Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

शुद्ध हवा में सांस का सवाल

जलवायु परिवर्तन के संकट पर तो आज विश्व मंथन कर रहा है, लेकिन सर्वाधिक बीमारियाँ पैदा करने वाले वायु प्रदूषण की ओर लंबे समय तक गंभीरतापूर्वक ध्यान नहीं दिया गया था। यही कारण है कि यह संकट मानव जीवन के लिए बेहद घातक सिद्ध हो रहा है।

आज भारत  वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों में कमी लाने, स्वच्छ ऊर्जा के विकास पर बल देने तथा वायु गुणवत्ता में सुधार लाकर विशेष रूप से शहरों में प्रदूषण की स्थिति को नियंत्रित करने जैसे लक्ष्यों को लेकर बढ़ रहा है।

वास्तव में, भारत ने समय रहते वायु प्रदूषण की  समस्या को पहचान लिया और कई मोर्चों पर इसके समाधान की दिशा में काम कर रहा है। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी के लिए स्वच्छ वायु की प्रतिबद्धता जताई थी। आज भारत वायु प्रदूषण में कमी लाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम कर रहा है।

मोदी सरकार ने वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर देश की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए एक अध्ययन केन्द्रित  बहु-आयामी रणनीति अपनाई है जिसके लिए 6,000 करोड़ से अधिक की धनराशि आवंटित की गई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा 2019 से मिलकर देश में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है, जिसका लक्ष्य देश के वायु गुणवत्ता मानकों पर खरे न उतरने वाले 131 शहरों में 2024 तक धूल कणों में कमी लाकर वातावरण को शुद्ध बनाना है।

इस दिशा में आज भारत जहां एक तरफ कचरे को जलाने पर प्रतिबंध, थर्मल पावर प्लांटों के लिए कड़े उत्सर्जन मानदंड, ईंधन और वाहनों से होने वाले प्रदूषण के लिए कड़े मानदंडों सहित इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने जैसे उपायों को लागू कर रहा है। वहीं देश में किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए फसल अवशेषों के बेहतर प्रबंधन तथा धान की पराली के सार्थक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता भी शुरू की गई है।

सरकार के प्रयासों से देश ने पराली जलाने के मामलों में उल्लेखनीय कमी दर्ज की है। 15 सितंबर से 30 नवंबर की अवधि के दौरान हरियाणा, दिल्ली, यूपी और राजस्थान के एनसीआर जिलों में पराली जलाने की घटनाएँ 2021 के 78,550 से 31.51 प्रतिशत घटकर 2022 में 53,792 पर पहुँच गईं। सरकार द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के वितरण और लोगों में जागरूकता पैदा करने के कारण ही यह उपलब्धि हासिल हो पाई है।

हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएँ 2021 के 6,987 से घटकर 2022 में 47.60 प्रतिशत की कमी के साथ 3,661 हो गई हैं। यूपी एवं राजस्थान के एनसीआर जिलों और दिल्ली के एनसीटी जिलों में पराली जलाने की घटनाएँ 2021 के 259 से 19.30 प्रतिशत कम होकर 2022 में 209 हो गई हैं।

वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में गौरतलब है कि देश के करोड़ों घरों में धुआं युक्त रसोई चूल्हे से होने वाले प्रदूषण पर लंबे समय तक किसी का ध्यान नहीं गया था, जबकि इसका सर्वाधिक शिकार महिलाएं और बच्चे होते हैं। मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना को वायु प्रदूषण से निजात की दिशा में एक ठोस एवं कारगर पहल के लिहाज से भी देखना चाहिए.

हालांकि हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन संतोषजनक है कि सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप देश के 70% शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया है, जिसे किसी भी नागरिक द्वारा ‘प्राण’ पोर्टल के माध्यम से ट्रैक किया जा सकता है।

लेकिन इन सब उपलब्धियों के बीच हमें एक और महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देने की जरूरत है। दरअसल वायु गुणवत्ता प्रबंधन को अक्सर एक नीतिगत मुद्दे के रूप में देखते हुए यह माना जाता है कि इससे निपटने की जिम्मेदारी पूरी तरह से सरकार की है। सरकार की जिम्मेदारी निश्चित रूप से है, लेकिन सरकार के प्रयासों से प्राप्त सकारात्मक परिणामों को आगे बढ़ाने के लिए एक सामूहिक और सहभागी दृष्टिकोण की भी आवश्यकता है। इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया मिशन लाइफ एक उल्लेखनीय पहल है, जो पर्यावरण संरक्षण में व्यक्तिगत और सामूहिक हर तरह के योगदान को महत्वपूर्ण मानता है।

व्यक्तियों और समुदायों के स्तर पर हम कचरा जलाना बंद करके, स्वच्छ ईंधन का उपयोग करके और पर्यावरण सम्बन्धी सभी आवश्यक कानूनों का पालन करके ऐसी जीवन शैली को अपना सकते हैं, जिसका समर्थन ‘मिशन लाइफ’ करता है। उद्योग जगत से जुड़े लोग ईंट भट्टों में ज़िग-ज़ैग मेथोस, पुराने डीजल जेनसेट में उत्सर्जन नियंत्रण उपकरणों के रेट्रो-फिटमेंट, बिजली संयंत्रों में फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन जैसी नवीनतम तकनीकों को अपनाकर वायु प्रदूषण को कम करने में अपना योगदान दे सकते हैं।

पिछले दिनों ग्लासगो में हुए COP26 में प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की थी कि भारत का लक्ष्य 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करना है, जिसके लिए देश पहले ही प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में कम कार्बन संक्रमण मार्गों का संकेत देते हुए कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति प्रस्तुत कर चुका है। इस रणनीति के तहत भविष्य को ध्यान में रखते हुए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा, ई-गतिशीलता, इथेनॉल-मिश्रित ईंधन और हरित हाइड्रोजन जैसे उपाय निर्धारित किए गए हैं।

आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए देश आज अमृत काल में प्रवेश कर चुका है। वायु प्रदूषण को ख़त्म कर स्वच्छ हवा प्राप्त करने के लिए जनभागीदारी का ही रास्ता है।

भारत ने ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के आदर्श वाक्य के साथ G20 की अध्यक्षता ग्रहण करते हुए पर्यावरण संरक्षण को लेकर सजगता दिखाते हुए विश्व का नेतृत्व किया है। अब समय आ गया है कि स्वच्छ पर्यावरण, विशेष रूप से स्वच्छ हवा के लिए हम सामूहिक प्रयासों के माध्यम से हर संभव योगदान दें ताकि हमारे बच्चे, बुजुर्ग और हम सभी लोग स्वच्छ हवा में सांस ले सकें।

लेखक एसपीएमआरएफ में सीनियर फेलो एवं स्तंभकार हैं.

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