विश्व के दूसरे देशों की तरह भारत भी चाइनीज वायरस प्रकोप से जूझ रहा है। हालांकि, समय से हुई देशबंदी और उस समय का प्रयोग इस बीमारी से लड़ने के लिए के लिए तैयारी करने से भारत की स्थिति दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर रही है, लेकिन देशबंदी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ी चोट पहुंची है और इसीलिए देशबंदी को शर्तों के साथ खोलते हुए भारत सरकार ने देश के अलग-अलग वर्गों को राहत देने के लिए एक बड़े आर्थिक पैकेज का एलान किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत विशेष आर्थिक पैकेज का एलान करते हुए स्पष्ट तौर पर कहा था कि यह पैकेज सिर्फ कोरोना वायरस से उपजी स्थितियों को ठीक करने भर के लिए नहीं है बल्कि यह पैकेज नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तय किए आत्मनिर्भर भारत को तेजी से प्राप्त करने का संकल्प भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पैकेज का एलान करते हुए कहा था कि पहले के एलान और राहत को मिलाकर कुल 20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का पैकेज सरकार दे रही है। जाहिर है इसमें लोगों को सीधे तौर पर रकम देना, जरूरतमंदों को राशन देना, अस्थाई रोजगार के मौके उपलब्ध कराना, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा देना, कृषि क्षेत्र और उद्योगों को जरूरत भर की रकम आसान शर्तों पर उपलब्ध कराना शामिल है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 20 लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर भारत अभियान विशेष आर्थिक पैकेज के पहले ही देशबंदी के साथ 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये के पैकेज से लोगों को राशन और जरूरतमंद के हाथ में रकम दी थी। इसमें किसान, मजदूर, महिला, बुजुर्ग शामिल थे। इसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कर्ज की किश्तें 3 महीने बाद देने की सहूलियत के साथ ही कर्ज पर ब्याज की दरें भी कम की थीं। हालांकि, बैंकों ने रिजर्व बैंक की दी सहूलियत को पूरी तरह से ग्राहकों को नहीं दिया। साथ ही रिजर्व बैंक ने डूबे कर्जों के मामले में भी बैंकों और कर्ज लेने वालों को राहत दे दी है। और, इस सबके साथ एकदम से ठप पड़ गई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती स्पष्ट नजर आ रही थी, लेकिन चाइनीज वायरस की मजबूरी में बंद हुए अंतर्राष्ट्रीय बाजार ने भारत के लिए एक बड़ा अवसर भी दे दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत विशेष अभियान आर्थिक पैकेज का एलान करते हुए 4 महत्वपूर्ण सुधारों की बात की थी। लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और लॉ। लिक्विडिटी यानी लोगों के हाथ में और बाजार में नकदी को लेकर रिजर्व बैंक लगातार फैसले ले रहा था और अब जमीन और श्रम से जुड़े बड़े सुधारों का इंतजार सभी को था। साथ ही कानूनी दिक्कतों को दूर करके कारोबार और कृषि से जुड़े कारोबार को बेहतर करने की भी एक आस बंधी थी। अलग-अलग चरणों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने एक-एक करके जमीन, श्रम, नकदी और कानून से संबंधित ऐतिहासिक सुधारों का एलान आत्मनिर्भर भारत अभियान विशेष आर्थिक पैकेज के जरिये किया। इसकी आलोचना भी इसी वजह से हो रही है कि यह ऐलान फौरी राहत से ज्यादा लंबी अवधि की योजनाओं को बताने जैसा दिख रहा है। काफी हद तक यह आलोचना सही भी है कि करीब 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का बड़ा हिस्सा फौरी राहत पर केंद्रित नहीं है बल्कि दीर्घकालिक अवधि में भारत के आत्मनिर्भर होने की योजना को लागू करने के लिए किए गए एलान हैं। 