सतीश सिंह
हाल ही में आयकर विभाग ने 3,500 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य की 900 से अधिक बेनामी संपातियाँ जब्त की है, जिनमें फ्लैट, दुकानें, आभूषण, वाहन आदि शामिल हैं। अगर व्यक्ति कोई जायदाद किसी दूसरे के नाम से खरीदता है, तो उसे बेनामी संपत्ति कहा जाता है। ऐसे जायदाद आमतौर पर पत्नी, पति या बच्चे के नाम से खरीदे जाते हैं, जिनके भुगतान के स्रोत की जानकारी नहीं होती है। वैसे, भाई, बहन, साला, साली या किसी दूसरे रिश्तेदार के नाम से खरीदी गई संयुक्त संपत्ति, जिसके लिये भुगतान की गई रकम का स्रोत मालूम नहीं है, को भी बेनामी संपत्ति कहा जाता है। आयकर विभाग ने हालिया बेनामी संपत्तियों की जब्ती “बेनामी संपतियाँ लेन-देन रोकथाम कानून” के तहत की है, जो 1 नवंबर 2016 को अस्तित्व में आई थी। इस कानून के तहत किसी भी तरह की बेनामी संपतियों को जब्त करने एवं संपत्तियों के मालिकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का प्रावधान है। मामले में दोष साबित होने पर 7 साल तक सश्रम कारावास या आर्थिक दंड या फिर दोनों का प्रावधान है। भले ही आयकर विभाग ने यह कार्रवाई उल्लेखित कानून के तहत की है, लेकिन इन्हें चिन्हित करने में सरकार के डिजिटल अभियान की प्रमुख भूमिका रही है। सरकार के निर्देशों के अनुपालन के क्रम में ही आयकर विभाग को यह सफलता मिली है। गौरतलब है कि आयकर विभाग ने बीते एक साल से आयकर खातों को आधार से जोड़ने का अभियान चला रखा है।
आधार के फायदे को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि जमीन-जायदाद की हर खरीद-बिक्री को अनिवार्य रूप से आधार नंबर से जोड़ा जाये। ऐसा करने से दूसरे लोगों के नाम से की जा रही खरीद-फरोख्त पर रोक लगेगी। आधार को बैंक खाते से जोड़ने का कार्य लगभग 80 से 90 प्रतिशत पूरा हो चुका है और आयकर खातों को आधार से जोड़ने का कार्य भी तेज गति से चल रहा है। संपत्ति को आधार से जोड़ने से काले धन के सृजन की प्रक्रिया पर निश्चित रूप से लगाम लगेगा।
नोटबंदी, रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के अस्तित्व में आने के बाद रियल एस्टेट क्षेत्र के लिये मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस कवायद की वजह से द्वितीयक बिक्री बाजार अर्थात संपत्ति की दोबारा खरीद-बिक्री नकद में करना संभव नहीं हो पा रहा है। माना जा रहा है कि जमीन-जायदाद को आधार से जोड़ने से रियल एस्टेट में खरीद-बिक्री की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो जायेगी। रियल एस्टेट डेवपलर पैन से जुड़ी जानकारी पहले से ही ले ही रहे है और अब उन्हें ग्राहकों से अनिवार्य रूप से आधार की जानकारी लेनी होगी।
इधर, राजनीतिक दलों को चंदा उपलब्ध कराने की व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिये सरकार चुनावी बॉन्ड को बाजार में उतारने वाली है, जिसकी वैधता की अवधि 15 दिन हो सकती है। बॉन्ड की कम अवधि रहने से इसके दुरुपयोग को रोकने में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी बॉन्ड की घोषणा वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में की थी। चुनावी बॉन्ड एक प्रकार के धारक बॉन्ड होंगे। हर राजनीतिक दल का एक अधिसूचित बैंक खाता होगा। उस राजनीतिक दल को जो भी बॉन्ड मिलेंगे, उसे उन्हें अधिसूचित बैंक खाते में जमा कराना होगा और 15 दिनों के अंदर इसका भुगतान अनिवार्य रूप से लेना होगा। इस बॉन्ड को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा जारी किया जायेगा।
प्राधिकृत चुनावी बॉन्ड एक प्रकार के प्रामिसरी नोट यानी वचनपत्र होंगे, जिनपर कोई ब्याज देय नहीं होगा। चुनावी बॉन्ड में राजनीतिक दल को दान देने वाले के बारे में कोई जानकारी दर्ज नहीं रहेगी। ये बॉन्ड 1,000 और 5,000 रुपये मूल्य के होंगे। माना जा रहा है कि चुनावी बॉन्ड से राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता आयेगी। चंदा देने वाले राजनीतिक दलों को चेक के जरिये अथवा अन्य पारदर्शी तरीकों से दान देने से कतराते हैं, क्योंकि वे अपनी पहचान को जाहिर नहीं करना चाहते हैं। अमूमन, पहचान सार्वजनिक होने पर चंदा देने वालों को नुकसान उठाना पड़ता है।
नोटबंदी, जीएसटी, आधार आदि ने डिजिटलीकरण की राह को आसान कर दिया है। बीते एक साल में डिजिटल लेनदेन में अभूतपूर्व इजाफा हुआ है और इसकी वजह से नकदी लेनदेन एवं टैक्स चोरी में भी भारी कमी आई है। आमतौर पर कारोबारी कैश से कारोबार करना पसंद करते हैं, क्योंकि ऐसे लेनदेन वे कच्चे बिल के जरिये करते हैं। ग्राहक भी लालच में बिल की माँग नहीं करता है।
बैंक एवं आयकर विभाग द्वारा खातों को आधार से जोड़ने से बेनामी संपत्ति का खुलासा हो रहा है और टैक्स चोरी करने वालों को आसानी से पकड़ा जा रहा है। देखा जाये तो 3,500 करोड़ रूपये की बेनामी संपत्ति की जब्ती या सोने की नकदी में खरीद-बिक्री में आई कमी डिजिटलीकरण की ही देन है। मौजूदा समय में भ्रष्टाचारी सोने और रियल एस्टेट में सबसे ज्यादा निवेश करते हैं। साफ है, डिजिटलीकरण की प्रक्रिया भ्रष्टाचार को कम करने में महती भूमिका निभा रही है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)
(The views expressed are the author's own and do not necessarily reflect the position of the organisation)