स्वाईन फ्लू, डाइबिटीज, हृदयघात, कैंसर, अवसाद, टीबी जैसी नई-पुरानी बीमारियों के बढ़ते प्रकोप के बावजूद सरकारें सेहत के सवाल पर चुप्पी साधे रहती थीं। चुनाव के दौरान राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए बिजली-पानी का पांसा फेंकते थे, लेकिन सस्ता व सर्वसुलभ इलाज उनकी प्राथमिकता सूची में कभी नहीं रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि देश का स्वास्थ्य ढांचा बीमार होता गया।
दूसरी ओर छोटे-छोटे कस्बों से लेकर महानगरों तक निजी अस्पतालों का जाल बिछ गया। लेकिन समस्या यह है कि निजी क्षेत्र के लिए चिकित्सा सेवा नहीं, आमदनी का जरिया है। यही कारण है कि महंगा इलाज देश के आम आदमी को गरीबी के बाड़े में धकेल रहा है। स्वयं भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर साल साढ़े छह करोड़ लोग महंगे इलाज के चलते गरीब बन जाते हैं।
2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने देश का स्वास्थ्य ढांचा सुधारने का बीड़ा उठाया। गौरतलब है कि देश में डाॅक्टरों की भारी कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार देश में इस समय1953 लोगों पर एक डाॅक्टर है जबकि 1000 लोगों पर एक डाॅक्टर होना चाहिए। मोदी सरकार ने 2027 तक देश में 1000 लोगों पर एक डाॅक्टर उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सरकार मेडिकल सीटों में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी कर रही है।
2014 में देश में 52000 अंडर ग्रेजुएट और 30000 पोस्ट ग्रेजुएट सीटें थीं जो कि अब बढ़कर क्रमश: 85000 और 46000 हो चुकी हैं। इसके अलावा देश भर में नए एम्स और आयुर्वेद संस्थान की स्थापना की जा रही है। सरकार हर तीन संसदीय क्षेत्रों पर एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना कर रही है।
इसके अलावा सरकार जिला अस्पतालों या रेफरल अस्पतालों का उन्नयन कर नए मेडिकल कॉलेज बनाने की योजना पर काम कर रही है। इसमें पिछड़े जिलों को प्राथमिकता दी गई है। योजना के पहले चरण में केंद्र सरकार ने 58 जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉजेल में बदलने को मंजूरी दी। दूसरे चरण में 24 अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में बदला गया। इन 82 अस्पतालों में से 39 अस्पतालों में काम शुरू हो चुका है, शेष में निर्माण कार्य जारी है।
योजना के तीसरे चरण में स्वास्थ्य मंत्रालय ने 75 जिला अस्पतालों को मेडिकल कलेजों में बदलने का प्रस्ताव रखा है। इस योजना के क्रियान्वयन से देश में दस हजार से ज्यादा एमबीबीएस की तथा आठ हजार पोस्ट ग्रेजुएट सीटें बढ़ जाएंगी। डॉक्टरों के साथ-साथ मोदी सरकार पैरा मेडिकल स्टाॅफ जैसे नर्स, कंपाउंडर आदि की उपलब्धता बढ़ाने पर भी ध्यान दे रही है।
स्वास्थ्य ढांचे में सुधार के साथ-साथ मोदी सरकार ने देश के गरीबों को मुफ्त में इलाज कराने के लिए एक अनूठी योजना प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) शुरू की है। 1 अप्रैल, 2018 से पूरे देश में लागू हुई इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को स्वास्थ्य बीमा उपलबध कराया गया है। इसके तहत 10 करोड़ परिवारों (50 करोड़ लोगों) का पांच लाख तक का इलाज मुफ्त में किया जा रहा है। इसके लाभार्थियों को गोल्डन कार्ड जारी किया गया है। पूरी प्रक्रिया डिजिटल बनाई गई है ताकि भ्रष्टाचार की गुंजाइश न रह जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी नीतियों का ही नतीजा है कि गरीब आदमी को अब बीमार होने पर इलाज के लिए न तो घर में बचा कर रखी गई जमापूंजी खर्च करनी पड़ती और न ही जमीन-जायदाद गिरवी रखकर कर्ज लेना पड़ता है। अब सरकारी खर्च पर आंख, कान, पथरी, हार्ट, कैंसर, सहित 1350 बीमारियों का इलाज हो रहा है। इलाज के दौरान दवा,मेडिकल जांच पूरी तरह से नि:शुल्क है। इस प्रकार प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना देश के करोड़ों गरीबों-वंचितों के लिए वरदान साबित हो रही है।
समग्रत: कह सकते हैं कि जातिवादी गठबंधन और मिथ्या आरोपों के बीच इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व कामयाबी मिली तो इसका श्रेय मोदी सरकार के जनोपयोगी कार्यक्रमों को जाता है। चूंकि इन कार्यक्रमों का लाभ बिना किसी भेदभाव के समूचे देश को मिला इसलिए पूरे देश ने एकमत होकर मोदी सरकार की वापसी का मार्ग प्रशस्त किया।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)