5 चरणों में वित्त मंत्री के एलान में कुल 9 लाख करोड़ रुपये के एलान ऐसे हैं जो रिजर्व बैंक के कदम हैं और इसके अलावा पहले चरण में 1 लाख 92 हजार करोड़ रुपये, दूसरे चरण में 5 लाख 92 हजार करोड़ रुपये, तीसरे चरण में 3 लाख 10 हजार करोड़ रुपये और चौथे चरण में 1 लाख 50 हजार करोड़ रुपये की योजनाओं, राहत का एलान किया गया। पांचवें चरण में करीब 50 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
सबसे बड़ी जरूरत अभी इसी बात की है कि किसी भी तरह बंद पड़े उद्योगों को शुरू किया जाए। सूक्ष्म, छोटे और मंझोले उद्योगों का संकट बहुत बड़ा हो गया है। करीब 2 महीने की पूर्ण बंदी के बाद उनके पास नकदी का गम्भीर संकट है और कई उद्योगों को डूबने का खतरा खड़ा हो गया है। इसके लिए जरूरी था कि तुरन्त उन्हें आसानी से और बिना किसी गारंटी वाला कर्ज मिल सके, जिससे उद्योग अपना काम शुरू कर सकें। इसलिए देश की करीब 45 लाख एमएसएमई कंपनियों को इसका लाभ देने के लिए कारोबारियों, खासकर एमएसएमई के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की इमर्जेंसी वर्किंग कैपिटल फेसिलिटी दी गई। इस 3 लाख करोड़ रुपये की गारंटी पूरी तरह से केंद्र सरकार की होगी, इससे बैंकों या एनबीएफसी के कर्ज डूबने का खतरा नहीं होगा, इससे बैंक कर्ज बांटने में आनाकानी कम करेंगे। 4 वर्ष के लिए यह कर्ज दिया जाएगा औऱ उद्योग 12 महीने के लिए मूल धन का भुगतान टाल सकते हैं। ऐसे छोटे और मंझोले उद्योग जिनका कर्ज एनपीए हो रहा है, उनके लिए विशेष तौर पर 20 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज दिया गया है। देश के करीब 2 लाख छोटे, मंझोले उद्योग हैं, जो कर्ज नहीं भर पाए और एनपीए हो गया या मुश्किल में हैं। बैंक ऐसे सूक्ष्म, छोटे और मंझोले उद्योगों को उनकी कंपनी की हैसियत का 15 प्रतिशत तक जो अधिकतम 75 लाख रुपये होगा, कर्ज देंगे।
10 हजार करोड़ रुपये का शुरुआती फंड एमएसएमई के फंड ऑफ फंड्स के लिए, नए उद्यमियों के काम आएगा। ऐसी कंपनियां जो बाजार में सूचीबद्ध होना चाहती है उनके लिए 50 हजार करोड़ का फंड ऑफ फंड्स बनाया गया है। 10 हजार करोड़ रुपये का शुरुआती फंड है और इसमें इक्विटी के जरिये फंड जुटाया जाएगा। एक बेहद जरूरी सुधार था कि एमएसएमई की परिभाषा बदली जाए जिससे एक तय आकार से ज्यादा बढ़ने के बावजूद कंपनी को लाभ मिल सके। अब एमएसएमई की परिभाषा बदल दी गई है। अब कंपनियों के निवेश और टर्नओवर, दोनों ही आधार पर एमएसएमई की श्रेणी में शामिल किया जाएगा। बदली परिभाषा में माइक्रो, सूक्ष्म उद्योग निवेश 1 करोड़, टर्नओवर 5 करोड़ रुपये तक, स्मॉल – निवेश 10 करोड़, टर्नओवर 50 करोड़, मीडियम, मध्यम 20 करोड़ निवेश, टर्नओवर 100 करोड़। 100 करोड़ तक वाली कंपनियां एमएसएमई के दायरे में आएंगी । मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस दोनों क्षेत्रों की एमएसएमई को अब बराबर लाभ मिल सकेगा। ट्रेड फेयर और एक्जिबिशन नहीं हो रहे हैं, इसलिए ई मार्केट लिंकेज को प्रोत्साहित किया जाएगा। 200 करोड़ तक के सरकारी टेंडर ग्लोबल नहीं होंगे, इसको ऐसे समझिए कि छोटे, मंझोले उद्योगों को 200 करोड़ तक के टेंडर में विदेशी कंपनियों से मुकाबला नहीं करना होगा, छोटी कंपनियों को सरकारी काम मिल सकेंगे। सरकार या सरकारी कंपनियों में लंबित भुगतान 45 दिन के भीतर दिए जाएंगे।
