हर्षवर्धन त्रिपाठी
लेफ्ट लिबरल या कांग्रेसी सरकार में पोषित अर्थशास्त्रियों को ज्यादा सुन लीजिए तो आप पक्के तौर पर संदेह में आ जाएंगे कि सरकार ने एक ऐसा कदम उठा लिया है जिससे देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने जा रही है। छोटे-मोटी मंदी भी आ रही है। अमर्त्य सेन से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को सुनते ऐसा ही समझ में आता है। ये इसलिए भी समझ में आ रहा है क्योंकि, सरकार को बार-बार नए फैसले लेने पड़ रहे हैं। इस वजह से भी ये लगने लगा है कि सरकार ने कहीं गलत फैसला तो नहीं ले लिया। फिर जब इतने बड़े अर्थशास्त्री ये कह रहे हों, तो उनकी बात मानकर सरकार पर संदेह कर लेना स्वाभाविक बनता है। ये इसलिए भी मई 2014 के पहले के 6 साल देश में इस तरह की स्थितियां बन गईं थीं कि सरकार पर संदेह सबसे पहले होता है। उसी संदेहकाल के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री के तौर पर अर्थव्यवस्था के लगभग ध्वस्त हो जाने की बात कर रहे हैं। उसी संदेहकाल में पहले नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रहे और बाद में विश्वविद्यालय की समिति के सदस्य रहे नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन तो इस फैसले को तानाशाही, अत्याचारी, निरंकुश किस्म का फैसला बता रहे हैं। इतने बड़े लोगों की बात पर भरोसा करना तो बनता है। लेकिन, मुझे लगता है कि इनकी बातों पर संदेह के पुराने और नए दोनों मजबूत आधार हैं। डॉक्टर मनमोहन सिंह इस देश आर्थिक सुधारों के चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहाराव ने उन्हें वो करने दिया, जिससे वो आर्थिक सुधारों के इतिहास में इतिहास पुरुष बन गए। लेकिन, ये भी छिपा तथ्य नहीं है कि सरकार में किसी न किसी पद पर रहते, चलते प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते उनकी निष्ठा किस कदर कांग्रेस के प्रति रही। और जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने उनकी सरकार की नाकामियों को जनता को बताकर सत्ता से हटाया, वो भला सरकार- खासकर नरेंद्र मोदी- के किसी भी फैसले को क्यों अच्छा बताएंगे। दूसरे अमर्त्य सेन खुले तौर पर नरेंद्र मोदी का जमकर विरोध करते रहे हैं। इस कदर कि नालंदा विश्वविद्यालय के बोर्ड से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। जहां वो यूपीए के शासनकाल में 9 सालों तक रहे। अमर्त्य सेन की कही बातों को सुनते ऐसे लगता है कि जैसे इस देश की सारी समस्याएं मई 2014 के बाद नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही अवतरित हो गई हैं। इतना पक्षपाती विचार रखने वाला कितना भी महान विचारक, जानकार हो, उस पर संदेह करना ही होगा। इसीलिए डॉक्टर मनमोहन सिंह और अमर्त्य सेन पर संदेह करना पुरानी वजहों से जरूरी हो जाता है। अमर्त्य सेन हमेशा यही बताने में लगे रहते हैं कि जो मनमोहन सिंह ने कांग्रेस उसको भुना नहीं पाई है।
