिलियन टन अधिक है। वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2023 में प्रति वर्ष औसत खाद्यान्न उत्पादन 289 मिलियन टन था, जबकि वित्त वर्ष 2005 से वित्त वर्ष 2014 में यह 233 मिलियन टन था। चावल, गेहूं, दालें, पोषक/मोटे अनाज और तिलहन के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि देखी गई। भारत का वैश्विक प्रभुत्व कृषि वस्तुओं तक फैला हुआ है, जिससे यह दुनिया भर में दूध, दालों और मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है।

इसके अतिरिक्त भारत फलों, सब्जियों, चाय, मछली, गन्ना, गेहूं, चावल, कपास और चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। बागवानी उत्पादन 355.25 मिलियन टन था जो भारतीय बागवानी के लिए अब तक का सबसे अधिक (तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार) है।

बेहतर प्रदर्शन कृषि निर्यात में भारी उछाल के रूप में भी दिखता है, जो वित्त वर्ष 2023 में 4.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष के रिकॉर्ड को पार कर गया है। अवसरों और उचित नीति निर्धारण को देखते हुए भारत के किसानों ने शेष विश्व की खाद्य मांगों को पूरा करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। भविष्य में और भी बेहतर संभावनाएं हैं।

किसानों को सशक्त बनाना : अभूतपूर्व पहल और प्रयास

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (पीएम-केएमवाई), प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) जैसी नीतिगत पहल किसानों को वित्तीय और आय सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। सरकार ने देश की कृषि नीति और योजनाओं में 10 करोड़ से ज्यादा छोटे किसानों को प्राथमिकता दी है।

पीएम-किसान सम्मान योजना के तहत हर साल सीमांत और छोटे किसानों सहित 11.8 करोड़ किसानों को सीधी वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। योजना के तहत किसानों को अब तक 2.80 लाख हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि मिल चुकी है।

साथ ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 4 करोड़ किसानों को फसल बीमा दिया जाता है। यह व्यापक फसल बीमा पॉलिसी यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को गैर-रोकथाम योग्य प्राकृतिक कारणों से सुरक्षा मिले। उनकी आजीविका सुरक्षित रहे और अप्रत्याशित आपदाओं की स्थिति में वित्तीय बर्बादी को रोका जा सके। इस योजना के तहत किसानों ने 30 हजार करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा किया। इसके बदले में उन्हें 1.5 लाख करोड़ रुपये का क्लेम मिला है। सरकार पीएम-केएमवाई के तहत नामांकित 23.4 लाख छोटे और सीमांत किसानों को पेंशन लाभ भी प्रदान करती है।  पिछले 10 वर्षों में किसानों के लिए बैंकों से आसान ऋण में तीन गुना वृद्धि हुई है। इस तरह की पहल और योजनाओं व अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार देश व दुनिया के लिए अनाज पैदा करने में ‘अन्नदाता’ की सहायता कर रही हैं।

किसानों को सस्ती कीमत पर खाद उपलब्ध कराने के लिए 10 साल में 11 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। सरकार ने 1.75 लाख से अधिक प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र स्थापित किए हैं। अब तक लगभग 8,000 किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाए जा चुके हैं।

भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र के विकास और मजबूती को बढ़ावा देने के लिए कई रणनीतिक उपाय लागू किए हैं। उल्लेखनीय पहल के तहत 22 खरीफ और रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में लगातार वृद्धि की गई।

पिछले 10 वर्षों में किसानों को धान और गेहूं की फसल के लिए एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के रूप में लगभग 18 लाख करोड़ रुपये मिले हैं। धान और गेहूं की फसल के लिए एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के रूप में 18 लाख करोड़ दिए गए। यह 2014 से पहले के 10 वर्षों की तुलना में 2.5 गुना अधिक है। पहले तिलहन और दलहन फसलों की सरकारी खरीद न के बराबर होती थी। पिछले दशक में तिलहन और दलहन उत्पादक किसानों को एमएसपी के रूप में 1.25 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मिले हैं।

कृषि वर्ष 2018-19 के बाद से सरकार ने एमएसपी के तहत कवर की गई प्रत्येक फसल के लिए अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत पर न्यूनतम 50 प्रतिशत मार्जिन सुनिश्चित किया है। इस मूल्य समर्थन का उद्देश्य भारत की आयात निर्भरता को कम करना और दालों, तेल और व्यावसायिक फसलों के प्रति विविधीकरण को बढ़ावा देना है। 2023-24 में मसूर के लिए एमएसपी में सबसे अधिक वृद्धि ₹425 प्रति क्विंटल की गई। इसके बाद सफेद सरसों (रेपसीड) और सरसों के लिए ₹200 प्रति क्विंटल को मंजूरी दी गई।