केंद्र सरकार ने पहले ही 3 महीने के लिए कंपनियों के उन कर्मचारियों के लिए ईपीएफ का हिस्सा दिया था, जिनकी तनख्वाह 15000 रुपये तक है, अब जून, जुलाई और अगस्त के लिए सरकार ईपीएफ की रकम भरेगी, केंद्र सरकार 2500 करोड़ रुपये देगी और 72 लाख कर्मचारियों को फायदा जून, जुलाई और अगस्त के लिए ईपीएफ की कंपनी और कर्मचारी की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दी गई, इससे कर्मचारी और कंपनी दोनों के पास ज्यादा रकम हाथ में आएगी, कंपनियों के पास 6750 करोड़ रुपये आएंगे। NBFC, HFC, MFIs के लिए 30 हजार करोड़ रुपये की स्पेशल लिक्विडिटी योजना, इससे NBFC, HFC, MFIs को 30 हजार करोड़ रुपये मिल सकेंगे, इससे हाउसिंग सेक्टर को भी लाभ मिलेगा। NBFC और MFIs को 45 हजार करोड़ रुपये की आंशिक कर्ज गारंटी, इसमें कर्ज न चुका पाने वाली कंपनियों का पहला 20 प्रतिशत सरकार देगी।
राज्यों में बिजली वितरण कंपनियों के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया था। डिस्कॉम, बिजली वितरण कंपनियों को 90 हजार करोड़ रुपये की मदद दी गई है। बिजली वितरण कंपनियों को पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन और रूरल इलेक्ट्रीफिकेशन कॉर्पोरेशन के जरिये कर्ज दिया जाएगा, इसमें गारंटी राज्य सरकार की होगी, इससे बिजली वितरण कंपनियां बिजली उत्पादन कंपनियों का कर्ज चुका सकेंगी। इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में देरी से कंपनियों, ठेकेदारों के डिफॉल्ट होने का खतरा साफ दिख रहा था। इससे कपनियों को बचाने के लिए ऐसी सभी परियोजनाओं को, जिन्हें अभी पूरा होना था और नहीं हो पाईं, उनके लिए 6 महीने का विस्तार दे दिया गया है। साथ ही सरकारी एजेंसियां आंशिक तौर पर गारंटी भी देंगी। रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए 25 मार्च 2020 तक पूरी होने वाली हाउसिंग परियोजनाएं को 6 महीने का विस्तार दिया गया है।
जिन लोगों को भुगतान टीडीएस काटकर मिलता है, उनके हाथ में ज्यादा रकम पहले ही रहेगी, हालांकि इसमें एक जरूरी बात समझने की है कि अगर टैक्स लिमिट के लिहाज से उनकी देनदारी नहीं बनती है तो टैक्स रिटर्न के बाद रिफंड में रकम पहले भी वापस आ जाती थी, अब पहले ही 100 रुपये की जगह 75 रुपये ही कटेंगे, निजी तौर पर भले लोगों को बहुत फर्क न पड़े, लेकिन कुल मिलाकर 50 हजार करोड़ रुपये लोगों के हाथ में आएंगे। सरकार ने 45 दिन के भीतर सभी तरह का बकाया भुगतान तुरन्त करने का एलान भी किया। केंद्र सरकार के एलान के साथ ही सरकारी विभाग तेजी से कार्य करने में भी जुट गये हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बताया है कि उनके मंत्रालय से संबंधित 90 प्रतिशत कार्य शुरू हो चुके हैं। करीब 170 परियोजनाओं पर काम शुरू हो गया है। सड़क परिवहन और राजमार्ग की इन परियोजनाओं में लगे मजदूरों को रोजगार मिल गया है।
