उम्मीद के मुताबिक रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 25 आधार अंक की कटौती करने की घोषणा की है। गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया है। रिजर्व के रुख से ऐसा लगता है कि नीतिगत दरों में फिलहाल वृद्धि नहीं की जायेगी और आगामी मौद्रिक समीक्षाओं में भी इसमें और भी कटौती की जा सकती है।
दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति बैठक में नीतिगत दर कम करने के बाद रेपो दर अब 5.75 प्रतिशत रह गई है। फरवरी के बाद यह लगातार तीसरा मौका है जब रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 25 आधार अंक की कटौती की है। पिछली दो कटौतियों के बाद नये कर्ज के लिये उधारी दर में औसतन 21 आधार अंक की कमी आई है। नीतिगत दर में कटौती का बॉन्ड बाजार ने भी स्वागत किया है और 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल 7 आधार अंक घटकर 6.93 प्रतिशत रह गया है।
केंद्रीय बैंक का मानना है कि पिछले दो बार रेपो दर में कटौतियों के बाद भी मुद्रास्फीति मौद्रिक नीति समिति द्वारा तय 4 प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे बनी रहेगी। रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 7 प्रतिशत रखा है। पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 6.4 से 6.7 प्रतिशत रह सकती है, वहीं दूसरी छमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.2 से 7.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार आम तौर पर ग्राहकों को नीतिगत दर में कटौती का पूरा लाभ देने में चार से छह महीने का समय लगता है। दास के मुताबिक बाजार में तरलता सामान्य बनी हुई है, जिससे इस कटौती का लाभ ग्राहकों तक पहुंचाने में बैंकरों को मदद मिलेगी। बैंकों ने रेपो दर में कटौती का कुछ लाभ ग्राहकों को दिया है और उम्मीद है कि आगे आने वाले दिनों में बैंक इसका पूरा लाभ ग्राहकों को देंगे। फिलवक्त, वाहन और आवास ऋण के दरों में कुछ कटौती की गई है।
मामले में बैंकरों का कहना है कि कटौती का लाभ सीधे तौर पर ग्राहकों को देना आसान नहीं होगा, क्योंकि छोटी बचत दरें अभी भी उच्च स्तर पर बनी हुई हैं। बैंक जब तक जमा दरें कम नहीं करेंगे, वे उधारी दर कम करने में समर्थ नहीं हो सकते हैं। बावजूद इसके, बैंक उधारी दरों में तत्काल में कुछ कटौती कर सकते हैं।
भले ही रिजर्व बैंक हर दो महीने में मौद्रिक समीक्षा करता है, लेकिन इसकी प्रणाली को समझना आज भी देश की एक बड़ी आबादी के बूते से बाहर है। अस्तु, जरूरी है कि सरल शब्दों में मौद्रिक नीति को आम आदमी को समझाया जाये। इस प्रणाली के तहत रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए नीतिगत दर को घटाने या बढ़ाने का फैसला करता है।
यह फैसला केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) करती है, जिसका अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। इसकी मदद से रिजर्व बैंक नकदी की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। मौद्रिक नीति से कई मकसदों को पूरा किया जाता है, जैसे, महंगाई पर नियंत्रण, कीमतों में स्थिरता और टिकाऊ आर्थिक विकास दर के लक्ष्य को हासिल करना आदि। रोजगार के अवसर सृजित करने के लिये प्लेटफॉर्म का निर्माण करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है।
नकदी की आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिये बैंकों के नकदी आरक्षित अनुपात (सीआरआर) या ओपन मार्केट आपरेशन (ओएमओ) के जरिये सीधे प्रभाव डाला जा सकता है। सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल सीआरआर का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। ऐसा करने का मकसद यह है कि यदि एक साथ बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आयें तो बैंक को नकदी की समस्या का सामना नहीं करना पड़े।
रिजर्व बैंक जब ब्याज दरों में बिना बदलाव किये बाजार से तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है,जिससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम बचती है। इसके विपरीत सीआरआर को घटाने से बाजार में नकदी की आपूर्ति बढ़ जाती है। हालांकि, सीआरआर से नकदी की आपूर्ति पर तुलनात्मक तौर पर देर से असर होता है।
ओएमओ के तहत रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूति और ट्रेजरी बिल की खरीद और बिक्री करते हैं। देश की अर्थव्यवस्था में नकदी की आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए ओएमओ की मदद ली जाती है। रिजर्व बैंक जब अर्थव्यवस्था में नकदी की आपूर्ति बढ़ाना चाहता है तो वह बाजार से सरकारी प्रतिभूति खरीदता है। जब बाजार से नकदी की आपूर्ति कम करने की जरूरत महसूस होती है तो वह बाजार में सरकारी प्रतिभूति बेचता है, जिससे नकदी की आपूर्ति कम हो जाती है।
रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट के जरिये कर्ज की लागत को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। बैंकों को अपने दैनिक कामकाज के लिये बड़ी रकम की जरूरत होती है, जिसकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती है। इसके लिये बैंक, रिजर्व बैंक से रात भर के लिये कर्ज लेते हैं। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे रेपो दर कहते हैं।
बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद अक्सर एक बड़ी रकम बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाये रिजर्व बैंक में रखते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो दर कहते हैं। रेपो और रिवर्स रेपो दरों में कोई बदलाव नहीं करने से पूँजी की लागत पर कोई असर नहीं पड़ता है। रेपो और रिवर्स रेपो दरें रिजर्व बैंक के पास नकदी की आपूर्ति को तुरंत प्रभावित करते हैं
आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिये रिजर्व बैंक मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती करता है, जिससे नकदी की आपूर्ति बढ़ जाती है। अपने ताजा द्दिमासिक मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 0.25 आधार अंक की कटौती की है, जिससे बैंकों में बड़ी मात्रा में नकदी का प्रवाह हुआ है। कम लागत पर पूँजी उपलब्ध होने से बैंक इसका फायदा ग्राहकों को दे सकते हैं।
फिलहाल, मुद्रास्फीति भी लक्ष्य के अनुरूप रहने की संभावना है। लिहाजा, अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये कारोबारियों को कम ब्याज दर पर उधारी देने की जरूरत है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखकर ही रिजर्व बैंक ने नीतिगत दर में 0.25 आधार अंक की कटौती की है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)