आर्थिक रूप से कमजोर आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकारी नीतियों की आधारशिला है। खाद्यान्नों की समय पर ठीक तरह से खरीद और वितरण सर्वोपरि है। एमएसपी संचालन के तहत 19 जून, 2023 तक केंद्रीय पूल के लिए 830 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से अधिक धान की खरीद की गई है। 2022-23 के खरीफ विपणन सीजन के लिए चल रहे धान खरीद कार्यों से 1.2 करोड़ से अधिक किसानों को लाभ हुआ है। 1.7 लाख करोड़ रुपये का एमएसपी सीधे उनके खातों में हस्तांतरित किया गया है। चालू सीजन में 19 जून 2023 तक गेहूं की खरीद पिछले साल की कुल खरीद 74 लाख मीट्रिक टन से अधिक होकर 262 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गई है। इसके अलावा किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए, सरकार ने 2018 में प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना शुरू की।

उत्पादकता में सुधार और उत्पादन प्रक्रिया की प्रभावशीलता बढ़ाने पर ध्यान देने के साथ कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) और प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (पीएमकेएसवाई) के माध्यम से फसल के बाद के बुनियादी ढांचे के निवेश में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई-पीडीएमसी) के प्रति बूंद अधिक फसल घटक जैसी टिकाऊ कृषि विधाओं को अपनाने और कृषि को बदलने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है, जो इसे और अधिक मजबूत बना रहा है।

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना से 38 लाख किसानों को लाभ हुआ है और 10 लाख रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं। प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकीकरण योजना ने 2.4 लाख एसएचजी और साठ हजार व्यक्तियों को क्रेडिट लिंकेज से सहायता प्रदान की है। अन्य योजनाएं फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने और उत्पादकता और आय में सुधार के प्रयासों को पूरक बना रही हैं।

भविष्य की खेती: एग्रीटेक क्रांति

सरकार ने उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल समावेशन और मशीनीकरण को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है। 2016 में डिजिटल प्लेटफॉर्म ई-एनएएम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) के लॉन्च ने कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) मंडियों के एकीकरण की सुविधा दी है और किसानों, किसान-उत्पादक संगठनों (एफपीओ), खरीदारों और व्यापारियों को बहुआयामी लाभ प्रदान किया है। ई-नाम प्लेटफॉर्म से जुड़े बाजारों की संख्या 2016 में 250 से बढ़कर 2023 में 1,389 हो गई है। इससे 209 कृषि और बागवानी वस्तुओं के ऑनलाइन व्यापार की सुविधा मिल गई है।

इस प्लेटफॉर्म पर 1.8 करोड़ से अधिक किसानों और 2.5 लाख व्यापारियों का पंजीकरण हुआ है, जो पारदर्शी मूल्य खोज प्रणाली और ऑनलाइन भुगतान सुविधा के माध्यम से बाजार के अवसरों को बढ़ावा देता है। इसके अलावा इस प्लेटफॉर्म पर व्यापार का मूल्य अगस्त 2017 में 0.3 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर नवंबर 2023 में 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया।

प्रौद्योगिकी अपनाने पर सरकार ने बल दिया है। सरकार के प्रयासों से स्प्ष्ट है कि किसानों के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी को किफायती बनाया गया। किसानों के खेतों में डिमॉस्ट्रेशन के लिए ड्रोन लागत और आकस्मिक व्यय का शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा सरकार प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) को कम्प्यूटरीकृत करके सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए कदम उठा रही है। एकल राष्ट्रीय सॉफ्टवेयर नेटवर्क के माध्यम से नाबार्ड के साथ 62,318 कार्यात्मक पैक्स का जुड़ाव ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण वितरण प्रणालियों में सुधार की प्रतिबद्धता को दिखाता है।

सरकार ने प्रभावी योजना, निगरानी, नीति-निर्माण, रणनीति निर्माण और योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए एक संघीय संरचना, एग्रीस्टैक भी बनाया है। सामूहिक रूप से ये पहल किसानों को कम लागत और उच्च सुविधा पर गुणवत्तापूर्ण इनपुट, समय पर जानकारी, ऋण, बीमा और बाजार के अवसरों तक पहुंच बढ़ाने में योगदान देती हैं।