अर्थव्यवस्था पटरी पर दौड़े, यह सबसे बड़ी चुनौती सरकार के सामने है, लेकिन उससे भी बड़ी चुनौती है कि हर हाल में प्रवासी मजदूर को जरूरी राशन, नकदी मिल सके। एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के शुरुआती ऐलान में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का जोर इसी बात पर था। 3 महीने के लिए राशन उपलब्ध कराया गया था अब अगले 2 महीने- मई और जून- के लिए सभी प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है। हर प्रवासी परिवार को 5 किलो अनाज और 1 किलो चना, बिना राशन कार्ड के भी यह लाभ मजदूरों को दिया गया है। 8 लाख टन अनाज और 50000 चना इसके लिए आवंटित किया गया है। प्रवासियों को एक राशन कार्ड के दूसरे राज्य में प्रभावी न रह जाने से भी बड़ा संकट खड़ा हो रहा था। राशनकार्ड धारक होने के बावजूद एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर लाभ नहीं मिल रहा था। एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना अब 23 राज्यों में लागू हो चुकी है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन लेने वाले कुल 67 करोड़ लाभार्थी अब दूसरे राज्यों में राशन ले सकेंगे। कुल राशन कार्ड धारकों का 83 प्रतिशत है। नंदन नीलेकणी की अध्यक्षता वाली समिति ने करीब एक दशक पहले यही सुझाया था कि तकनीक के प्रयोग से अनाज का वितरण हो, जिससे उपयुक्त लोगों को आसानी से समय से राशन मिल सके।
एक बहुत बड़ी योजना का एलान इस पैकेज में किया गया है, अगर हर शहर में अगर स्थाई रूप से ऐसी रिहायशी योजना लागू की जा सके तो औद्योगिक शहरों में झुग्गियों के बनने से पहले ही उस पर रोक लगाई जा सकती है। शहरों की बुनियादी सुविधा और श्रमिकों के जीवनस्तर की बेहतरी के लिए यह योजना चमत्कारिक प्रभाव वाली हो सकती है। श्रमिकों को सस्ते घर किराए पर मिल सकें, इसके लिए एक बड़ी योजना का एलान आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज में किया गया है। इस योजना में सरकारी आवासों को निर्माण इकाइयों, उद्योगों, संस्थाओं के साथ मिलकर अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में बदला जाएगा। पहले से दिए जा रहे मुद्रा कर्ज में शिशु मुद्रा कर्ज में एक वर्ष तक के लिए 2 प्रतिशत की ब्याज छूट का एलान इस पैकेज में हुआ है। 50 हजार रुपये तक के कर्ज को शिशु मुद्रा कर्ज का दर्जा है। अभी तक 1 लाख 62 हजार करोड़ रुपये का शिशु मुद्रा कर्ज दिया गया है। इससे शिशु मुद्रा कर्ज लेने वालों को 1500 करोड़ रुपये की राहत मिलेगी।
एक बहुत जरूरी घोषणा स्ट्रीट वेंडर- रेहड़ी, पटरी वालों के लिए की गई है। सड़क किनारे अपना छोटा काम करने वालों की मदद के लिए 5000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। ऐसे सभी रेहड़ी, पटरी, खोमचे वाले को 10 हजार रुपये की मदद दी जाएगी, इससे देश भर में करीब 50 लाख लोगों को मदद मिल सकेगी, जिनका काम धंधा इस दौरान पूरी तरह से ठप पड़ गया। मध्य आय वर्ग के लोगों को घर खरीदने के लिए 70 हजार करोड़ रुपये का कर्ज देने का एलान किया गया है। इससे 6 से 18 लाख रुपये सालाना आमदनी वालों को सस्ता कर्ज मिल सकेगा। इससे हाउसिंग क्षेत्र में मांग बढ़ेगी और स्टील, सीमेंट और दूसरे निर्माण सामग्री वाले क्षेत्रों की मांग बेहतर होगी। वनाच्छादित क्षेत्र बढ़ाने के लिए शहरी और वन क्षेत्र को 6 हजार करोड़ रुपये का फंड दिया गया है। 30 हजार करोड़ रुपये का एक अतिरिक्त आपात फंड किसानों को ग्रामीण सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के जरिये नाबार्ड के जरिये उपलब्ध कराया जाएगा। किसान क्रेडिट कार्ड के जरिये किसानों को 2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज उपलब्ध कराया जाएगा। इससे 2.5 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा, लेकिन किसानों के लिए असली राहत न तो कर्ज का मिलना है और न ही हाथ में कुछ नकदी का मिलना।
