Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

विमुद्रीकरण और जीएसटी से अर्थव्यवस्था को फायदे

सतीश सिंह

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन से पैदा हुई समस्याओं को लेकर कुछ लोग देश भर में हो-हल्ला मचा रहे हैं, लेकिन इसे अतार्किक ही माना जाना चाहिये। किसी भी नये कानून, नियमावली या व्यवस्था में हमेशा संशोधन की गुंजाइश होती है। अगर ऐसे कानून या व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता है तो जरूर उसे गलत कहा जाना चाहिए, लेकिन सरकार यदि नई व्यवस्था में मौजूद कमियों को दूर करने का प्रयास कर रही है तो उसे लेकर वितंडा खड़ा नहीं किया जाना चाहिये।

विश्व बैंक ने भी जीएसटी का समर्थन किया है। विश्व बैंक का कहना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि में हाल में आई गिरावट अस्थायी है। विश्व बैंक को भरोसा है कि आने वाले दिनों में विकास दर में आई गिरावट सुधर जायेगी। विश्व बैंक यह भी दावा कर रहा है कि जीएसटी के कारण जल्द ही भारतीय अर्थव्यवस्था में गुलाबीपन आ जायेगा। विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में जीएसटी का सकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। किम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उनके प्रयासों से भारत के कारोबारी माहौल में सकारात्मक सुधार हुआ है।

इधर, 6 अक्टूबर को जीएसटी परिषद की बैठक में 27 वस्तुओं पर जीएसटी की दरों में कटौती की गई है। सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि जीएसटी के अनुपालन संबंधी नियमों एवं शर्तों में राहत दिये जाने की जरूरत है, ताकि छोटे, मझौले एवं निर्यात करने वाले कारोबारियों को होने वाली परेशानियों में कुछ कमी आ सके। जीएसटी परिषद ने 1.5 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाली इकाइयों को प्रत्येक महीने की जगह तीन महीने में एक बार रिटर्न जमा करने की छूट दी है।

छोटे कारोबारियों के लिए कंपोजिशन योजना की सीमा भी 75 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये की गई है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक छोटे एवं मझोले कारोबारियों को राहत देना जरूरी था, क्योंकि इससे उन्हें नुकसान हो रहा था। अब तक जीएसटी के तहत पंजीकृत हर एक  कारोबारी को मासिक आधार पर अपना रिटर्न जमा करना होता था, लेकिन ऑनलाइन रिटर्न जमा करने के लिए बनाई गई व्यवस्था की वजह से छोटे एवं मझौले कारोबारी हर महीने रिटर्न जमा नहीं कर पा रहे थे, जिसका एक बड़ा कारण ऐसे कारोबारियों का कम पढ़ा-लिखा होना या नये तकनीकों या कंप्यूटर से परिचित नहीं होना था। देखा जाये तो इसी वजह से जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों में जीएसटी रिटर्न कम जमा हुए और जुलाई महीने में सरकार का कुल जीएसटी संग्रह करीब 95,000 करोड़ रुपये और अगस्त में 90,669 करोड़ रुपये रहा, जो पूर्व के कर संग्रह से कम है।  

जीएसटी के कारण कार्यशील पूँजी फँस जाने से निर्यातकों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। निर्यात करने वाले कारोबारियों का कहना है कि 60,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की उनकी पूँजी अभी भी फंसी हुई है, जिसे उन्होंने एकीकृत जीएसटी के रूप में पहले जमा कर दिया था। उन्हें उन सामान पर कर के भुगतान की वापसी लेनी है, जिनका निर्यात किया जाना शेष है, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।

निर्यातकों को फंसी राशि की वापसी में आ रही समस्या से राहत मिल सके, इसके लिये सरकार जल्द ही इलेक्ट्रॉनिक रिफंड व्यवस्था को लागू करने जा रही है। इसके लिये ई-वॉलेट व्यवस्था को भी जल्द लागू किया जायेगा, ताकि कारोबारियों को रिफंड ई-वॉलेट के जरिये देना सुनिश्चित किया जा सके।  निर्यातकों को जुलाई-अगस्त के लिए रिफंड प्रक्रिया 10 अक्टूबर से शुरू हो जायेगी।   

कहा जा सकता है कि सरकार कारोबारियों की समस्याओं से अच्छी तरह से वाकिफ है। जीएसटी से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिये ही सरकार ने जीएसटी के प्रावधानों में राहत दी है। भविष्य में जीएसटी के संदर्भ में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिये भी सरकार कटिबद्ध है। किसी भी नई व्यवस्था में विसंगतियों के होने से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे दूर किया जाना चाहिये। मोदी सरकार भी यही काम कर रही है। इसलिए इसे मुद्दा बनाने के किसी भी कुतर्क को सही नहीं ठहराया जा सकता है।

