Home » मन की बात 2.0’ की 12वीं कड़ी में प्रधानमंत्री का सम्बोधन
- मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार। कोरोना के प्रभाव से हमारी ‘मन की बात’ भी अछूती नहीं रही है। जब मैंने पिछली बार आपसे ‘मन की बात’ की थी, तब, passenger ट्रेनें बंद थीं, बसें बंद थीं, हवाई सेवा बंद थी। इस बार, बहुत कुछ खुल चुका है, श्रमिक special ट्रेनें चल रही हैं, अन्य special ट्रेनें भी शुरू हो गई हैं।
- तमाम सावधानियों के साथ, हवाई जहाज उड़ने लगे हैं, धीरे-धीरे उद्योग भी चलना शुरू हुआ है, यानी, अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अब चल पड़ा है, खुल गया है। ऐसे में, हमें और ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है। दो गज की दूरी का नियम हो, मुँह पर mask लगाने की बात हो, हो सके वहाँ तक, घर में रहना हो, ये सारी बातों का पालन, उसमें जरा भी ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए।
- देश में, सबके सामूहिक प्रयासों से कोरोना के खिलाफ लड़ाई बहुत मजबूती से लड़ी जा रही है। जब हम दुनिया की तरफ देखते हैं, तो, हमें अनुभव होता है कि वास्तव में भारतवासियों की उपलब्धि कितनी बड़ी है। हमारी जनसँख्या ज़्यादातर देशों से कई गुना ज्यादा है।
- हमारे देश में चुनौतियाँ भी भिन्न प्रकार की हैं, लेकिन, फिर भी हमारे देश में कोरोना उतनी तेजी से नहीं फ़ैल पाया, जितना दुनिया के अन्य देशों में फैला। कोरोना से होने वाली मृत्यु दर भी हमारे देश में काफी कम है।
- जो नुकसान हुआ है, उसका दुःख हम सबको है। लेकिन जो कुछ भी हम बचा पाएं हैं, वो निश्चित तौर पर, देश की सामूहिक संकल्पशक्ति का ही परिणाम है। इतने बड़े देश में, हर-एक देशवासी ने, खुद, इस लड़ाई को लड़ने की ठानी है, ये पूरी मुहिम people driven है।
- आपने देखा होगा, कि, दूसरों की सेवा में लगे व्यक्ति के जीवन में, कोई depression, या तनाव, कभी नहीं दिखता। उसके जीवन में, जीवन को लेकर उसके नजरिए में, भरपूर आत्मविश्वास, सकारात्मकता और जीवंतता प्रतिपल नजर आती है।
- साथियो, हमारे डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ, सफाईकर्मी, पुलिसकर्मी, मीडिया के साथी, ये सब, जो सेवा कर रहे हैं, उसकी चर्चा मैंने कई बार की है। ‘मन की बात’ में भी मैंने उसका जिक्र किया है। सेवा में अपना सब कुछ समर्पित कर देने वाले लोगों की संख्या अनगिनत है।
- ऐसे ही एक सज्जन हैं तमिलनाडु के सी. मोहन। सी. मोहन जी मदुरै में एक सैलून चलाते हैं। अपनी मेहनत की कमाई से इन्होंने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए पांच लाख रूपये बचाए थे, लेकिन, इन्होंने ये पूरी राशि इस समय जरुरतमंदों, ग़रीबों की सेवा के लिए, खर्च कर दी।
- इसी तरह, अगरतला में, ठेला चलाकर जीवनयापन करने वाले गौतमदास जी अपनी रोजमर्रा की कमाई की बचत में से, हर रोज़, दाल-चावल खरीदकर जरुरतमंदों को खाना खिला रहे हैं।
- पंजाब के पठानकोट से भी एक ऐसा ही उदाहरण मुझे पता चला। यहाँ दिव्यांग, भाई राजू ने, दूसरों की मदद से जोड़ी गई, छोटी सी पूंजी से, तीन हजार से अधिक मास्क बनवाकर लोगों में बांटे। भाई राजू ने, इस मुश्किल समय में, करीब 100 परिवारों के लिए खाने का राशन भी जुटाया है।