किसानों के लिए असली राहत है कि उसकी उपज की बेहतर कीमत उसे मिल सके और इसके लिए सबसे जरूरी था कि किसान को अपनी उपज की कीमत तय करने का अधिकार मिले, लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के इतने वर्षों के बाद भी कृषि प्रधान देश भारत में किसान को उसकी उपज की कीमत तय करने का अधिकार नहीं मिल सका। अब आत्मनिर्भर भारत अभियान सही मायने में कृषि क्षेत्र के लिए हुए ऐतिहासिक सुधारों से होने जा रहा है। भारतीय कृषि के लिए इससे बड़े सुधार कभी नहीं हुए। एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में बड़ा बदलाव किया गया है और उपज क खरीद-बिक्री को एपीएमसी मंडियों के दायरे से बाहर लाया गया है। अब किसी भी उपज पर कोई स्टॉक लिमिट नहीं लागू होगी। इससे कृषि भंडारण और उससे जुड़े क्षेत्रों में बड़े निवेश का द्वार खुल रहा है। कृषि क्षेत्र की बुनियादी सुविधा पर 1 लाख करोड़ रुपये का खर्च सरकार करने जा रही है। इससे किसान उत्पादक संगठन, कृषि सहकारी समितियां, भंडारण और दूसरी खेती से जुड़ी सुविधाएं मजबूत होंगी। पैकेज के एलान के दौरान वित्त मंत्री ने बताया कि अब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से 74 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की उपज खरीदी जा चुकी है और पीएम किसान के तहत किसानों के खाते में सीधे करीब 19 हजार करोड़ रुपये भेजे जा चुके हैं। दुग्ध क्षेत्र पर 15 हजार करोड़ रुपये का खर्च किया जाएगा, डेयरी इंफ्रास्ट्रक्टर डेवलपमेंट फंड के जरिये दुग्ध क्षेत्र में बेहतरी की संभावनाएं तलाशकर उन पर काम होगा। माइक्रो फूड एंटरप्राइज के लिए 10 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
एक अतिमहत्वाकांक्षी एलान है हर्बल उत्पादन के लिए गंगा के पाट का प्रयोग। इसके लिए 4 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड गंगा के किनारे 800 हेक्टेयर जमीन पर हर्बल उत्पाद की संभावनाएं तलाशेगा। वोकल फॉर लोकल और देसी उत्पादों की ब्रांडिंग पर विशेष जोर होगा। कश्मीर का केसर, आंध्र प्रदेश की मिर्च, कर्नाटक की रागी, हल्दी और बिहार का मखाना जैसे विशुद्ध भारतीय उत्पादों का निर्यात बढ़ाने पर जोर देने की बात भी आर्थिक पैकेज के जरिये की गई है। टॉप टू टोटल एक बड़ी महत्वपूर्ण बात कही गई है। इसमें ज्यादा उत्पादन वाले क्षेत्र से कम उत्पादन वाले क्षेत्र में उपज ले जाने पर 50 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी। साथ ही भंडारण, जिसमें गोदाम में रखना भी शामिल है, उस पर भी 50 प्रतिशत सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। कृषि क्षेत्र के महत्वपूर्ण एलान में से एक जिस पर खास ध्यान देने की जरूरत है। सरकार ने प्रोसेसर, एग्रीगेटर, बड़े खुदरा कारोबारियों और निर्यातकों के लिए कानूनी खाका तैयार करने की बात कही है। इसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तौर पर समझा जा सकता है। इस पर नजर रखना होगा कि यह कानून कैसे बनता है और इसमें राज्य किस तरह से सहयोग करते हैं।