नोटबंदी से भी हुआ फायदा

आठ सितम्बर 2017 को नोटबंदी के 10 महीने हो गये। आज बड़े मूल्य वर्ग के चलन से बाहर की गई मुद्राओं के बदले छापी गई नई मुद्रायेँ 84% चलन में है, जबकि नोटबंदी के पहले बड़े मूल्यवर्ग यथा 1000 और 500 की मुद्रायेँ 86% चलन में थी। फिलवक्त, चलन में मुद्राओं का केवल 5.4% ही बैंकों के पास उपलब्ध है, जबकि नवंबर, 2016 में बैंकों के पास 23.2% मुद्रायेँ उपलब्ध थी। नोटबंदी के तुरंत बाद बैंकों में नकदी की उपलब्धता उसकी निकासी पर बंदिश होने के कारण अधिक थी, लेकिन धीरे-धीरे इसके स्तर में कमी आई। 25 नवंबर, 2016 को बैंकों के पास नकदी की उपलब्धता 23.19% थी, जो 23 जून, 2017 को घटकर 5.4% रह गई, जो यह बताता है कि आम आदमी तक छोटे मूल्यवर्ग की नकदी पहुँच रही है। मार्च, 2016 में प्रकाशित रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 500 मूल्यवर्ग के मुद्राओं की संख्या 16 अरब थी और 1000 मूल्यवर्ग के मुद्राओं की संख्या 6 अरब। यह कुल मुद्राओं की संख्या का क्रमशः 48% और 38% था, जबकि 100 मूल्यवर्ग के मुद्राओं की संख्या 16 अरब थी, जो कुल मुद्राओं के मूल्य का 10% था। बचा हुआ 4%, 50 मूल्यवर्ग की मुद्राओं का था,  जिनकी संख्या 53 अरब थी।   रिजर्व बैंक के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2017 के लिये 24.55 अरब विविध मूल्यवर्ग की मुद्राओं की छपाई हेतु माँग पत्र जारी किया था, जिसमें 1000 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 2.2 अरब, 500 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 5.175 अरब, 100 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 5.5 अरब, 50 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 2.125 अरब, 20 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 6 अरब और 10 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 3 अरब थी।

ऐसा लगता है कि नोट प्रिंटिंग प्रेस ने इस माँग की आपूर्ति कर दी थी। साथ ही छोटे मूल्यवर्ग की मुद्राओं के बढ़े हुए माँग की भी आपूर्ति कर दी थी। इसलिये, मौजूदा समय में वृद्धिशील 37 अरब छोटे मूल्यवर्ग की मुद्रा जो कुल मुद्रा का 28% है चलन में है, जोकि पूर्व में 14% था। बची हुई मुद्राओं को 500 और 2000 के मूल्यवर्ग में बाँटा जा सकता है जो 72% है। देखा जाये तो नोटबंदी के बाद छोटे मूल्यवर्ग की मुद्राओं की मदद से आमजन की जरूरतों को पूरा किया जा रहा है, जिसका सीधा फायदा नकदी विहीन लेनदेन की संकल्पना को मिल रहा है।

एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के कारण बैंकिंग प्रणाली में 3 लाख करोड़ रूपये की सस्ती पूँजी पड़ी है और पॉइंट ऑफ सेल से किये जा रहे लेनदेन में 40% की बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं दूसरे डिजिटल माध्यमों के प्रयोग में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। नोटबंदी के कारण जाली मुद्रा को भी रोकने में मदद मिली है। इससे नक्सलवाद और आतंकवाद आर्थिक मोर्चे पर  कमजोर हुए हैं। नकदी से लेनदेन में कमी आने के कारण कालेधन एवं भ्रष्टाचार में कमी आई है। मकान व फ्लैट और सोने के खरीद-फरोख्त में कालेधन के इस्तेमाल की वजह से इनकी कीमत नोटबंदी के पहले उछाल पर थी, जिसमें अब नरमी का रुख देखा जा रहा है।

नकदी के इस्तेमाल में कमी आने से विविध वस्तुओं की मांग में भी कमी आई है, जिससे महँगाई भी रिजर्व बैंक के लक्ष्य से कम है। बहरहाल, बैंकिंग प्रणाली में मौजूद सस्ती पूँजी को स्थायी माना जा सकता है, जिससे कर्ज दर में कटौती की जा सकती है। लोन के सस्ते होने से कोर्पोरेट्स कर्ज लेंगे, जिससे उद्योगिक कार्यकलापों में इजाफा, रोजगार सृजन, विविध उत्पादों की मांग में तेजी, विकास को गति मिलना आदि संभव हो सकेगा। छोटे मूल्यवर्ग की मुद्राओं की किल्लत की वजह से फिलहाल कुछ समस्याएँ हैं, लेकिन 200 मूल्यवर्ग की मुद्रा के बाजार में आने के बाद इनका भी समाधान हो जायेगा।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)