सिर्फ पुरानी वजहें ही नहीं हैं। बल्कि, ढेर सारी नई वजहें भी हैं। ये वो वजहें हैं जो नोटबदली/नोटबंदी के फैसले के दौरान/बाद में हुई हैं और हो रही हैं। विमुद्रीकरण के फैसले का सबसे बुरा असर बताया जा रहा है कि देश में रोजगार खत्म सा हो गया है। ज्यादातर लोग नकदी नहीं होने से लोगों को नौकरी से निकाल रहे हैं। लेकिन, अभी तक कहीं से भी कोई तथ्य नहीं आया कि कहां नौकरी चली गईं। सिवाय इसके कि भावनात्मक भाषण अर्थशास्त्र जानने वालों की तरफ से भी आए। इसलिए नौकरी के बड़े जानकारों की बात सुनते हैं। दुनिया की बड़ी काम दिलाने वाली कंपनी ईएमए पार्टनर्स इंटरनेशनल के भारतीय मैनेजिंग पार्टनर के सुदर्शन कहते हैं कि रोजगार के बाजार की स्थिति अभी मिली जुली है। 2017 की पहली तिमाही तक ये अनिश्चितता बनी रह सकती है। उससे अगली तिमाही में अनुमानित नौकरियां होंगी। लेकिन, किसी भी कम्पनी ने अभी तक काम के लोग खोजने में कमी नहीं की है। और ये बड़ी बात है कि कंपनियां अपने काम के लोगों को खोज रही हैं। ये आशंका बेबुनियाद साबित होती दिखती है कि लोगों की नौकरियां जा रही हैं। पारम्परिक क्षेत्रों में नौकरियां पहले भी नहीं बढ़ रही थीं। नौकरियां नए क्षेत्रों में ही मिल रही थीं और विमुद्रीकरण के बाद उन नए क्षेत्रों में पहले से ज्यादा तेजी से नौकरियां मिलने की सम्भावना है। नोटबंदी के तुरंत बाद कैश ऑन डिलीवरी विकल्प से खरीदने वाले 70 प्रतिशत कम हुए। लेकिन, उसकी जगह डिजिटल पेमेन्ट गेटवे से लोगों ने भुगतान करना शुरू कर दिया और अब पेमेन्ट गेटवे, ई वॉलेट और फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी वाली कपनियों में पैदा हुई नई मांग को पूरा करने के लिए नए लोगों की जरूरत तेजी से बढ़ी है। डिजिटल मार्केटिंग के क्षेत्र में नई नौकरियां आ रही हैं।फार्मा, रिटेल और एफएमसीजी में ज्यादा नौकरियों का अनुमान लगाया जा रहा है। एक और जो बड़ी आशंका थी कि रियल एस्टेट क्षेत्र नोटबंदी से ध्वस्त हो जाएगा और यहां पहले से चली आ रही मंदी और गहरा जाएगी। मजदूरों को रोजगार छिन जाएगा। पहले ताजा तथ्य। ताजा तथ्य ये है कि 8 सालों में इस साल की पहली तीन तिमाही में सबसे ज्यादा रिहायशी घर बिके। इसको ऐसे समझें कि 2008 से 2016 के दौरान 2016 में सबसे ज्यादा रिहायशी घर बिके। ये इसके बावजूद है कि मोदी सरकार ने रियल एस्टेट रेगुलेशन बिल पास कर दिया है। हालांकि, अभी इसका पूरी तरह से बिल्डरों पर असर दिखना बाकी है। लेकिन, असर बिल्डरों पर है इसलिए वो नए प्रोजेक्ट शुरू करने के बजाए पुराने प्रोजेक्ट पूरा करके उन्हें ग्राहकों को देने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। जेएलएल इंडिया के चीफ ऑपरेटिंग ऑफीसर रमेश नायर कह रहे हैं कि विमुद्रीकरण और दूसरे सुधारों- रियल एस्टेट रेगुलेटरी बिल, बेनामी ट्रांजैक्शन बिल, जीएसटी- की वजह से रियल एस्टेट बाजार पूरी तरह से तैयार हो गया है। बाजार में जायज ग्राहक वापस आ रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि काला धन के जरिये रियल एस्टेट में निवेश करके रातोंरात मुनाफा कमाने वाले इस बाजार से बाहर हो रहे हैं और अपना रहने का घर या निवेश के लिए दूसरा घर लेने वालों की तादात बढ़ रही है।