इस सबके अलावा सरकार ने विदेशी निवेशकों के लिए भारत को और आकर्षक बनाने का एलान भी इस पैकेज में किया है। इसे आत्मनिर्भरता के साथ विदेशी कंपनियों को मेक इन इंडिया से जोड़ने की महत्वाकांक्षी कोशिश कह सकते हैं। कोयला क्षेत्र में कमर्शियल माइनिंग की स्वीकृति दे दी गई है। इससे मिनरल क्षेत्र में ग्रोथ आएगी और रोजगार मिल सकेगा। 500 माइनिंग ब्लॉक की नीलामी की जाएगी। माइनिंग लीज को ट्रांसफर किया जा सकेगा, इससे माइनिंग की गई खदानों को भी फिर से बेचा जा सकेगा। कोल के गैसीफिकेशन के लिए इंसेंटिव देना भी इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए किया गया बड़ा सुधार है। अभी विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार होने के बावजूद कोयला आयात करना पड़ता है, लेकिन अब कोयला खनन पर अब सरकार का एकाधिकार नहीं रहेगा। कोयला खनन पर 50 हजार करोड़ रुपये सरकार खर्च करेगी। रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए एफडीआई की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% की गयी है। लेकिन हथियारों, रक्षा उपकरणों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की पक्की योजना तैयार की गई है। इसके तहत प्रतिवर्ष हथियारों, मशीनों की सूची जारी होगी, जिसे सिर्फ भारतीय उत्पादकों से ही खरीदा जाएगा, लक्ष्य पूरी तरह से भारत में बने रक्षा उपकरण खरीदने का है। एमआरओ मेनटेनेंस, रिपेयर एंड ओवरहॉल की बात बजट में भी कही गई थी। अब सरकार इस अवसर का लाभ नये सिरे से लेने की बात कर रही है। एयरस्पेस, हवाई क्षेत्र बढ़ाया जाएगा, अभी तक 60% हवाई क्षेत्र ही खुला हुआ है। हवाई क्षेत्र बढ़ाने से समय कम लगेगा और एटीएफ भी बचेगा। 6 विश्वस्तरीय हवाई अड्डे पीपीपी के तहत बन रहे हैं और 6 और एयरपोर्ट की नीलामी प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। 12 हवाई अड्डों की नीलामी से 13 हजार करोड़ रुपये का निवेश आएगा। एएआई को ₹2,300 करोड़ का डाउन पेमेंट किया जाएगा। हेल्थ, रोजगार, शिक्षा से जुड़े क्षेत्रों के लिए भी सरकार ने बड़े एलान किए हैं। ऑनलाइन एजुकेशन के लिए कई कदम उठाए हैं, जहां इंटरनेट नहीं है, वहां स्वयं प्रभा डीटीएच चैनल से शिक्षा दी जाएगी। कुल 12 चैनल शिक्षा के लिए शुरू किए जाएंगे। इससे ग्रामीण इलाकों में भी बच्चों को फायदा होगा। शिक्षा के लिए ई-विद्या पर फोकस किया जा रहा है, हर कक्षा की पढ़ाई के लिए 1 चैनल होगा।
कुल मिलाकर आत्मनिर्भर भारत अभियान विशेष आर्थिक पैकेज सिर्फ कुछ लोगों के हाथ में थोड़ी सी रकम देने या फिर कुछ जरूरतमंद के घर राशन पहुंचाने भर का पैकेज नहीं है बल्कि इसके जरिये भारत सरकार पहले सुस्त पड़ी और चाइनीज वायरस की वजह से एकदम से ठप सी हो गई अर्थव्यवस्था को नये सिरे से दौड़ाने की योजना बना रही है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विशेष ध्यान देकर शहर और गांव के बीच के असंतुलन को दूर करके एक बेहतर भारत के निर्माण का प्रयास भी है।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फे लो है. लेख में व्यक्त उनके विचार निजी हैं.)
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