- साथियो, ऐसे कितने ही उदाहरण, हर दिन, दिखाई और सुनाई पड़ रहे हैं। कितने ही लोग, खुद भी मुझे नमो एप और अन्य माध्यमों के जरिए अपने प्रयासों के बारे में बता रहे हैं।
- कई बार समय की कमी के चलते, मैं, बहुत से लोगों का, बहुत से संगठनों का, बहुत सी संस्थाओं का, नाम नहीं ले पाता हूँ। सेवा-भाव से, लोगों की मदद कर रहे, ऐसे सभी लोगों की, मैं प्रशंसा करता हूँ, उनका आदर करता हूँ, उनका तहेदिल से अभिनन्दन करता हूँ।
- साथियो, कोरोना के खिलाफ़ लड़ाई का यह रास्ता लंबा है। एक ऐसी आपदा जिसका पूरी दुनिया के पास कोई इलाज ही नहीं है, जिसका, कोई पहले का अनुभव ही नहीं है, तो ऐसे में, नयी-नयी चुनौतियाँ और उसके कारण परेशानियाँ हम अनुभव भी कर रहें हैं। ये दुनिया के हर कोरोना प्रभावित देश में हो रहा है और इसलिए भारत भी इससे अछूता नहीं है।
- हमारे देश में भी कोई वर्ग ऐसा नहीं है जो कठिनाई में न हो, परेशानी में न हो, और इस संकट की सबसे बड़ी चोट, अगर किसी पर पड़ी है, तो, हमारे गरीब, मजदूर, श्रमिक वर्ग पर पड़ी है। उनकी तकलीफ, उनका दर्द, उनकी पीड़ा, शब्दों में नहीं कही जा सकती।
- हम में से कौन ऐसा होगा जो उनकी और उनके परिवार की तकलीफों को अनुभव न कर रहा हो। हम सब मिलकर इस तकलीफ को, इस पीड़ा को, बांटने का प्रयास कर रहे हैं, पूरा देश प्रयास कर रहा है। हमारे रेलवे के साथी दिन-रात लगे हुए हैं। केंद्र हो, राज्य हो, स्थानीय स्वराज की संस्थाएं हो – हर कोई, दिन-रात मेहनत कर रहें हैं। जिस प्रकार रेलवे के कर्मचारी आज जुटे हुए हैं, वे भी एक प्रकार से अग्रिम पंक्ति में खड़े कोरोना वॉरियर्स ही हैं।
- तमाम चुनौतियों के बीच मुझे खुशी है, कि, आत्मनिर्भर भारत पर, आज, देश में, व्यापक मंथन शुरू हुआ है। लोगों ने, अब, इसे अपना अभियान बनाना शुरू किया है। इस मिशन का नेतृत्व देशवासी अपने हाथ में ले रहे हैं। बहुत से लोगों ने तो ये भी बताया है, कि, उन्होंने जो-जो सामान, उनके इलाके में बनाए जाते हैं, उनकी, एक पूरी लिस्ट बना ली है। ये लोग, अब, इन लोकल प्रोडक्ट को ही खरीद रहे हैं, और वोकल फॉर लोकल को प्रमोट भी कर रहे हैं।
- साथियो, ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ जल्द ही आने वाला है। ‘योग’ जैसे-जैसे लोगों के जीवन से जुड़ रहा है, लोगों में, अपने स्वास्थ्य को लेकर, जागरूकता भी लगातार बढ़ रही है। अभी कोरोना संकट के दौरान भी ये देखा जा रहा है कि हॉलीवुड से हरिद्वार तक, घर में रहते हुए, लोग ‘योग’ पर बहुत गंभीरता से ध्यान दे रहे हैं।
- साथियो, हमारे देश में, करोडों-करोड़ ग़रीब, दशकों से, एक बहुत बड़ी चिंता में रहते आए हैं – अगर, बीमार पड़ गए तो क्या होगा? अपना इलाज कराएं, या फिर, परिवार के लिए रोटी की चिंता करें।
- इस तकलीफ को समझते हुए, इस चिंता को दूर करने के लिए ही, करीब डेढ़ साल पहले ‘आयुष्मान भारत’ योजना शुरू की गई थी। कुछ ही दिन पहले, ‘आयुष्मान भारत’ के लाभार्थियों की संख्या एक करोड़ के पार हो गई है। एक करोड़ से ज्यादा मरीज, मतलब, देश के एक करोड़ से अधिक परिवारों की सेवा हुई है।
- एक करोड़ से ज्यादा मरीज का मतलब क्या होता है, मालूम है? एक करोड़ से ज्यादा मरीज़, मतलब, नॉर्वे जैसा देश, सिंगापुर जैसा देश, उसकी जो कुल जनसँख्या है, उससे, दो गुना लोगों को, मुफ्त में, इलाज दिया गया है।
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