किसानों को सशक्त बनाने पर जोर : बाजार-उन्मुख पहल और प्रयास

सरकार ने पहली बार देश में कृषि निर्यात नीति बनाई है। इससे कृषि निर्यात 4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। सरकार कृषि क्षेत्र में सहकारिता को बढ़ावा दे रही है। इसलिए देश में पहली बार सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की गई है। सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना शुरू की गई है। जिन गांवों में सहकारी समितियां नहीं हैं, वहां 2 लाख समितियां स्थापित की जा रही हैं।

इस क्षेत्र की तीव्र वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार एकत्रीकरण, आधुनिक भंडारण, कुशल आपूर्ति श्रृंखला, प्राथमिक और माध्यमिक प्रसंस्करण एवं विपणन व ब्रांडिंग सहित फसल कटाई के बाद की गतिविधियों में निजी और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देगी।

कृषि सहक्रियाओं का बढ़ावा देना : संबद्ध क्षेत्रों को सशक्त बनाना

मछुआरों की सहायता के महत्व को समझते हुए 2019 में मत्स्यपालन के लिए एक अलग विभाग स्थापित किया गया था। इसके परिणामस्वरूप अंतर्देशीय और जलीय कृषि उत्पादन दोगुना हो गया है। मत्स्यपालन क्षेत्र में 38 हजार करोड़ रुपये से अधिक की योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं, जिससे पिछले दस वर्षों में मछली उत्पादन 95 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 175 लाख मीट्रिक टन यानी लगभग दोगुना हो गया है। अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन 61 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 131 लाख मीट्रिक टन हो गया है। मत्स्यपालन क्षेत्र में निर्यात दोगुना से भी ज्यादा यानी 30 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 64 हजार करोड़ रुपये हो गया है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के क्रियान्वयन को मत्स्य क्षेत्र से जुड़े सहयोगी क्षेत्रों को अधिकार संपन्न बनाने की दृष्टि से आगे बढ़ाया जाएगा ताकि जलीय कृषि उत्पादकता को मौजूदा 3 से 5 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सके, निर्यात को दोगुना करके 1 लाख करोड़ रुपये करने और निकट भविष्य में 55 लाख रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकें। साथ ही पांच एकीकृत एक्वॉपार्क भी स्थापित किए जाएंगे।

देश में पहली बार पशुपालकों और मछुआरों को किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ दिया गया है। पिछले दशक में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 40 प्रतिशत बढ़ी है। पशुओं को खुरपका-मुंहपका रोग से बचाने के लिए पहला निःशुल्क टीकाकरण अभियान चल रहा है। अब तक चार चरणों में 50 करोड़ से ज्यादा खुराकें जानवरों को दी जा चुकी हैं।

भावी परियोजनाएं

  • नैनो डीएपी : नैनो यूरिया को सफलतापूर्वक अपनाने के बाद सभी कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों पर नैनो डीएपी के इस्तेमाल का विस्तार किया जाएगा।
  • आत्मनिर्भर तेल बीज अभियान : 2022 में घोषित पहल के आधार पर सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों के लिए ‘आत्मनिर्भरता’ हासिल करने के लिए एक रणनीति तैयार की जाएगी। इसमें अधिक उपज देने वाली किस्मों के लिए अनुसंधान, आधुनिक कृषि तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाना, बाजार संपर्क, खरीद, मूल्य संवर्धन और फसल बीमा शामिल होंगे।
  • डेयरी विकास : डेयरी किसानों की सहायता के लिए एक व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा। खुरपका-मुंहपका रोग पर नियंत्रण के लिए पहले से ही प्रयास जारी हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है लेकिन दुधारू पशुओं की उत्पादकता कम है। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय पशुधन मिशन और डेयरी प्रसंस्करण और पशुपालन के लिए बुनियादी ढांचा विकास निधि जैसी मौजूदा योजनाओं की सफलता पर बनाया जाएगा।

कृषि क्षेत्र ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। विविध और पौष्टिक खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए कृषि कार्यप्रणालियों में निरंतर नवाचार, फसल की विविधता में सुधार और प्रौद्योगिकी को अपनाना आवश्यक है। इसके अलावा नीतिगत स्थिरता और निरंतरता जो किसानों के लिए बाजार और उत्पादन विकल्पों का विस्तार करती है। यह एक ही समय में बड़े पर्यावरणीय और पारिस्थितिक महत्व और देश में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और मांग को बनाए रखती है। यह किसानों को नई तकनीकी और विधाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में उपयोगी होगी।

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