नकदी की कमी ने एक और कमाल का काम किया है। देश में जमाखोरी पर गजब का अंकुश लगा है। पक्के तौर पर इसके आंकड़े शायद बाद में मिलें। लेकिन, अभी के हाल लोगों के पास घटी नकदी की वजह से लोग रोज की जरूरत का सामान उतना ही खरीद रहे हैं, जितना जरूरी है। इससे बाजार में मांग में कमी आई है। और करीब 50 दिन का ये लम्बा समय होने की वजह से जमाखोरों के लिए रोज के इस्तेमाल का सामान इकट्ठा करके रखना जोखिम भरा हो गया। इस वजह से जमाखोरों ने सामानों की जमाखोरी करने के बजाए उन्हें बाजार में ला दिया। इसका असर देखने को मिला जब नवंबर महीने में थोक और खुदरा महंगाई दर में अच्छी खासी गिरावट देखने को मिली है। रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत पूरी होने के बाद ही घूमने के लिए लोग निकलते हैं। और अर्थव्यवस्था बेहतर होने का ये संकेत भी है अगर लोगों ज्यादा घूम रहे हैं, खरीद कर रहे हैं। साल के अंत में छुट्टियां बिताने वाले कम नहीं हुए हैं। 8 नवम्बर की नोटबंदी के बाद थोड़ी कमी के बाद फिर से तेजी से लोगों ने बुकिंग कराई है। और सबसे अच्छी बात ये है कि ज्यादातर लोग देश में ही घूमने को प्राथमिकता दे रहे हैं। विमुद्रीकरण के फैसले के महीने यानी नवम्बर में घरेलू हवाई यात्रा करने वाले 22 प्रतिशत से ज्यादा बढ़े हैं। 90 लाख लोग देश में एक जगह से दूसरी जगह गए हैं।नवम्बर महीने में अब तक किसी भी एक महीने में सबसे ज्यादा घरेलू हवाई यात्रा लोगों ने की है। ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि जिस तरह का हल्ला लेफ्ट लिबरल और कांग्रेस पोषित अर्थशास्त्री विमुद्रीकरण के फैसले के खिलाफ मचा रहे थे, वो बेबुनियाद है।
वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर लम्बे फायदे पर है। उत्तर प्रदेश या किसी राज्य के चुनाव को लेकर ये फैसला नहीं लिया गया है। इसका अंदाजा16 दिसम्बर को भारतीय जनता पार्टी के सांसदों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत से लगाया जा सकता है। 2 बातें प्रधानमंत्री ने बड़ी साफ कही हैं। पहली किसी को भी उसके पुराने गलत काम के लिए दोष ठहराने का काम ये सरकार नहीं करेगी यानी आयकर अधिकारी किसी कारोबारी या व्यक्ति के खाते में अचानक आई ज्यादा रकम के आधार पर उसे पहले का हिसाब देने को नहीं कहेंगे। प्रधानमंत्री ने ये साफ किया कि इससे पिछले एक दशक से दूसरी कार्य संस्कृति के आदी लोगों को मुख्यधारा में नई संस्कृति के साथ काम करने में परेशानी होगी और वो इन उलझनों से बचने के लिए छिपते रहेंगे। इसलिए जरूरी है कि आज से लोगों को नई कार्य संस्कृति के लिहाज से तैयार किया जाए। दूसरी बात उन्होंने जो कही कि मैं चाहता हूं कि आने वाले समय में 6 मिनट में किसी कारोबारी को कर्ज मिल जाए। अभी तो छोटे कारोबारी का कोई बैंक खाता, लेन-देन का हिसाब न होने से बैंक उसे कर्ज देने में हिचकते हैं। ये बात इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि, ये मोदी के स्टार्टअप इंडिया को मजबूत करेगा।
विमुद्रीकरण से देश में बहुत कुछ बदला है। एक बदलाव तथ्यात्मक तौर पर ये भी है कि देश के सभी शहरी निकायों का राजस्व नवम्बर महीने में गजब बढ़ा है। और ये कोई दिल्ली या हरियाणा की बात नहीं है। आंकड़े बता रहे हैं कि देश की नगर पालिकाओं में लोगों ने विमुद्रीकरण के बाद तेजी से पुराने कर चुकाए हैं। 1000 और 500 के पुराने नोट बंद होने का ये एक बड़ा असर है। एक पहलू ये है, तो दूसरा पहलू ये है कि पूरी तरह से नकदी पर चलने वालेगलत धंधे टूट गए हैं। ये देश बदलने की शुरुआत है। इंतजार कीजिए देश बदल रहा है। तेजी से बदल रहा है। अभी और कई बड़े बदलाव दिखने बाकी हैं।